15 साल के बच्चे की माँ प्रियंका और मोहम्मद आदिल… रील को दुनिया मान अँधेरे कुँए में कूदती युवा पीढ़ी, Woke कल्चर का प्रसार खतरनाक

भारत का कानून भी अश्लीलता से बढ़ावा देने से रोकने की बात करता है। विवाहेत्तर आदि संबंध तो समाज में सबसे घिनौने माने जाते हैं। यह सामाजिक ढाँचे को तोड़ने की ही बात नहीं, बल्कि कानून को धोखा देने की नीयत का सवाल है।

India's Got Latent, प्रियंका हलदर, आदिल

India's Got Latent में प्रियंका के गाउन में काटछाँट करता आदिल (फोटो साभार: YouTube/)

भारत में जैसे-जैसे मोबाइल का विस्तार होता जा रहा है, नवजागरण या कह लें कि खुद को आधुनिक दिखाने के चक्कर में लोग वोक कल्चर (Woke Culture) का शिकार होते जा रहे हैं। इस कल्चर का शिकार सिर्फ युवा ही नहीं, बल्कि प्रौढ़ और कुछ मामलों में अधेड़ भी हो रहे हैं। हर तरफ अपनी अहमियत को दिखाने के लिए एक से बढ़कर एक पैंतरे अपनाए जा रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा पैंतरा अश्लीलता है। इसको लेकर समाज पर क्या असर और लोगों पर इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव क्या पड़ेगा, इस सामाजिक ‘कर्तव्य’ की बात शायद ही कोई करता है, लेकिन जब इस पर सवाल उठाए जाते हैं तो तर्क में संवैधानिक ‘अधिकार’ की बात ज़रूर की जाती है।

मानव सभ्यता के विकास से ही नारी देह को लेकर पुरुषों में एक अलग तरह की लिप्सा रही है। इसे किसी ने पत्थरों पर तराशा, किसी ने कैनवास पर उकेरा तो किसी शब्दों में तराना गढ़ा। हालाँकि, ये सब मर्यादा की सीमा में रहकर सामाजिक ढाँचे के अंतर्गत किया जाने वाला सामाजिक रूप से स्वीकार्य कार्य था। लेकिन हाल के वर्षों में जिस तरह से वीडियो और रील के नाम पर नग्नता बढ़ी है और सौंदर्य की परिभाषा को नग्नता और अश्लीलता तक समेटने का प्रयास किया गया है, वह सामाजिक ढाँचे की बुनियाद को हिलाने वाला है।

अश्लीलता बन गई भारत की मनोरंजन इंडस्ट्री का हिस्सा

इस तरह वोकिज्म को आगे बढ़ाने में सेलिब्रिटीज का बहुत बड़ा हाथ है। ‘कॉफी विद करन’ में करन जौहर ने सेलेब्रिटियों को बुलाकर जिस तरह से पूछना शुरू किया, वह अलग तरह का टॉक्सिक था। बाद में ‘ऑल इंडिया बक*द’ (AIB) जैसे प्रोग्राम आए, जिनमें माँ-बहन की गाली को भारतीय परिवेश में आम बनाने की कोशिश की गई, जो कि आम कभी नहीं रहा। आज भी ग्रामीण परिवेश में लोग बड़े के सामने ‘अपशब्द’ का इस्तेमाल तक नहीं करते, गाली तो बहुत दूर की बात है। दिल्ली में जब मैं आई तो देखा यहाँ महिलाएँ एडवांस कहलाने के लिए बातचीत में दो-चार गाली जरूर इस्तेमाल करतीं।

ये अलग तरह का कल्चर था। जो समाज में अनैतिक माना जाता था, उसे नई पीढ़ी पर उच्छृंखलता और नई सोच के नाम पर थोप दिया गया। इसमें बॉलीवुड की बहुत बड़ी भूमिका रही। बाद के दिनों में OTT ने इस कल्चर को इतना प्रदूषित कर दिया कि वो वोक कल्चर के नाम से कुख्यात हो गया। हर कोई जितना गैर-सांस्कृतिक काम कर सकता है, वो उतना खुद को फॉरवर्ड और नई सोच वाला/वाली होने का दावा कर सकता है। इसमें समाज की नैतिकता के साथ-साथ रिश्तों की मर्यादा तक को ताक पर रख दिया गया है। आजकल सोशल मीडिया पर रील बनाने के नाम पर भाई-बहन, माँ-बेटा, बाप-बेटी आदि ऐसी ऐसी हरकतें करते हैं कि देखने वाले को भी शर्म आ जाए। अब अगर वाजिब ठहराने के लिए कोई बेहूदा सा ये तर्क देता कि ‘गंदगी देखने वालों की नजरों में होती है’ तो यह बेहद घटिया तर्क होगा।

IAB कॉमेडी के नाम पर रोस्ट शो का आयोजन करता था। इसमें एक दूसरे का मजाक उड़ान के लिए इतने गंदे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता था कि कभी-कभी अकेला बैठा पुरुष भी सुनकर शर्मा जाए, महिलाओं का कहना ही क्या, लेकिन जिस तरह महिलाएँ रील और कई तरह के शो में नाम कमाने के लिए व्यवहार कर रही हैं, वह पुरुषों को शर्मिंदा कर दे रहा है। इसके पीछे नैतिकता का DNA है, जो भारतीय संस्कृति में रची-बसी है।

स्टेज पर सबके सामने काटे लड़की के कपड़े

ऐसा ही एक शो का एक क्लिप कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर देख रही थी। इस शो में भारती सिंह ज्यूरी के तौर पर बैठी थीं। और भी कुछ लोग थे। इसमें एक यंग महिला के गाउन के काटकर एक पुरुष अलग शेप दे रहा था। संभवत: वह उसका बॉयफ्रेंड है। इस दौरान जूरी ने पूछा कि क्या उसकी शादी नहीं हुई है। इस पर महिला चहकते हुए कहती है कि उसकी शादी हो गई है और उसका 15 साल का एक बेटा भी है। इस पर जूरी के मेंबर आश्चर्यचकित होने का ढोंग करते हुए कहते हैं- ‘क्या’? फिर जूरी का ही एक मेंबर पूछता है कि आपके हसबैंड नहीं आए? तो महिला कहती है कि नहीं। इस पर मेल जूरी कहता है कि आपके पति बहुत अच्छे हैं, क्योंकि एक पुरुष अपनी गर्लफ्रेंड को किसी और से बात करते हुए नहीं देख सकता, यहाँ तो कपड़े फाड़ने की बात है। इस पर महिला कहती है कि इसके बारे में उसके हसबैंड को पता नहीं है।

हम जिस वीडियो की बात कर रहे हैं वो यूट्यूबर समय रैना के शो India’s Got Latent का है। इसमें उनके साथ-साथ कॉमेडियन भारती सिंह और उनके पति टीवी होस्ट हर्ष लिम्बाचिया भी जज के रूप में बैठते हैं।

तो ऐसा है वोक कल्चर। एक अलग तरह नशा। उन्मुक्तता के नाम पर बेढब प्रदर्शन। अगर इस शो की ही बात करें तो एक व्यस्क महिला को अधिकार है कि वह यह तय करे कि उसका बॉयफ्रेंड हो या ना हो। शादीशुदा होने के बावजूद उसका विवाहेत्तर संबंध रहेगा या नहीं। वह यह तय कर सकती है कि उसके कपड़े कौन फाड़े। लेकिन, इन सबका का सार्वजनिक प्रदर्शन प्रदर्शन तो कतई वैध नहीं है। भारत का कानून भी अश्लीलता से बढ़ावा देने से रोकने की बात करता है। विवाहेत्तर आदि संबंध तो समाज में सबसे घिनौने माने जाते हैं। यह सामाजिक ढाँचे को तोड़ने की ही बात नहीं, बल्कि कानून को धोखा देने की नीयत का सवाल है।

इसी तरह नजदीकी रिश्तों वाले लोगों का अश्लील रील बनाना भी बेहद खौफनाक है। यह देखने वालों के ही नहीं, बल्कि रील बनाने वालों के मनोविज्ञान को भी प्रभावित करता है। जो रिश्ते कल तक कल्पना से परे पतित नजर आते थे, वे रील में लगातार देखते रहने से कोई भी आदमी उसका अभ्यस्त हो सकता है और इस तरह की घटिया प्रदर्शन सामान्य बात लग सकती है। हालाँकि, आज वोक कल्चर के दिवानों को इससे कुछ भी लेना-देना नहीं है।

Wokeism के नाम पर युवाओं की ऊर्जा का दुरुपयोग ही नहीं, बल्कि उन्हें गलत धारा दी जा रही है। युवाओं की जिस ऊर्जा को राष्ट्र निर्माण, समाज निर्माण और व्यक्ति निर्माण में लगाना चाहिए था, वो रील और वीडियो को अपना संसार मानकर उस अंधेरे कुएँ में डूबती जा रही है। इसमें सेलिब्रिटीज द्वारा की जाने वाली हरकतें, इस तरह के घटिया शो और OTT की अश्लील सामग्री जितनी जिम्मेवार है, उतनी परिवार एवं माता-पिता भी जिम्मेवार हैं। वे बच्चों को बहुत कम उम्र में जिस्म के खास हिस्से को मटकाना-लचकाना देखते हैं तो खुश होते हैं और सोचते हैं कि उनका बच्चा तो बहुत टैलेंटेड है, लेकिन टैलेंड दरअसल है क्या वो इसके बारे में विचार नहीं करते। बस आज की धारा में बहने की आकांक्षा ही उनके पास है, चाहे इसके पीछे कुछ भी त्यागना पड़े। नैतिकता तो वैसे भी वोक कल्चर वालों को भार लगने लगी है।

वामपंथी हैं Woke कल्चर के प्रसार के जिम्मेदार

ऐसा नहीं है कि ये वोक कल्चर सिर्फ मनोरंजन तक ही सीमित है। ये स्कूलों-कॉलेजों, राजनीति, धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार, मानवाधिकार के रहनुमाओं तक पहुँच चुकी है। मैकाले की शिक्षा प्रणाली से उलझा हुआ भारत का एक बहुत बड़ा धनाढ्य तबका भी इसका शिकार है। जब धनाढ्य और प्रख्यात लोग कोई काम करते हैं तो निचला तबका उनकी नकल करने की कोशिश करता है। ऐसा ही नकल हर तरफ हो रही है। वोक कल्चर से ग्रसित लोग डिग्रीधारी हो सकते हैं, लेकिन उन्हें सामाजिक ज्ञान नहीं है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और सामाजिक ज्ञान के बिना सारा ज्ञान अधूरा है, क्योंकि डिग्री से तो नौकरी भी नहीं मिलती, वो बस नौकरी का आधार भर है। वोकिज्म वाले लोग फिर भी खुद को सबसे अधिक जानकार और ज्ञानी मानते हैं। यह ऐसी विकृति ही जो एक अलग दुनिया में जीने के लिए प्रेरित करती है। ठीक वैसे ही जैसे मादक पदार्थ पीने/खाने/सूंघने का बाद कोई व्यक्ति महसूस करता है। यह ग्रंथियों से स्रावित होने वाले हार्मोनल डिसबैलेंस का मामला बन जाता है। इन्ही जैसी चीजों में उन्हें खुशी मिलती है।

अगर राजनीतिक रूप से देखे Woke कल्चर के सबसे बड़े प्रेरणास्रोत वामपंथी हैं। इनके बड़े बड़े नेता अंग्रेजी में बातें करते हैं, महंगी शराब पीते हैं, बड़े बड़े होटलों में ठहरते हैं, लेकिन बातें करते हैं किसानों की, मजदूरों की, श्रमिकों की…. वंचितों की, शोषितों की। इन्हीं वोकिज्म के नाम पर इन्होंने 1990 के दशक में बिहार को जातीय आग में झुलसा दिया। गांव के गाँव नरसंहार हुए। सैकड़ों घरों से लाशें उठीं, लेकिन झूठ और अपनी बुनी गई मायाजाल में बैठे ये वोक के लिए दुनिया एकदम से अलग थी। आज इससे बाहर निकलने की बात है।

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