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एक चादर की वजह से खुला था काकोरी ट्रेन एक्शन का राज… कहानी क्रांतिकारियों की, कहानी एक गद्दार की, कहानी बिस्मिल, रोशन और अशफाक की

मुकदमे के दौरान बिस्मिल का साथी बनवारी लाल भार्गव गद्दारी कर गया और वह ईनाम की राशि और फाँसी से बचने के लिए सरकारी गवाह बन गया।

khushbusingh1 द्वारा khushbusingh1
19 December 2024
in इतिहास, ज्ञान
काकोरी ट्रेन एक्शन,. बिस्मिल, अशफाक

काकोरी ट्रेन एक्शन के लिए बिस्मिल ने 9 क्रांतिकारियों को चुना था, जिनमें ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी और अशफाक उल्लाह खान भी शामिल थे

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19 दिसंबर का दिन भारतीय के क्रांतिवीरों ने इतिहास में अमर कर दिया है। अंग्रेजों के खिलाफ काकोरी ट्रेन एक्शन को अंजाम देने वाले पंडित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के नाम से विख्यात ठाकुर राम प्रसाद सिंह तोमर ‘बिस्मिल’, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्लाह खाँ को आज के दिन सन 1927 में फाँसी दे दी गई थी। काकोरी ट्रेन एक्शन डकैती नहीं, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मील का पत्थर था।

काकोरी के लिए निकले क्रांतिकारी, लेकिन निकल गई थी ट्रेन

दरअसल, 1925 आते-आते स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारियों की आर्थिक हालत बेहद खराब हो गई थी। उनके पास कपड़े तक नहीं थे। पाई-पाई के मोहताज हो चुके थे। ऐसे में उनके लिए लड़ाई को जारी रखना मुश्किल होता जा रहा था। दूसरी तरफ पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे लोग अंग्रेजों के साथ नरमपंथी रवैया अपनाकर राजनीति की मुख्यधारा में आ गए थे। महात्मा गाँधी, नेहरू, राजा जी जैसे नेताओं की कद्र थी, लेकिन इन क्रांतिकारियों के लिए उन सबके मन में कोई सहानुभूति नहीं थी। कह सकते हैं कि इसके पीछे वैचारिक वजह रही होगी। हालाँकि, मकसद एक हो तो वैचारिक मतभेद मायने नहीं रखता।

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खैर जो भी हो, आजादी की लड़ाई लड़ रहे क्रांतिकारियों पर इस समय तक काफ़ी कर्ज़ भी हो चुका था। ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन‘ के संचालन के लिए पैसों और हथियारों की कमी पड़ गई। इसके बाद राम प्रसाद ने सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई। राम प्रसाद सिंह तोमर ‘बिस्मिल’ ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “मैंने गौर किया था कि गार्ड के डिब्बे में रखे लोहे के संदूक में टैक्स का पैसा होता है। एक दिन मैंने लखनऊ स्टेशन पर देखा कि गार्ड के डिब्बे से कुली लोहे के संदूक को उतार रहे हैं। मैंने नोट किया कि उसमें न तो ज़ंजीर थी और न ही ताला लगा हुआ था। मैंने उसी समय तय किया कि मैं इसी पर हाथ मारूँगा।”

इस मिशन के लिए राम प्रसाद सिंह बिस्मिल ने अपने और 9 क्रांतिकारियों को चुना। इनमें ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्लाह खाँ, राजेंद्र लाहिड़ी, सचींद्र बख्शी, मुकुंदी लाल, बनवारी लाल भार्गव, मंमथनाथ गुप्त, मुरारी लाल शर्मा और चंद्रशेखर आजाद शामिल थे। बिस्मिल ने इस सरकारी खजाने को लूटने के लिए काकोरी नाम के एक छोटे से स्टेशन को चुना। यह लखनऊ से आठ किलोमीटर दूर शाहजहाँपुर रेल मार्ग पर स्थित था। इस खजाने को लूटने के लिए सन 1925 में 8 अगस्त का दिन तय किया गया। इस घटना को अंजाम देने से पहले ये लोग काकोरी जाकर वहाँ का जायजा लिया। हालाँकि, यह मिशन नाकाम हो गया, क्योंकि ये क्रांतिकारी जैसे ही प्लेटफॉर्म पर पहुँचे, वह ट्रेन वहाँ से निकल चुकी थी।

एक चादर की वजह से खुल गया काकोरी ट्रेन एक्शन का राज़

अगले दिन 9 अगस्त को सभी लोग फिर काकोरी के लिए निकले। उन्हें चंद्रशेखर आजाद और अशकाक उल्लाह ने समझाने की कोशिश की, लेकिन बिस्मिल नहीं माने। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद और अशफाक चुपचाप अपने नेता की बात मान गए। इन लोगों के पास चार माउजर और रिवॉल्वर थे। इन्होंने तय किया था कि वे खजाना लूटने के दौरान किसी को नुकसान नहीं पहुँचाएँगे। इन लोगों ने अलग-अलग ग्रुप में फर्स्ट और सेकेंड क्लास में ट्रेन में चढ़ने की योजना बनाई थी और काकोरी के पास ट्रेन की चेन खींचकर रोकने का प्लान तय किया था। अब तक सब कुछ तय प्लान के तहत ही हो रहा था। ट्रेन रोक दी गई और खजाने को लूट लिया गया। इसमें लगभग 4679 रुपए हाथ लगे।

इस लूट की चर्चा पूरे देश में हो रही थी और देशवासी इन नवजवानों की साहस को सलाम कर रहे थे। उधर, अंग्रेज अधिकारी इस लूट में शामिल लोगों की तलाश कर रहे थे। हालाँकि, उन्हें कोई सबूत नहीं मिल रहा था। इसी बीच इन क्रांतिकारियों में से किसी की चादर ट्रेन में ही छूट गई। उससे पता चला कि ये काम ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ से जुड़े क्रांतिकारियों का है। इसके बाद अंग्रेजी सरकार ने व्यापक रूप से क्रांतिकारियों की गिरफ्तारियाँ कीं। सरकार ने काकोरी हमले में शामिल लोगों की गिरफ़्तारी के लिए 5000 रुपए का इनाम रखा था। इससे संबंधित विज्ञापन सभी रेलवे स्टेशन और थानों पर चिपकाए गए थे।

बिस्मिल, रोशन, राजेंद्र और अशफाक उल्लाह को फाँसी

ब्रिटिश सरकार ने तीन महीने में करीब 40 लोगों को पकड़ लिया। चंद्रशेखर आजाद को छोड़कर इस शामिल सभी 9 क्रांतिकारी पकड़े गए। सबसे अंत में राम प्रसाद सिंह बिस्मिल गिरफ्तार हुए थे। इन सभी लोगों पर लूट और हत्या का मुकदमा चलाया गया, क्योंकि खजाना लूटने के दौरान फायरिंग में एक मौत हो गई थी। मुकदमे के दौरान बिस्मिल का साथी बनवारी लाल भार्गव गद्दारी कर गया और वह ईनाम की राशि और फाँसी से बचने के लिए सरकारी गवाह बन गया। अप्रैल 1927 में इस मामले में फैसला सुनाया गया और राम प्रसाद सिंह बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्लाह खाँ और राजे्ंदर लाहिड़ी को फाँसी की सजा सुनाई गई।

इसके बाद 19 दिसंबर 1927 को राम प्रसाद सिंह बिस्मिल को गोरखपुर, ठाकुर रोशन सिंह को मलाका जेल और अशफाक उल्लाह खाँ को फैजाबाद जेल में फाँसी दे दी गई। राजेंद्र लाहिड़ी को इससे दो दिन पहले यानी 17 दिसंबर को गोंडा जेल में फाँसी दे दी गई थी। मन्मनाथ गुप्त उस समय 14 साल के थे। इसलिए उनकी फाँसी को उम्रकैद में बदल दिया गया। आगे चलकर उन्हें 1937 में रिहा कर दिया गया।

अपनी फाँसी से दो दिन पहले ही राम प्रसाद सिंह तोमर ‘बिस्मिल’ अपनी आत्मकथा को पूरा किया था। उनके और साथियों के साथ की गई छल को लेकर उन्होंने इस किताब में लिखा है, “दुर्भाग्यवश हमारे बीच भी एक साँप रह रहा था। वो उस शख़्स का बहुत क़रीबी दोस्त था, जिस पर मैं आँख मूँद कर विश्वास करता था। मुझे बाद में पता चला कि ये शख़्स न सिर्फ़ काकोरी टीम की गिरफ़्तारी, बल्कि पूरे संगठन को खत्म करने के लिए ज़िम्मेदार था।” हालाँकि, अपने दोस्त के प्रति आदर दिखाते हुए बिस्मिल ने उसका नाम नहीं छापा, लेकिन प्राची गर्ग ने अपनी किताब ‘काकोरी द ट्रेन रॉबरी देट शुक द ब्रिटिश राज’ में उस शख्स का नाम बताया है। वह शख्स था बनवारी लाल भार्गव।

प्राची ने अपनी किताब में लिखा है, “बनवारी लाल भार्गव हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य था। काकोरी ट्रेन लूट में उसकी भूमिका हथियार सप्लाई करने की थी। अंग्रेजों ने मुकदमा चलाया तो वह फाँसी से बचने और आर्थिक सहायता के एवज़ में भार्सग सरकारी गवाह बन गया।” इस तरह देश के क्रांतिवीरों ने आजादी के लिए अपने आप को न्योछावर कर दिया। हालाँकि, बिस्मिल की फाँसी के बाद उनका परिवार बेहद गरीबी और भूखमरी में तिलतिल कर मरा और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भीमराव अंबेडकर जैसे अपने विरोधियों को साइड लगाने में लगे रहे। उन्होंने अन्य क्रांतिकारियों की कभी सुध नहीं ली, सिवाय राजनीति के।

स्रोत: Kakori Train Action, काकोरी ट्रेन एक्शन, Ram Prasad Bismil, राम प्रसाद बिस्मिल, Ashfaqulla Khan, अशफाक उल्लाह खान
Tags: Ashfaqulla KhanKakori Train ActionRam Prasad Bismilअशफाक उल्लाह खानकाकोरी ट्रेन एक्शनराम प्रसाद 'बिस्मिल'
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