संसद सत्र समाप्त हो चुका है लेकिन इस सत्र के अंतिम दौर में संसद परिसर में विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच जो कुछ हुआ वह पूरे देश के लिए डरावना है। संसद संसदीय लोकतंत्र की शीर्ष इकाई है और उस परिसर में माननीय सांसदों के बीच सामान्य हिंसा भी हो सकती है और सत्ता पक्ष के सांसदों द्वारा लोकसभा में विपक्ष के नेता के विरुद्ध गंभीर आपराधिक धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कराई जाएगी और फिर प्रत्युत्तर में कांग्रेस द्वारा भी यही होगा इस सीमा तक राजनीति के पतन की कल्पना नहीं थी। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पर जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाने, दूसरों के जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने, आपराधिक बल के प्रयोग, अपराधिक धमकी जैसी धाराओं में दो भाजपा सांसदों अनुराग ठाकुर और बांसुरी स्वराज द्वारा थाने में मामला दर्ज कराया जा चुका है।
निश्चित रूप से पूरे घटनाक्रम को लेकर दोनों पक्षों के अपने-अपने रुख हैं, पर कुछ बातें प्रत्यक्ष दिख रहीं हैं। भाजपा के दो सांसदों प्रताप सारंगी और मुकेश राजपूत को चोटें आईं वो दिख भी रहीं हैं और अस्पतालों से उनकी रिपोर्ट भी है। नागालैंड की पहली महिला राज्यसभा सांसद फांगनौन कोन्याक की राज्यसभा के सभापति के समक्ष शिकायत तथा मीडिया के समक्ष वक्तव्य भी सामने है। वह कह रहीं हैं कि राहुल गांधी जिस तरह मेरे पास आए चीखने लगे वो मेरे लिए असहज था, मैं अपना बचाव कर सकती थी लेकिन मैंने कुछ नहीं किया और जो कुछ हुआ वह बहुत बुरा था। वह कह रहीं हैं कि मैंने सभापति से संरक्षण मांगा है। निस्संदेह, दोनों पक्षों का अपना मत है पर कल्पना करिए कि कोई महिला किसी आम व्यक्ति पर ऐसे आरोप लगाए तो उसके साथ कानून कैसा व्यवहार करेगा?
स्वीकार करना पड़ेगा कि वर्तमान राजनीति सामान्य दलीय प्रतिस्पर्धा से निकलकर परस्पर कटुता से होते हुए शत्रु भाव में बदल गया है। शत्रु या दुश्मन के साथ सम्मानजनक छोड़िए सहानुभूति तक का व्यवहार नहीं हो सकता। घटना इतनी है कि विपक्ष प्रतिदिन संसद परिसर के अंदर के मकर द्वार पर प्रदर्शन कर रहा था। 19 दिसंबर को भाजपा और राज्य के सांसदों ने उनके पहले 10 बजे से प्रदर्शन शुरू कर दिया। कांग्रेस सहित विपक्ष बाबा साहब आंबेडकर की मूर्ति से नारा लगाते वहीं पहुंच गया। जितनी बात सामने आ रही है राहुल गांधी उनके बीच से ही सदन में जाने लगे और उसमें इतना कुछ घटित हो गया।
भाजपा सांसदों का कहना है कि सुरक्षा गार्डों ने अलग से प्रवेश का रास्ता बनाया था। जानबूझकर राहुल गांधी हमारे बीच से गए और उन्होंने धक्का दे दिया। कुछ तो हुआ। तीन-तीन सांसद पूरी तरह झूठ नहीं बोल सकते हैं। हमने वैसी राजनीतिक देखी है जहां विपक्ष और सरकार विषयों पर एक दूसरे के विरुद्ध शब्दों की बौछार करते थे, विरोध प्रदर्शन होते थे, बावजूद उनके बीच परस्पर सम्मान का भाव था और इनको सामान्य राजनीतिक गतिविधि के रूप में ही लिया जाता था। बाद में लोग एक दूसरे से हाथ मिलते थे आपस में बात करते बाहर निकलते थे और यहां तक की साथ भोजन भी करते थे।
टीवी चैनलों के आविर्भाव के बावजूद सरकार और विपक्ष के नेता एक माइक पर अपनी बात भी रख देते थे। कभी सत्ता पक्ष व विपक्ष में तनाव उत्पन्न हुआ तो कुछ ऐसे नेता दोनों ओर थे और ऐसे बीच – बचाव करने वाले भी थे कि नौबत यहां तक कभी आने नहीं दी। बाद के कार्यकाल में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर कई बार दोनों पक्षों की सार्वजनिक आलोचना करते हुए अपने व्यवहार को सुधारने की सीख देते थे, व्यक्तिगत बातचीत करते थे और मामला शांत हो जाता था। आज एक नेता ऐसा नहीं है। शांत भाव से आपस में यहां तक कि दलों के अंदर भी विवेकशील संवाद या नेताओं को उनके स्टैंड को लेकर कोई अलग सुझाव देने की स्थिति खत्म हो रही है।
इससे खतरनाक चरित्र राजनीति का हो ही नहीं सकता है। राहुल गांधी या उनके रणनीतिकार- सलाहकार अपनी गलती मानें न मानें, प्रताप सारंगी और मुकेश राजपूत जैसे ही गिरे, उन्हें वहीं रुक कर उन्हें उनके साथ सहानुभूति दिखानी चाहिए थी और शायद मामला आगे नहीं बढ़ता। उनके घायल होने की सूचना के तुरंत बाद अगर लगाकर भी बयान में चिंता प्रकट कर देते, फोन कर लेते या अस्पताल पहुंच जाते तब स्थिति यहां तक नहीं पहुंचती। मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ भी यही व्यवहार होना चाहिए था। जब एक अनुसूचित जाति की उत्तरपूर्व की महिला नाराज़ है तो उससे मिलकर क्षमा याचना में क्या समस्या रही?
राहुल गांधी द्वारा गांधी जी के तरीके से मंत्रियों और सत्ता पक्ष के सांसदों को फूल देना तभी सच माना जाता जब उस समय वे लोकतांत्रिक आंदोलन या सत्याग्रह का सामान्य व्यवहार दिखाते। आपकी गलती है, नहीं है यह विषय बाद में आता है। कोई हमारे सामने गिर गया उसे उठाने, उसका हाल-चाल लेने जैसी गरिमा अवश्य दिखानी चाहिए थी भले दूसरी ओर से गुस्सैल प्रतिक्रिया ही क्यों न आए। वो ऐसा करते तब भाजपा सांसदों के लिए सब कुछ होते हुए भी इस सीमा तक जाने का आधार नहीं बनता। गांधी जी ने अपने दुश्मनों के भी कष्ट में पहुंचने पर क्षमा याचना या सेवा की केवल सीख ही नहीं दी स्वयं व्यवहार में इसे उतारा।
मुझे याद है नरसिंह राव सरकार के दौरान तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष डॉ मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन हुआ था और पुलिस द्वारा पानी के बौछार एवं धक्का-मुक्की से उनको चोट आ गई थी। उनके एम्स में भर्ती होने के कुछ समय बाद ही अनेक मंत्री उन्हें देखने पहुंचे। यह नेताओं और सांसदों का एक स्थापित व्यवहार है। सदन में विपक्ष को अपनी बात तरीके से रखने का पूरा अवसर मिलना चाहिए। राज्यसभा में जैसी स्थिति पैदा हुई वह नहीं होनी चाहिए। विपक्ष के नेता और सभापति के बीच मामला एक दूसरे के विरुद्ध हमले तक पहुंच गए। जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मल्लिकार्जुन खड़गे को कहा कि आप मेरे कमरे में आइए तो उन्होंने कहा कि आप वहां बुलाकर अपमान करते हैं मैं क्यों आऊं। जब आप किसी का सम्मान नहीं करते तो हम क्यों करें। उपराष्ट्रपति से विपक्ष की नाराज़गी है तो उसे भी सुनकर दूर करने का पूरा प्रयास होना चाहिए। सत्ता पक्ष के पास जवाब देने का हर अवसर उपलब्ध होता है। असंसदीय शब्दों को निकाला जा सकता है। वर्तमान राजनीति का संकट परस्पर संवाद और एक दूसरे के सम्मान के अभाव का है।
झूठ और फरेब को राजनीति का मुख्य हथियार बनाया जाएगा, जनता को भ्रमित करने के लिए जो है नहीं उन्हें सबसे बड़ा मुद्दा बनाया जाएगा तो इसकी परिणति विषैली, कसैली, गिरी हुई राजनीति में होगी। निष्पक्ष होकर सोचिए क्या नरेंद्र मोदी सरकार में कोई मंत्री या सांसद बाबा साहब आंबेडकर के अपमान करने का साहस दिखा सकता है? वर्तमान राजनीति में कोई पार्टी या नेता ऐसा नहीं कर सकता। गृह मंत्री अमित शाह का पूरा भाषण लगभग पौने दो घंटा का है और उसमें से 12 सेकंड की एक बाइट को संदर्भ से अलग निकाल आप मुद्दा बना रहे हैं। भाजपा से आप असहमत होइए, स्वीकारना होगा कि बाबा साहब आंबेडकर को किसी केंद्रीय सरकार ने सर्वाधिक सम्मान दिया तो वह नरेंद्र मोदी सरकार है।
उदाहरण के लिए उनसे जुड़े पांचों स्थलों को आकर्षक पंच तीर्थ में बदलने की कभी किसी पार्टी और सरकार ने प्रस्ताव नहीं दिया। संविधान दिवस मनाने की शुरुआत मोदी सरकार ने की। उनको भारत रत्न विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने तब दिया जब भाजपा, बसपा और वामपंथी पार्टियां बाहर से समर्थन दे रही थी। जिसके आधार पर अमित शाह से त्यागपत्र और क्षमा याचना की मांग है उसी में आगे वे कहते हैं कि हमें तो आनंद है कि आप आंबेडकर जी का नाम लेते हैं लेकिन आपका इतिहास उनका अपमान करने का है। फिर वे ऐसी घटनाएं सामने लाते हैं। लोकसभा चुनाव में संविधान खत्म हो जाएगा आरक्षण खत्म हो जाएगा जैसे झूठे नैरेटिव की आंशिक सफलता से कांग्रेस और विपक्ष को लगा कि देश की जनता को भ्रमित किया जा सकता है, इसलिए वे अनैतिक राजनीति कर रहे है। लोकसभा चुनाव में विपक्ष द्वारा झूठ फैलाने के प्रत्युत्तर में भाजपा ने भी वो मुद्दे उठाए जो उस रूप में नहीं थे। जो है नहीं उसके लिए गृह मंत्री इस्तीफा दें और क्षमा याचना करें यह संभव नहीं और इसका अंदाजा विपक्षी नेताओं को है।
आप झूठ और फरेब करते हैं तो दूसरी ओर से भी इसी तरह का प्रत्युत्तर मिलेगा। इसकी आधारभूमि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार गठन के साथ ही हो गई थी क्योंकि हमारे देश में नेताओं, बुद्धिजीवियों, एक्टिविस्टों का ऐसा वर्ग है जो यह पचा नहीं सकता कि मोदी को देश कभी प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता शीर्ष पर पहुंचा देगा। कांग्रेस नेता मणि शंकर अय्यर ने हाल में प्रकाशित अपनी पुस्तक में लिखा है कि वह यह नहीं सोच सकते थे ऐसे व्यक्ति को देश प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहेगा। संघ और भाजपा से वैचारिक मतभेद वास्तव में नफरत और जुगुप्सा की सीमा तक है।
जब राहुल गांधी द्वारा राफेल का मुद्दा उठाने और प्रधानमंत्री चोर हैं, चौकीदार चोर है जैसे नारा देने से मामला बिगड़ गया। उच्चतम न्यायालय में क्षमा याचना के शपथ पत्र के बावजूद उनमें बदलाव नहीं आया। वस्तुत: वर्तमान राजनीति में शांत और विवेकशील बातचीत की गुंजाइश खत्म है। यह अब देश विवेकशील , सक्षम व प्रभावी लोगों का दायित्व है कि राजनीति को सामान्य पटरी पर लाने के लिए संगठित होकर जो कर सकते हैं करें। क्या जो हो गया हो रहा है उसके आगे की कल्पना आपको डराती नहीं है? अगर डराती है तो इसकी पुनरावृत्ति न हो इसकी कोशिश तो करनी होगी।