हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इंडियन नैशनल लोक दल (इनेलो) सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला का शुक्रवार (20 नवंबर) को 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में दोपहर करीब 12 बजे आखिरी सांस ली है। पिछले लंब समय से उन्हें सांस लेने में दिक्कत थी और करीब 2-3 वर्षों से मेदांता अस्पताल में ही उनका इलाज चल रहा था। शुक्रवार सुबह को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई थी और उन्हें करीब 11:30 बजे मेदांता के इमरजेंसी वार्ड में ले जाया गया था जहां उन्होंने आखिरी सांस ली थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर समेत कई नेताओं ने उनके निधन पर शोक जताया है। पीएम मोदी ने कहा, “हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। प्रदेश की राजनीति में वे वर्षों तक सक्रिय रहे और चौधरी देवीलाल जी के कार्यों को आगे बढ़ाने का निरंतर प्रयास किया।” वहीं, नायब सैनी ने कहा, “उन्होंने प्रदेश और समाज की जीवनपर्यंत सेवा की। देश व हरियाणा प्रदेश की राजनीति के लिए यह अपूरणीय क्षति है।”
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। प्रदेश की राजनीति में वे वर्षों तक सक्रिय रहे और चौधरी देवीलाल जी के कार्यों को आगे बढ़ाने का निरंतर प्रयास किया। शोक की इस घड़ी में उनके परिजनों और समर्थकों के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं। ॐ शांति। pic.twitter.com/QXh74przOI
— Narendra Modi (@narendramodi) December 20, 2024
इनेलो सुप्रीमो एवं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी का निधन अत्यंत दुःखद है।
मेरी ओर से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
उन्होंने प्रदेश और समाज की जीवनपर्यंत सेवा की।देश व हरियाणा प्रदेश की राजनीति के लिए यह अपूरणीय क्षति है।
प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि… pic.twitter.com/58JMF1hkDb
— Nayab Saini (@NayabSainiBJP) December 20, 2024
एक जनवरी 1935 को सिरसा के चौटाला गांव में जन्मे ओम प्रकाश चौटाला पांच बार हरियाणा के सीएम रहे थे। वह भारत के पूर्व उप-प्रधानमंत्री देवीलाल के 4 बेटों में सबसे बड़े थे और जब देवीलाल डिप्टी पीएम बने तो उन्होंने हरियाणा की ज़िम्मेदारी ओम प्रकाश को दे दी थी। वे दिसंबर 1989 से मई 1990 तक पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे। मार्च 2000 से मार्च 2005 के बीच वे पांचवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे।
चौटाला को 15 महीने में 3 बार देना पड़ा इस्तीफा
दिसंबर 1989 को ओम प्रकाश चौटाला जब पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने तो वे राज्यसभा सांसद थे और उन्हें CM बने रहने के लिए 6 महीने में CM बनना जरूरी था। वे देवीलाल की पारंपरिक सीट महम से चुनाव लड़ रहे थे लेकिन खाप पंचायत ने इसका विरोध किया और देवीलाल के भरोसेमंद आनंद सिंह दांगी को निर्दलीय मैदान में उतार दिया। 1990 को महम में वोटिंग हुई लेकिन यह हिंसा और बूथ कैप्चरिंग की भेंट चढ़ गई। 8 बूथों पर दोबारा मतदान कराया गया तो फिर से वोटिंग के दौरान हिंसा भड़क उठी और चुनाव आयोग ने फिर से चुनाव रद्द कर दिया।
27 मई को फिर से चुनाव की तारीख तय की हुई लेकिन इस बार निर्दलीय उम्मीदवार अमीर सिंह की हत्या कर दी गई जिसका आरोप आनंद दांगी पर लगाया गया था। पुलिस जब दांगी को गिरफ्तार करने पहुंची तो हिंसा भड़क गई और इस घटना में 10 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना को महम कांड के नाम से जाना गया और देश भर में इसे लेकर खूब हंगामा हुआ। इस घटना के चलते हंगामा केंद्र सरकार तक भी पहुंचा तो ओम प्रकाश को पहली बार मुख्यमंत्री बनने के साढ़े 5 महीने बाद ही इस्तीफा देना पड़ गया।
इस मामले के कुछ दिनों बाद ओम प्रकाश चौटाला दड़बा कलां सीट से उप-चुनाव जीत गए और 12 जुलाई 1990 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बन गए। महम कांड को लेकर हंगामा जारी था और प्रधानमंत्री वीपी सिंह नहीं चाहते थे कि चौटाला अभी मुख्यमंत्री बनें तो उन्हें 5 दिन बाद ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ गया। मार्च 1991 में देवीलाल ने हुकुम सिंह को हटाकर ओम प्रकाश चौटाला को तीसरी बार हरियाणा का मुख्यमंत्री बनवाया दिया था। इससे राज्य में पार्टी के कई विधायक नाराज हो गए और कुछ विधायकों ने पार्टी छोड़ दी और 15 दिनों के भीतर ही सरकार गिर गई। इसके चलते 15 महीने के भीतर तीसरी बार चौटाला ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
देवीलाल ने 1996 में इंडियन नैशनल लोक दल नाम से नई पार्टी का गठन किया था और 1999 में ओम प्रकाश चौटाला ने बीजेपी के साथ मिलकर बंसीलाल की सरकार गिरा दी थी। इसके बाद ओम प्रकाश ने बंसीलाल की पार्टी के कुछ विधायकों को तोड़कर सरकार बना ली और वे 24 जुलाई 1999 को चौथी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद साल 2000 में हरियाणा में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में चौटाला ने मुफ्त बिजली और कर्ज माफी का वादा किया था और बहुमत हासिल कर लिया था। इसके बाद ओम प्रकाश चौटाला पांचवीं बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए।
86 साल की उम्र में पास की 10वीं
ओम प्रकाश चौटाला ने शुरुआती शिक्षा के बाद ही चौटाला ने पढ़ाई छोड़ दी थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने इसे लेकर बताया था, “उस जमाने में बेटों का बाप से ज्यादा पढ़ा होना अच्छा नहीं माना जाता था। ऐसे में मैंने जल्द ही पढ़ाई छोड़ दी।” चौटाला ने जेबीटी भर्ती घोटाले में 2013 से 2 जुलाई 2021 तक सजा भुगतने के दौरान 2017 में तिहाड़ जेल में रहते हुए 10वीं की परीक्षा दी थी और उनका अंग्रेजी का रिज़ल्ट रुका हुआ था। 2021 में 86 वर्ष की उम्र में उन्होंने यह परीक्षा पास की थी और अंग्रेजी में 88 नंबर मिले थे। चौटाला की कहानी से प्रेरणा लेकर ‘दसवीं’ नामक एक फिल्म भी बनी थी जिसमें अभिनेता अभिषेक बच्चन ने एक नेता का किरदार निभाया था।
जब घड़ी तस्करी को लेकर देवीलाल ने OP को घर से निकाला
1978 में जब चौटाला के पिता देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तो वे साउथ-ईस्ट एशिया के एक सम्मेलन से बैंकॉक से वापस लौटे थे। इस दौरान दिल्ली एयरपोर्ट पर जब कस्टम विभाग ने उनके बैग की तलाशी ली तो उससे करीब 4 दर्जन घड़ियां और 2 दर्जन महंगे पेन बरामद हुए थे। इस घटना से देवीलाल बहुत नाराज़ हो गए और उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर कहा कि ओम प्रकाश के लिए मेरे घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं। हरियाणा के वित्त मंत्री रहे संपत सिंह ने बताया था कि वे घड़ियां ओम प्रकाश को गिफ्ट में मिली थीं और जांच में चौटाला निर्दोष पाए गए तो देवीलाल ने भी बेटे को माफ कर दिया था।
87 वर्ष की उम्र में जेल में रहे ओम प्रकाश चौटाला
1999-2000 के बीच हरियाणा के 18 ज़िलों में टीचर भर्ती का घोटाला सामने आया। प्राथमिक शिक्षा निदेशक संजीव कुमार ने इसे उजागर किया था। 2003 में CBI ने इसकी जांच शुरू की और जनवरी 2004 में ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला समेत 60 से अधिक लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था। 2013 में CBI की स्पेशल कोर्ट ने चौटाला को 10 साल की सजा सुनाई थी इसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट तक गए लेकिन कोर्ट ने उनकी सज़ा को बरकरार रखा था। 2018 में केंद्र सरकार की विशेष माफी योजना के तहत ओम प्रकाश चौटाला ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें 60 साल से अधिक उम्र के कैदियों को तय वक्त से पहले रिहा करने का प्रावधान था और उन्हें जुलाई 2021 में तय समय से पहले ही रिहा कर दिया गया था।
2021 में घोटाला मामले में जेल के बाहर आने के बाद चौटाला को मई 2022 में 16 वर्ष पुराने आय से अधिक संपत्ति के मामले में चौटाला को चार साल की जेल की सजा सुनाई थी। इस मामले में उन पर करीब 50 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया था। जेल में रहने के दौरान चौटाला 87 वर्ष की आयु में दिल्ली की तिहाड़ जेल के सबसे बुज़ुर्ग कैदी बन गए थे।
जब परिवार में बिखराव से टूट गए चौटाला
अपने दबंग अंदाज और कड़क मिज़ाज के लिए मशहूर ओम प्रकाश चौटाला ने अपने पिता की विरासत को संभाल कर रहा था लेकिन उनके लिए इनेलो की टूट को ना केवल राजनीतिक बल्कि भावनात्मक रूप से भी सबसे कमज़ोर क्षण माना जाता है। ओम प्रकाश चौटाला के बाद पार्टी पर उत्तराधिकार को लेकर उनके दोनों बेटों अजय सिंह चौटाला और अभय सिंह चौटाला में विवाद था। ओम प्रकाश चौटाला जूनियर बेसिक ट्रेनिंग टीचर्स घोटाले के मामले में जेल में थे और वहीं से पार्टी के सारे प्रमुख फैसले लेते थे। वहीं, अभय सिंह को पार्टी की शक्ति का दूसरा केंद्र माना जाता था। शुरुआत में दुष्यंत चौटाला और उनके चाचा अभय चौटाला के बीच लड़ाई अंदरखाने ही चल रही थी लेकिन 2018 में यह खुलकर सामने आ गई थी।
2018 में सात अक्तूबर को ताऊ देवीलाल की जयंती पर गोहना में एक चुनावी रैली चल रही थी। इस रैली में दुष्यंत चौटाला के समर्थकों ने ओम प्रकाश के सामने ही दुष्यंत के समर्थन में भावी सीएम के नारे लगाए और जब अभय भाषण देने आए तो उनके खिलाफ जमकर हूटिंग की गई। इसके बाद ओम प्रकाश ने दुष्यंत और दिग्विजय को पार्टी से निष्कासित कर दिया और आइएनएलडी के उस युवा मोर्चे को भी भंग कर दिया जिसका नेतृत्व दिग्विजय सिंह कर रहे थे।
कुछ समय बाद अजय चौटाला को भी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद अजय, दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला ने जननायक जनता पार्टी (JJP) का गठन किया और 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 10 विधानसभा सीटें मिलीं जबकि ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी को मात्र 1 सीट से ही संतोष करना पड़ा था। हालांकि, 2024 के विधानसभा चुनाव में JJP को कोई सीट नहीं मिली जबकि इनेलो से 2 विधायक चुने गए थे।
पोलियो से खराब हो गए थे चौटाला के पैर
ओम प्रकाश चौटाला जन्म से ही पोलियो से संक्रमित थे और उनके दोनों पैरों पर इसका असर था। हालांकि, उन्होंने इसे कभी भी अपनी अक्षमता नहीं बनने दिया और राजनीति में आजीवन संघर्ष करते रहे। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, वे दोषी भी साबित हुए कई वर्षों तक जेल में भी रहे लेकिन कड़क मिज़ाजी हमेशा उनका स्वाभाव बनी रही। ओम प्रकाश की पहचान एक अच्छे वक्ता और अच्छे प्रशासक के तौर पर रही है। बताया जाता है कि वे मुख्यमंत्री रहते हुए एक-एक दिन में 10 से अधिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे। उन्हें अपने अधिकतर कार्यकर्ताओं के नाम याद रहते थे और वे कभी-कभी मंच से ही कार्यकर्ताओं का नाम ले लेते थे। कुछ समय पहले एक रैली में उन्होंने कहा था कि वह 115 वर्षों तक जीवित रहेंगे लेकिन शुक्रवार को उनका निधन हो गया।