श्रीराम और हिंदुत्व को गाली बक रही महबूबा मुफ़्ती की बेटी: बुरी हार के बाद बौखलाहट, आतंकियों को छुड़ाने के लिए रचा गया था मौसी के अपहरण का ‘ड्रामा’

हिलाल वार का कहना था कि अपहरण के बाद रुबिया सईद को कहाँ रखा जाएगा, इसके बारे में तत्कालीन डीजीपी समेत मुफ्ती मोहम्मद सईद को पता था।

इल्तिजा मुफ़्ती

इल्तिजा की अम्मी महबूबा को भी हिंदुत्व और उनके आराध्यों से उतनी ही नफरत है

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद कई घाटी के कई नेताओं की राजनीति बदल गई है। इनमें से एक PDP की प्रमुख महबूबा मुफ्ती है। महबूबा की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने इस बार के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार भी बनी थीं, लेकिन जनमत ने उन्हें नकार दिया। पाकिस्तान के लिए प्रोपेगेंडा करने वाली महबूबा मुफ्ती के लिए ये बहुत बड़ा झटका था। हालाँकि, इस हार से भी महबूबा फैमिली ने सबक नहीं लिया। बौखलाई बिल्ली की तरह पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की सोशल मीडिया संभालने वाली इल्तिजा ने अब हिंदुत्व और भगवान राम पर आपत्तिजनक टिप्पणी की है। उन्हें लग रहा है कि इस तरह की टिप्पणी करके वे एक बार कट्टरपंथी तत्वों की महबूबा बन जाएँगी। हालाँकि, घाटी के वर्तमान हालात देखकर ऐसा नहीं लगता।

श्रीराम और हिंदुत्व पर इल्तिजा मुफ़्ती की घटिया टिप्पणी

महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा ने सोशल मीडिया साइट X पर बेहद घटिया टिप्पणी करते हुए लिखा कि हिंदुत्व एक बीमारी है और भगवान राम इससे शर्मिंदा होते हैं। इल्तिजा ने लिखा, “भगवान राम को शर्म से अपना सिर झुकाना चाहिए और असहाय होकर देखना चाहिए कि कैसे नाबालिग मुस्लिम लड़कों को सिर्फ़ इसलिए चप्पलों से पीटा जा रहा है, क्योंकि इन लड़कों ने उनका नाम लेने से मना कर दिया। हिंदुत्व एक ऐसी बीमारी है जिसने लाखों भारतीयों को ग्रसित कर रखा है और भगवान के नाम को कलंकित कर दिया है।”

दरअसल, इल्तिजा मुफ्ती ने यह कमेंट शिरीन खान नाम की एक X यूजर के पोस्ट पर कमेंट किया था। शिरीन ने अपनी पोस्ट में एक वीडियो डालते हुए दावा किया था कि कथित रूप से कुछ मुस्लिम लड़कों को पीटा जा रहा है और उससे कथित रूप से जबरन ‘जय श्रीराम’ के नारे लगवाए जा रहे हैं।

इल्तिजा की इस अपमानजनक पोस्ट पर लोगों का गुस्सा फुट पड़ा और हिंदू एवं उनके अराध्यों के लिए अपमानजनक टिप्पणी करने को लेकर उन्हें लताड़ लगाई। इसके बाद उन्होंने पोस्ट किया, “मेरे ट्वीट और इस्लाम के बारे में की गई बकवास पर लोगों में बहुत गुस्सा है। इस्लाम के नाम पर की गई बेतुकी हिंसा ही सबसे पहले इस्लामोफोबिया का कारण बनी। आज हिंदू धर्म (हिंदुत्व नहीं) भी खुद को ऐसी ही स्थिति में पाता है, जहाँ इसका इस्तेमाल अल्पसंख्यकों को मारने और उन पर अत्याचार करने के लिए किया जा रहा है।”

हार के बाद प्रासंगिक बने रहने के लिए ज़हर की खेती?

बता दें कि ये वही इल्तिजा मुफ्ती हैं, जो इस बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में बिजबेहरा-श्रीगुफवारा विधानसभा सीट से पहला चुनाव लड़ीं, लेकिन हार का मुँह देखना पड़ा। यह सीट मुफ्ती परिवार का गढ़ माना जाता है। 1967 में मुफ्ती मोहम्मद सईद और 1996 में महबूबा मुफ्ती ने यहीं से जीतकर राजनीति की शुरुआत की थी। हालाँकि, इल्तिजा को यह नसीब नहीं हुआ और उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा। यह उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत से पहले ही अंत माना जा रहा है।

अपनी अम्मी पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा के कदमों पर चलते हुए इल्तिजा ने अपनी राजनीतिक अहमियत को बरकरार रखने के लिए हिंदुत्व और हिंदुओं के आराध्य पर टिप्पणी की है। ये कोई नहीं बात नहीं है। इनकी अम्मी महबूबा को भी हिंदुत्व और उनके आराध्यों से उतनी ही नफरत है। कहते हैं कि बोए पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए। वही हाल है। अम्मी जब हिंदुत्व के प्रति नफरत करने वाली हों तो बेटी इससे अलग कैसे होगी।

इल्तिजा की अम्मी महबूबा मुफ्ती भी कई बार विवादित बयान दे चुकी हैं। जम्मू-कश्मीर में उमर अबुल्ला की सरकार बनने के बाद जब कश्मीर में आतंकी हमले हुए तो महबूबा ने ‘आतंकी’ शब्द लिखने तक से परहेज किया था। उन्होंने कश्मीर में अक्टूबर में हुए आतंकी हमले को लेकर निंदा की थी, लेकिन आतंकी हमले की जगह उन्होंने इसे उग्रवादी हमला बताया था।

इतना ही नहीं, फिलिस्तीन आधारित आतंकी संगठन हिजबुल्लाह के प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत पर दुख जताया था। वो कई मौकों पर विवादित बयान दे चुकी हैं। ये बात सिर्फ इल्तिजा या उनकी उनकी अम्मी महबूबा मुफ्ती तक सीमित नहीं है। उनका पारिवारिक इतिहास ही आतंकियों के पक्ष में बोलने का रहा है। यहाँ तक महबूबा मुफ्ती बहन और इल्तिजा की मौसी रुबिया सईद को अपहरण कर लिया गया था और उनकी रिहाई के बदले कुख्यात आतंकियों को छोड़ा गया था। इसे महबूबा के अब्बू और तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की राजनीतिक साजिश कहा जाता है।

इल्तिजा की मौसी के अपहरण वाला ‘ड्रामा’

हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के प्रमुख घटकों में शामिल रहे पीपुल्स पॉलिटिकल पार्टी के चेयरमैन इंजीनियर हिलाल वार ने अपनी किताब ‘द ग्रेट डिस्कलोजर, सीक्रेट अनमास्क्ड’ में लिखा है कि रुबिया सईद का अपहरण एक ड्रामा था। उन्होंने लिखा है कि इसे तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने अब्दुल्ला परिवार को जम्मू-कश्मीर की सियासत में कमजोर करने और अपने राजनीतिक हितों को पूरा करने के लिए आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के चीफ मोहम्मद यासीन मलिक के साथ मिलकर रचा था।

हिलाल ने बताया था कि 1989 के दिसंबर की शुरुआत में मुफ्ती मोहम्मद सईद ने JKLF के एक कमांडर और कश्मीर के अलगाववादियों में शामिल मियाँ सरवर की तत्कालीन पुलिस महानिदेशक गुलाम जिलानी पंडित के मकान पर एक गुप्त बैठक कराई थी। इसमें डॉक्टर गुरु भी शामिल हुए थे। उन्हें विचारकों में गिना जाता था। डॉक्टर गुरु का बाद में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकियों ने कत्ल कर दिया था। इसी बैठक में रुबिया सईद के अपहरण की पूरी साजिश रची गई थी।

दरअसल, 8 दिसंबर 1989 को दोपहर 3 बजे मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का अपहरण हो गया था। रूबिया MBBS की पढ़ाई करने के बाद श्रीनगर के अस्पताल में इंटर्नशिप कर रही थीं। वह अपना काम करके बस में सवार हुई। यह बस लाल चौक से श्रीनगर के बाहरी इलाके नौगाम की तरफ जा रही थी। केंद्रीय गृहमंत्री बेटी और आतंक से ग्रसित जम्मू-कश्मीर में काम करने के बावजूद रुबिया के साथ कोई सुरक्षाकर्मी नहीं था। कहा जाता है कि जब रूबिया बस में सवार हुई तो उसमें JKLF के तीन आतंकी पहले से ही सवार थे।

बस जैसे ही चानपूरा चौक के पास पहुँची, तीनों आतंकियों ने बंदूक तान दी और बस को रुकवा लिया। उसके बाद रूबिया सईद को नीचे उतारकर नीले रंग की मारुति कार में बैठाकर फरार हो गए। घटना के दो घंटे बाद ही जेकेएलएफ के जावेद मीर ने रुबिया सईद के अपहरण की जिम्मेदारी ली। आतंकियों ने रूबिया को छोड़ने के बदले में जेल में बंद 7 आतंकियों की रिहाई की माँग की। इस पूरी कवायद में 5 दिन बीत गए और 8 दिसंबर से 13 दिसंबर की तारीख आ चुकी थी।

13 दिसंबर, 1989 की सुबह दिल्ली से तत्कालीन केंद्रीय मंत्री विदेश मंत्री इंद्र कुमार गुजराल और नागरिक उड्डयन मंत्री आरिफ मोहम्मद खान श्रीनगर पहुँचे। उनके साथ तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नाराणयन भी थे। तीनों जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला से मिले। 13 दिसंबर की दोपहर तक सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच समझौता हो गया। समझौते के तहत उस दिन शाम 5 बजे 5 आतंकियों को रिहा किया गया। लगभग साढ़े सात बजे रूबिया को सोनवर स्थित जस्टिस मोतीलाल भट्ट के घर सुरक्षित पहुँचाया गया। उसके बाद रूबिया को उसी रात विशेष विमान से दिल्ली लाया गया। एयरपोर्ट पर मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी दूसरी बेटी महबूबा मुफ्ती मौजूद थे।

हिलाल वार का कहना था कि अपहरण के बाद रुबिया सईद को कहाँ रखा जाएगा, इसके बारे में तत्कालीन डीजीपी समेत मुफ्ती मोहम्मद सईद को पता था। उन्होंने कहा कि इस अपहरण में सहयोग के लिए यासीन मलिक को मुफ्ती मोहम्मद सईद ने एक प्रमख अलगाववादी नेता के रूप मे प्रचारित कराया। इस दौरान मुफ्ती मोहम्मद सईद दो बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने, लेकिन उन्होंने यासीन मलिक पर कोई कार्रवाई नहीं की।

इस तरह स्पष्ट है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद ही नहीं, बल्कि उनकी बेटी महबूबा भी अपनी राजनीतिक के लिए अपनी आतंकियों का सहारा लेने से नहीं चुके। अब महबूबा की बेटी इल्तिजा मुफ्ती अपनी राजनीति को बचाने के लिए हिंदू और भगवान को गाली देकर परोक्ष रूप से कट्टरपंथियों में सहारा खोज रही हैं। इल्तिजा अपने पारिवारिक इतिहास के अनुसार ही काम कर रही हैं, जो उनके नाना और उनकी अम्मी लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए लगातार करते आ रहे थे।

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