30 दिसंबर 1971 की सुबह केरल के कोवलम के नज़दीक हेलसीओन कैसल होटल में कर्मचारी नादेशा पणिकर ने सुइट के दरवाज़े की घंटी बजाई। यह नाश्ते का समय था और पणिकर भीतर सो रहे VIP गेस्ट और वैज्ञानिक विक्रम साराभाई को उठाने पहुंचा था। साराभाई अक्सर इस होटल में रुकते थे और उनकी आदत सुबह जल्दी उठने की थी। पणिकर ने कई बार घंटी बजाई लेकिन अंदर कोई हलचल नहीं हुई और इससे पणिकर परेशान हो गया।
पणिकर ने एक खिड़की से देखा कि मच्छरदानी के अंदर साराभाई शांतिपूर्वक लेटे हुए थे। इससे परेशान होकर पणिकर दौड़कर होटल के मैनेजर के पास पहुंचा, इसके बाद दूसरी चाभी से दरवाज़ा खोला गया। साराभाई के सीने पर एक खुली हुई किताब रखी थी। जल्द ही डॉक्टर को बुलाया गया और जब उसने जांच की तो पता चला कि दो घंटे पहले ही उनका स्वर्गवास हो चुका था। जिस समय साराभाई का निधन हुआ उस समय उनकी उम्र केवल 52 वर्ष थी।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक साराभाई
12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद में जन्मे विक्रम साराभाई, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डिग्री करने के बाद वापस भारत लौट आए थे और उनका सपना था कि भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी जगह बनानी चाहिए। उन्होंने इसके लिए कड़ी मेहनत शुरू की और इस कड़ी में पहला कदम बढ़ाते हुए 1962 में डिपार्मेंट ऑफ एटमिक एनर्जी के तहत भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की स्थापना की गई थी। यही आगे चलकर 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के रूप में बदल गया। वे ISRO के पहले चेयरमैन थे और इनके चलते विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक भी कहा जाता है।
विक्रम साराभाई के शव का नहीं हुआ पोस्टमॉर्टम
साराभाई के निधन के बाद उन्हें हार्ट अटैक आने का दावा किया गया था। साराभाई को उनकी मृत्यु से कुछ दिनों पहले ही उनके डॉक्टर ने पूरी तरह से फिट घोषित किया था और निधन से पिछली शाम भी उनके चेहरे पर कोई बीमारी का भाव नहीं था वे पूरी तरह फिट थे। निधन के एक दिन पहले साराभाई ने मशहूर आर्किटेक्ट चार्ल्स कोरिया से समुद्र में उनके साथ तैरने का वादा किया था। अमृता शाह ने उनकी बायोग्राफी ‘विक्रम साराभाई: अ लाइफ‘ में लिखा है कि विक्रम साराभाई के निधन के बाद इसमें अंतर्राष्ट्रीय साज़िश की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी।
अमृता, विक्रम साराभाई की दोस्त कमला चौधरी को लेकर लिखती हैं, “कमला ने बाद में दावा किया कि विक्रम ने उन्हें बताया था कि अमेरिकी और रूसी दोनों उस पर नज़र रख रहे थे। भाभा की मृत्यु ने बाद भी इसी तरह की अटकलें लगाई गई थीं लेकिन विक्रम के शव का कोई पोस्टमॉर्टम नहीं किया गया था।” हालांकि, विक्रम साराभाई के बेटे कार्तिकेय साराभाई का कहना था कि उनके पिता का अंतिम संस्कार उनकी दादी (विक्रम की मां सरला देवी) के कहने पर नहीं किया गया था।
नांबी नारायणन ने उठाए सवाल
पूर्व अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इसरो जासूसी मामले के आरोपी रहे एस नांबी नारायणन ने मलयाली भाषा में आई अपनी आत्मकथा Ormakalude Bhramanapatham (orbit of memories) में विक्रम साराभाई की मौत को लेकर सवाल उठाए थे। नारायणन ने ISRO में एक जूनियर के तौर पर साराभाई के साथ काम किया था। नारायणन ने लिखा, “साराभाई की मौत को लेकर कई प्रश्न हैं। अगर उन्हें मारा गया था तो संभव है कि इसके पीछे कोई अंतर्राष्ट्रीय साज़िश हो। वरना साराभाई के जैसी वैज्ञानिक प्रतिभा की इतनी अप्राकृतिक तरीके से मौत कैसे हो गई थी।”
नारायणन ने साराभाई को ऐसे शख्स के तौर पर याद किया है जो अपने स्वास्थ्य का पूरी तरह से ध्यान रखते थे। उन्होंने लिखा है, “विक्रम ने अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी सिगरेट या शराब नहीं पी थी। तो फिर उसकी ऐसी मौत कैसे हुई? यह जानते हुए भी कि मृत व्यक्ति इतना बड़ा वैज्ञानिक था, बिना पोस्टमॉर्टम के ही उनका दाह संस्कार क्यों किया गया था?”
नारायणन का कहना है कि साराभाई की मौत को परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा की मौत से जोड़कर देखा जाना चाहिए। उन्होंने पत्रकार ग्रेगरी डगलस की ‘कन्वर्सेशन विद द क्रो‘ का हवाला दिया है जिसमें सीआईए अधिकारी रॉबर्ट क्रॉली ने आरोप लगाया है कि भाभा की मौत में अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA का हाथ था। जनवरी 1966 में भारत के परमाणु प्रोग्राम के जनक भाभा का यूरोप के ‘मॉन्ट ब्लैंक’ में प्लेन क्रैश में निधन हो गया था।
उन्होंने लिखा, “इसमें क्रॉली ने बताया है कि 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की जीत ने अमेरिका को असहज कर दिया था और वह भारत के परमाणु शक्ति के रूप में उभरने को चिंता की दृष्टि से देख रहा था। किताब में कहा गया है कि भारत के परमाणु सपनों को बिना कोई सबूत छोड़े मॉन्ट ब्लैंक पर मिटा दिया गया था। इसे एकसाथ देखें, साराभाई की मौत और (इसरो) जासूसी मामला हमें असहज करने वाला है।”
साराभाई और भाभा जैसे कई ऐसे हाई प्रोफाइल मामले हैं जिनमें मौत की असली वजहों का पता नहीं चल सका है। इनमें बड़े-बड़े भी वैज्ञानिक शामिल हैं, यहां तक की भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री तक की मौत पर सवाल उठते रहे हैं।