मनमोहन सिंह नहीं रहे…उनके जाने से देश भर में लोग गमगीन हैं और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दे रहे हैं। मनमोहन सिंह के जीवन से जुड़े तमाम किस्सों को दुनिया आज याद कर रही है। इन किस्सों में उनकी विनम्रता और सादगी की झलक स्पष्ट तौर पर नज़र आती है। गंभीर से गंभीर बात को सदे हुए शब्दों में और शांति से कह देने का उनका अंदाज़ कई लोगों को बेहद पसंद आता था। प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए भी उन्होंने कभी भव्यता को तवज्जो नहीं दी बल्कि हमेशा सादगी को ही अपनी पहचान बनाए रखा। सिंह का सशक्त नेतृत्व और संकट काल में उनके शांतिपूर्ण निर्णयों ने भारत को कई बार कठिन परिस्थितियों से बाहर निकाला। उनके परिवार व साथ काम करने वाले लोगों ने उनकी सादगी से जुड़े कई किस्से साझा किए हैं।
पीएम मोदी ने की सादगी की तारीफ
प्रधानमंत्री मोदी ने मनमोहन सिंह को याद करते हुए उन्हें ईमानदारी और सादगी का प्रतिबिंब बताया है। पीएम ने कहा, “एक नेक इंसान के रूप में, एक विद्वान अर्थशास्त्री के रूप में और रिफॉर्म्स के प्रति समर्पित लीडर के रूप में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।” उन्होंने कहा, “डॉक्टर मनमोहन सिंह जी का जीवन उनकी ईमानदारी और सादगी का प्रतिबिंब था। वह विलक्षण सांसद थे उनकी विनम्रता, सौम्यता और उनकी बौद्धिकता उनके संसदीय जीवन की पहचान बनी।”
BMW से ज़्यादा पसंद थी मारुति 800
पूर्व IPS अधिकारी और उत्तर प्रदेश के मंत्री असीम अरुण करीब 3 वर्षों तक मनमोहन सिंह के बॉडीगार्ड रहे थे। अरुण ने सिंह की सादगी से जुड़ा एक किस्सा ‘X’ पर शेयर किया है। अरुण ने लिखा, “मैं 2004 से लगभग तीन साल उनका बॉडी गार्ड रहा। एसपीजी में पीएम की सुरक्षा का सबसे अंदरुनी घेरा होता है – क्लोज़ प्रोटेक्शन टीम जिसका नेतृत्व करने का अवसर मुझे मिला था। एआईजी सीपीटी वो व्यक्ति है जो पीएम से कभी भी दूर नहीं रह सकता। यदि एक ही बॉडी गार्ड रह सकता है तो साथ यह बंदा होगा। ऐसे में उनके साथ उनकी परछाई की तरह साथ रहने की ज़िम्मेदारी मेरी थी।”
अरुण ने आगे लिखा, “डॉ साहब की अपनी एक ही कार थी – मारुति 800, जो पीएम हाउस में चमचमाती काली BMW के पीछे खड़ी रहती थी। मनमोहन सिंह जी बार-बार मुझे कहते- असीम, मुझे इस कार में चलना पसंद नहीं, मेरी गड्डी तो यह है (मारुति)। मैं समझाता कि सर यह गाड़ी आपके ऐश्वर्य के लिए नहीं है, इसके सिक्योरिटी फीचर्स ऐसे हैं जिसके लिए SPG ने इसे लिया है। लेकिन जब कारकेड मारुति के सामने से निकलता तो वे हमेशा मन भर उसे देखते। जैसे संकल्प दोहरा रहे हो कि मैं मिडिल क्लास व्यक्ति हूं और आम आदमी की चिंता करना मेरा काम है। करोड़ों की गाड़ी पीएम की है, मेरी तो यह मारुति है।”
तीखे हमलों पर भी रहे शांत
मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए उनके मीडिया सलाहकार रहे हरीश खरे ने सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए ‘द टेलीग्राफ’ में एक लेख लिखा है। खरे ने भी मनमोहन सिंह की सादगी की तारीफ की है। खरे ने लिखा, “मनमोहन सिंह बहुत धार्मिक व्यक्ति थे, वे हर दिन प्रार्थना करते थे और अच्छा शासन प्रमुख बनने के लिए ईश्वर से मार्गदर्शन मांगते थे। उन्हें दृढ़ विश्वास था कि वे दूसरों को अपनी नीतिगत सलाहों के बारे में समझा सकते हैं और उन्हें मना सकते हैं, और इसके लिए ज़ोर-ज़बरदस्ती किए जाने की ज़रूरत नहीं है।” उन्होंने लिखा, “प्रधानमंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान मीडिया ने उनकी तीखा और कई बार अनुचित समीक्षा की। लेकिन उन्होंने कभी भी स्वतंत्र मीडिया की संस्था का अपमान नहीं किया। वह मानते थे कि स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया लोकतांत्रिक व्यवस्था को चलाने के लिए ज़रूरी था।”
मनमोहन सिंह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी सादगी के किस्से हमेशा रहेंगे। संसद में बहस के दौरान भी वे मुस्कुराते हुए अंदाज़ में अपनी बातें कह देते थे, उन पर हुए तीखे हमलों का जवाब कभी शायरी और आंकड़ों के साथ देते रहे। सिंह की शालीनता और विनम्रता उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे तो उन्होंने सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने एक बार कहा कि ‘हज़ारों सवालों से अच्छी है, मेरी खामोशी ना जाने कितने सवालों की आरज़ू रख ली‘। वहीं, दिवंगत पूर्व विदेश मंत्री और बीजेपी नेता सुषमा स्वराज को जवाब देते हुए उन्होंने एक बार संसद में कहा था, “माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं, तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख।” संसद में कभी तीखी बहस और कभी नोंक-झोंक के बीच उन्होंने 10 वर्ष एक अल्पमत की सरकार चलाई। प्रधानमंत्री के तौर पर उनके कार्यों का मूल्यांकन किया जाता रहेगा लेकिन उनकी काबिलियत के किस्से लोगों को हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे।