जनवरी 1982 में महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री और इंदिरा गांधी के वफादार अब्दुल रहमान अंतुले को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद वसंतदादा पाटिल को मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था लेकिन इंदिरा गांधी ने सबको चौंकाते हुए बाबासाहेब भोसले को महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री बना दिया। भोसले के मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद किसी को नहीं था यहां तक उन्हें खुद भी इसका अंदाजा नहीं था कि वे मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
भोसले का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आना इतना आश्चर्यजनक था कि उस समय चर्चा होने लगी थी कि इंदिरा गांधी सतारा के अभयसिंह राजे भोसले को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं लेकिन उन्होंने गलती से बाबासाहेब भोसले के नाम की घोषणा कर दी होगी। जब भोसले के नाम का ऐलान किया गया तो अखबारों के पास छापने के लिए उनकी फोटो तक नहीं थी और सूचना निदेशालय के पास भी तब उनकी फोटो उपलब्ध नहीं थी।
वरिष्ठ पत्रकार वेंकटेश केसरी जो उस समय औरंगाबाद के दैनिक ‘मराठवाड़ा’ में पत्रकार थे, वे बताते हैं, “जब हमने यह खबर छापनी चाही कि बाबा साहब भोसले मुख्यमंत्री बन गए हैं तो हमें फोटो चाहिए थी और जब हमने सूचना निदेशालय से उनकी फोटो मांगी तो उनके पास भी नहीं मिली।” केसरी कहते हैं कि बाद में एक पत्रिका से उनका फोटो लेकर सभी समाचार पत्रों को भेजा गया था। मीडिया और लाइम लाइट से दूर रहने वाले भोसले आगे चलकर अपने बेबाक अंदाज के लिए पत्रकारों के चहेते बन गए थे।
‘भारत छोड़ो’ के दौरान भोसले को हुई जेल
भोसले का जन्म 15 जनवरी 1921 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक गांव में हुआ था। बचपन से ही पढ़ने-लिखने में मेधावी भोसले ने छोटी उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया था। वे सतारा, कोल्हापुर, सांगली के इलाकों में भूमिगत होकर काम करते थे और इस बीच जब अंग्रेजों की नजर उनकी गतिविधियों पर पड़ी और उनकी सारी संपत्ति जब्त कर ली गई। भोसले ने 1939 में छात्र रहते हुए स्वतंत्रता संग्राम और सत्याग्रह में भाग लिया था और 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान भोसले को डेढ़ वर्ष की कैद हुई थी।
पहली बार विधायक रहते हुए बने CM
स्वतंत्रता के बाद वह 1948 में उच्च शिक्षा के लिए लंदन चले गए और 1951 में वहां से लौटने के बाद उन्होंने सतारा में वकालत शुरू की और बाद में वे उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे थे। भोसले स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त से ही कांग्रेस के साथ जुड़े हुए थे और वे महाराष्ट्र कांग्रेस प्रदेश कमेटी के सचिव भी बन गए थे। बाबासाहेब भोसले पहली बार 1980 में नेहरूनगर क्षेत्र से विधायक चुने गए और उन्हें ए.आर. अंतुले के मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बनाया गया।
कुछ समय बाद जब अंतुले ने इस्तीफा दिया तो जनवरी 1982 में उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लोगों को उनके मुख्यमंत्री चुने जाने का भरोसा नहीं हुआ था। 1982-83 में मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान प्रतिभा पाटिल उनकी कैबिनेट की सदस्य थीं जो आगे चलकर भारत की राष्ट्रपति बनीं। भोसले के मुख्यमंत्री काल के दौरान उन्हें अपने पार्टी में ही कई बार नेताओं से बगावत का सामना करना पड़ा। शरद पवार जैसे विपक्षी नेता और मिल मजदूरों की हड़ताल जैसी चुनौतियों का भी उन्हें सामना करना पड़ा था।
मुख्यमंत्री के तौर पर ‘लोकप्रिय’ फैसले
भोसले ने करीब एक वर्ष तक ही महाराष्ट्र की कमान संभाली लेकिन उन्होंने कई ऐसे दूरगामी और लोकहित के फैसले लिए जिन्हें आज भी याद किया जाता है। भोसले ने लड़कियों के लिए 10वीं कक्षा तक की शिक्षा मुफ्त देने की योजना की शुरुआत की थी जिसे जमकर सराहा गया था। उन्होंने पंढरपुर के प्रसिद्ध विठोबा मंदिर में ‘बड़वे’ (पुजारी) की प्रथा को समाप्त किया, स्वतंत्रता सेनानियों की पेंशन बढ़ाई, अमरावती विश्वविद्यालय के निर्माण की अनुमति दी, मछुआरों के लिए बीमा योजना शुरू की और उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच शुरुआत करने का फैसला लिया था। उनके लिए कहा जाता है कि वे अकसर अपनी बैठकों के दौरान अधिकारियों और नेताओं को चुटकुले सुनाते थे और उनके जोक्स पर खुद जमकर ठहाके भी लगाते थे। उनका मानना था कि अगर माहौल खुशगवार रहेगा तो कर्मचारी दोगुने जोश से कामकाज कर सकेंगे।
‘पुलिस विद्रोह’
भोसले ने अपने कार्यकाल के दौरान कई बड़े फैसले लिए लेकिन सबसे अधिक चर्चा उनके काल में हुए ‘पुलिस विद्रोह’ की होती है। पुलिस ने अपनी मांगों को पूरी करने के लिए हथियार उठा लिए थे और मुंबई में कुछ समय के लिए अफरा-तफरी मच गई थी। बाद में सीआरपीएफ की मदद से इस हड़ताल पर काबू पाया जा सका। यह हड़ताल 48 घंटों में समाप्त हो गई थी लेकिन माना जाता है कि यह सिस्टम की बड़ी विफलता थी। हालांकि, कई लोग उनके द्वारा इस हड़ताल पर जल्द काबू करने की शैली की तारीफ भी करते हैं।
‘हमेशा के लिए पूर्व मुख्यमंत्री’
भोसले के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस में भीतरी मतभेद और शराब लाइसेंस के वितरण व बॉम्बे में फ्लैटों के आवंटन में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। कहा जाता है कि भोसले पार्टी के भीतर के विद्रोह को खत्म करने और विधायकों को नियंत्रित करने में सफल नहीं रहे और उन्हें अपना पद गंवाना पड़ा था। मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद उन्होंने कहा था, “मेरा मुख्यमंत्री पद छीन लिया गया लेकिन अब मेरे नाम के साथ पूर्व मुख्यमंत्री का पद स्थाई रूप से जुड़ गया है जिसे कोई छीन नहीं सकता है।”
उनका यह बयान काफी चर्चित रहा था। भोसले ने आगे चलकर बालासाहेब ठाकरे का नेतृत्व स्वीकार किया और वे शिव सेना में शामिल हो गए थे। भोसले का 6 अक्टूबर 2007 को 86 वर्ष की आयु में मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया था।