2011 में एक टीवी पत्रकार ने होमी व्यारावाला से वडोदरा में उनके घर पर मुलाकात की थी। होमी के चेहरे पर झुर्रियां पड़ गई थीं और उनकी सुनने की क्षमता भी कम हो चुकी थी। पत्रकार बताती हैं कि जहां वे बैठी थीं उसके पीछे की दीवारों पर होमी व्यारावाला द्वारा खींची गई काफी लोकप्रिय तस्वीरें लगी हुई थीं। पत्रकार कहा, “मैं उन तस्वीरों को देखकर मुस्कुराई, इतने मैं उन्होंने (होमी) कहा, ‘मैं सही समय पर सही जगह पर थी’।”
होमी व्यारावाला देश की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट थीं। आम तौर पर फोटोग्राफी के पेशे को पुरुष प्रधान माना जाता लेकिन व्यारावाला ने इसमें अपनी एक अलग छाप छोड़ी थी। उन्होंने देश के कई ऐतिहासिक क्षणों को अपने कैमरे में कैद किया था। होमी के लिए कहा जाता है कि उन्हें पंडित जवाहरलाल नेहरू की फोटो खींचना पसंद था।
कैसा शुरू हुआ फोटोग्राफी का सफर?
9 दिसंबर 1913 को गुजरात के नवसारी में व्यारावाला का जन्म एक मध्यवर्गीय पारसी परिवार में हुआ था। होमी के पिता को ‘बड़े मियां’ नाम से जाना जाता था और वे पारसी थिएटर कंपनी में ऐक्टर-निर्देशक के तौर पर काम करते थे। सबीना गादिहोके ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया इन फोकस: कैमरा क्रॉनिकल्स ऑफ होमी व्यारावाला’ में लिखा है कि जब होमी 2 वर्ष की हुईं तो एक ज्योतिषी ने होमी को लेकर भविष्यवाणी की थी कि ‘(यह लड़की) राज राजवाड़े में घूमेगी’। उनका परिवार जल्द ही बॉम्बे चला गया और उन्होंने वहां जेजे स्कूल ऑफ आर्ट से पढ़ाई की है। जब वे कॉलेज में थीं तब उनकी मुलाकात एक फ्रीलांस फोटोग्राफर मानेकशॉ व्यारावाला से हुई जिनसे बाद में उन्होंने शादी कर ली थी।
मानेकशॉ ने ही होमी को फोटोग्राफी से परिचित कराया था। कॉलेज में रहते हुए ही उन्हें पिकनिक की तस्वीरें खींचने का पहला काम मिला था जिन्हें एक स्थानीय समाचार पत्र द्वारा प्रकाशित किया गया था। इसके बाद उन्हें जल्द ही फ्रीलांस असाइनमेंट लेना शुरू कर दिया था। उनकी शुरुआती तस्वीरें ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ में छपीं और बाद में लंबे समय तक उनकी तस्वीरें ‘इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया’ में नजर आती रहीं।
होमी ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए साक्षात्कार में कहा था कि 15 लोग एक ही समय पर एक चीज की तस्वीर खींचते हैं और सबकी अपनी शैली होती हैं लेकिन कोई एक ही होता है जो सही क्षण और सही कोण से तस्वीर खींच पाता है। होमी ने खुद के फोटोग्राफर बनने को लेकर एक बार कहा था, “मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मैं एक फोटोग्राफर बनूंगी। मैं डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन मेरे जीवन में वह एकमात्र समय था जब मेरी मां ने मुझे कुछ करने से मना कर दिया।”
होमी ने खींची कई ऐतिहासिक तस्वीरें
1942 में होमी ने ब्रिटिश सूचना सेवा के लिए फोटोग्राफर के रूप में काम करना शुरू कर दिया था और वे दिल्ली आ गईं थीं। होमी को भारत को ब्रिटिश सत्ता से आजाद होने से लेकर देश के कई महत्वपूर्ण दौर की तस्वीरें खींचने के लिए जाना जाता है।
होमी ने आजादी के बाद पहली बार लाल किले पर तिरंगा फहराए जाने, भारत से लॉर्ड माउंटबेटन के प्रस्थान, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री की अंतिम यात्रा की ऐतिहासिक तस्वीरें भी अपने कैमरे में कैद की थीं। होमी ने आजादी के बाद भारत का दौरा करने वाले कई वैश्विक नेताओं और मशहूर हस्तियों की तस्वीरें भी खींची थीं।
होमी ने जिन वैश्विक नेताओं की तस्वीरें खींची उनमें चीन के पहले प्रधान मंत्री झोउ एनलाई, वियतनामी नेता हो ची मिन, रानी एलिजाबेथ द्वितीय और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी शामिल हैं। होमी ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण हस्तियों की तस्वीरें लीं लेकिन भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू उनकी तस्वीरों के पसंदीदा विषय होते थे। 1969 में अपने पति की मृत्यु के बाद उन्होंने दिल्ली छोड़ दी और वे गुजरात चली गई थीं। होमी ने अपनी आखिरी तस्वीर 1970 में खींची और वह चार दशक लंबे करियर के बाद सेवानिवृत्त हो गईं।
कैसे मिला ‘डालडा-13’ उपनाम?
होमी की बहुत सारी तस्वीरें की क्रेडिट लाइन में उनका छद्म नाम ‘डालडा-13’ लिखा मिलता है। माना जाता है कि 13 होमी का लकी नंबर था और वे ‘डालडा-13’ के नाम से खूब मशहूर थीं। होमी का जन्म 1913 में हुआ था और मानेकशॉ व्यारावाला से उनकी मुलाकात 13 वर्ष की उम्र में हुई थी। होमी की पहली कार का रजिस्ट्रेशन नम्बर ‘डी.एल.डी 13’ था और वर्ष 1965 में उनके पति ने जिस दिन उनके लिए यह कार खरीदी थी उस दिन हिंदू कैलेंडर में 13 तारीख थी। कहा जाता है कि कार के रजिस्ट्रेशन नम्बर ‘डी.एल.डी 13’ के चलते उनका नाम ‘डालडा-13’ पड़ गया था।
होमी की पसंदीदा फोटो
होमी ने सबसे ज्यादा फोटो जवाहरलाल नेहरू की लीं हैं और माना जाता है कि उन्हें नेहरू की तस्वीरें खींचना पसंद था। एक टीवी पत्रकार नताशा ने 2011 में उनसे पूछा था कि उनकी फेवरेट फोटो कौनसी है। इस पर उन्होंने कहा था, “इनमें से कई तस्वीरें हैं, आप तस्वीरों को ग्रेड के हिसाब से नहीं बांट सकते। हर एक फोटो की अपनी एक अलग कहानी है।”
इस बातचीत के दौरान उन्होंने 1959 में दलाई लामा के भारत आने के दौरान ली गई तस्वीर को खास तौर पर याद किया था। हालांकि, उन्होंने एक तस्वीर ना ले पाने को लेकर दुख भी जाहिर किया था। उन्होंने एक साक्षात्कार में इस बात का खुलासा किया था कि उनका सबसे बड़ा पछतावा इस बात को लेकर है कि वह उस बैठक की तस्वीरें लेने में सफल नहीं हो पाईं, जहां महात्मा गांधी की हत्या हुई थी। वह उस बैठक में शिरकत करने जा रही थीं लेकिन उनके पति ने किसी अन्य काम के लिए उन्हें वापस बुला लिया।
होमी का आखिरी वक्त
होमी ने पति के निधन के बाद 1970 में फोटो जर्नलिज्म छोड़ दिया था। इस बारे में उन्होंने कहा था, “हमारे दौर में फोटोग्राफर्स के लिए कायदे हुआ करते थे, हमारी पीढ़ी के फोटोग्राफर तो ड्रेसकोड भी बनाकर रखते थे। हम एक-दूसरे को सहकर्मी मानते हुए सहयोग और सम्मान देते थे लेकिन अब तो सब कुछ बदल गया है। नई पीढ़ी की दिलचस्पी तो बस पैसा कमाने में है, चाहे जैसे भी मिले और मैं ऐसी भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहती।”
वे दिल्ली से आकर गुजरात में रहीं और 1982 में अपने बेटे फारूख के पास राजस्थान के पिलानी स्थित बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (बिट्स) में पढ़ाई कर रहे अपने बेटे के पास रहने चली गई थीं। कुछ वर्षों बाद 1989 में उनके बेटे का कैंसर के चलते निधन हो गया और वे वापस वडोदरा के एक छोटे से घर में रहने लगीं। 2011 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।
कहा जाता है कि होमी 2012 में अपने घर की सीढ़ियों से गिर गई थीं और इसके कारण उनके कूल्हे में गंभीर चोट आई थी। इसके बाद पड़ोसियों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया था। उन्हें सांस लेने में भी काफी दिक्कत हो रही थी और इलाज के दौरान ही 16 जनवरी 2012 को उनका निधन हो गया था।