BJP के कार्यक्रम में ‘ईश्वर-अल्लाह’ सुनते ही भड़के लोग: जानें ‘रघुपति-राघव राजा राम’ भजन की पूरी कहानी?

लोगों की नाराज़गी देख गायिका देवी ने भजन गाने के लिए माफी मांगी और खुद भी जय श्री राम का नारा लगाया

गायिका देवी के 'ईश्वर-अल्लाह' गाने पर लोगों ने लगाए जय श्री राम के नारे

गायिका देवी के 'ईश्वर-अल्लाह' गाने पर लोगों ने लगाए जय श्री राम के नारे

बिहार के पटना में अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के मौके पर आयोजित ‘मैं अटल रहूंगा’ कार्यक्रम के दौरान मोहनदास करमचंद गांधी के प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम’… गाए जाते समय हंगामा हो गया। गायिका देवी को इस कार्यक्रम में परफॉर्म करने के लिए बुलाया था। इस दौरान जब देवी ने भजन की लाइनें ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम‘ गानीं शुरू कीं तो कार्यक्रम में मौजूद दर्जनों लोग नाराज़ हो गए। नाराज़ लोगों ने खड़े होकर ‘जय श्री राम’ के नारे लगाने शुरू कर दिए। स्थिति बिगड़ने के बाद गायिका ने भजन गाना रोक दिया और आयोजकों ने भी मामले में मंच से हस्तक्षेप किया। लोगों की नाराज़गी देख देवी ने भजन गाने के लिए माफी मांगी और खुद भी जय श्री राम का नारा लगाया।

इस कार्यक्रम का आयोजन अटल विचार मंच ने किया था। इस मंच के प्रमुख पूर्व केंद्रीय मंत्री व वरिष्ठ बीजेपी नेता अश्विनी चौबे हैं और इस कार्यक्रम में बिहार के उप-मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा समेत कई बीजेपी नेता मौजूद थे। इस घटना के सामने आने के बाद आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हंगामा करने का आरोप लगा दिया। उन्होंने कहा कि इस भजन से ओछी समझ के टुच्चे लोगों की भावनाएं आहत हो गई हैं। विवाद के बाद सिंगर देवी ने दैनिक भास्कर के साथ बातचीत में कहा कि ये विवाद अनपेक्षित है। हालांकि, उन्होंने कहा कि उन पर माफी मांगने का कोई दवाब नहीं बनाया गया था।

‘रघुपति राघव’ बदले जाने के खिलाफ लोग!

‘रघुपति राघव राजा राम’ भजन के शब्दों में बदलाव कर महात्मा गांधी द्वारा ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम‘ शब्द जोड़े गए थे। उन्होंने इस भजन को दांडी मार्च का समूह गान बनाया था। बाद में इस भजन को गांधी की प्रार्थना सभाओं में गाया जाने लगा और यहीं से इसकी वैश्विक पहचान बन गई थी। बॉलीवुड की कुछ फिल्मों में भी इसी भजन का इस्तेमाल किया गया जिसके कारण यह लोगों के बीच में फैल गया था। हालात ऐसे हो गए कि लोग इसे ही मूल भजन समझने लगे हैं। हालांकि, बड़ी संख्या में लोगों को मूल भजन के शब्दों में बदलाव किया जाना पसंद नहीं था। पिछले कई दशकों से इसे लेकर लगातार बहस चलती रही है और लोग भजन में बेवजह अल्लाह का नाम जोड़ो जाने पर अपना विरोध जताते रहे हैं।

कई लोग दावा करते हैं कि अगर गांधी ने वाकई इस भजन को सेक्युलर भजन के तौर पर पेश किया था तो क्यों आज तक इसे किसी भी मस्जिद में नहीं गाया जाता है। लोगों को तर्क है कि अगर यह मंदिरों में गाया जा सकता है तो मस्जिदों में गाने पर भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए। मस्जिदों में भी इस भजन को चलाया जाना चाहिए लेकिन ऐसे होता नज़र नहीं आता है। आपको ईश्वर-अल्लाह के नाम के भजन मस्जिद में गाए जाने का कोई उदाहरण क्यों नज़र नहीं आता है? महात्मा गांधी ने मुस्लिम धर्मस्थलों में इस भजन को गाए जाने की वकालत की हो ऐसा कोई उदाहरण भी नज़र नहीं आता है। बड़ी संख्या में लोगों का मत है कि कथित पंथनिरपेक्षता के नाम पर हिंदू भगवान के नाम या भजनों के साथ ही छेड़छाड़ क्यों की जानी चाहिए जबकि कोई और ऐसा करने को तैयार नहीं है।

क्या है भजन का असली स्वरूप?

महात्मा गांधी द्वारा यह भजन के बोल खुद बदले गए या किसी और ने इन्हें बदला जिन्हें उनके द्वारा गाया जाता है इसे लेकर पूरी तरह पता नहीं चलता है। लेकिन गांधी ने यह भजन मूल स्वरूप से बदला हुआ प्रचलित किया इसमें कोई किंतु-परंतु नहीं है। गांधी द्वारा गाए जाने वाले और लोगों के बीच अधिक लोकप्रिय हुए भजन के बोल इस तरह थे-

रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम।
सीताराम सीताराम, भज प्यारे तू सीताराम।।
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान।
राम रहीम करीम समान, हम सब हैं उसकी संतान।
सब मिल मांगें यह वरदान, हमारा रहे मानव का ज्ञान।।

रघुपति राघव राजा राम,
पतित पावन सीता राम
सुंदर विग्रह मेघश्याम,
गंगा तुलसी शालिग्राम।

तुलसी इसमें कह रहे थे कि ‘शालिग्राम के सुंदर विग्रह, जिन पर तुलसी दल शोभित है…यह गंगाजल से पवित्र है और यह श्याम रंग के समान है… हे! पतितों को पावन करने वाले सीता के राम, रघुकुल शिरोमणि स्वामी राजा राम, मुझे दर्शन दें‘। हालांकि, तुलसी की किन्हीं रचनाओं में यह भजन पूरी प्रमाणिकता के साथ नहीं मिलता है।

रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम।।
सुंदर विग्रह मेघाश्याम। गंगा तुलसी शालिग्राम।।
भद्रगिरीश्वर सीताराम। भगत-जनप्रिय सीताराम।।
जानकीरमणा सीताराम। जय जय राघव सीताराम।।

यह मामला सिर्फ एक भजन को बदलकर नए सिरे से शब्दों को जोड़े जाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि अपने ईश्वर के प्रति आस्था के पूर्ण प्रकटीकरण के खिलाफ भी है। जो शब्द संतों ने ईश्वर की स्तुति में कहे उन्हें किसी और धर्म या पंथ से जोड़े जाना ना केवल संत बल्कि सीधे तौर पर ईश्वर के खिलाफ है। इस विरोध को बेशक एक पार्टी से जोड़कर दिखाए जाने की बात की जा रही हो लेकिन असल में आम लोग भजनों को तोड़े-मरोड़े जाने की अवधारणा से कतई सहमत नहीं हैं यह भी समझा जाना चाहिए।

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