डोनाल्ड ट्रम्प जनवरी 2025 में दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति की शपथ लेने वाले हैं लेकिन इससे पहले ही वो एक्शन मोड में नज़र आ रहे हैं. राष्ट्रपति-निर्वाचित डोनाल्ड ट्रंप ने जहां बुधवार (18 दिसंबर, 2024) को कनाडा पर एक और हमला करते हुए 51वें राज्य के विवाद को फिर से उठाया वहीं रविवार (22 दिसंबर, 2024) को ट्रंप ने पनामा नहर पर कब्जा वापस लेने की धमकी दी है।
डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका और पनामा के रिश्तों में बढ़ते तनाव को हवा देते हुए आरोप लगाया है कि पनामा अमेरिकी मालवाहक जहाज़ों से ज़्यादा मनमानी शुल्क वसूल रहा है। रविवार को एरिज़ोना में अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा, “पनामा हमें मनमानी फीस वसूल रहा है—यह पूरी तरह से अनुचित है। यह हमारे लिए बहुत महंगा हो गया है, और हम इसे तुरंत रोकेंगे।”
पनामा नहर पर अमेरिका क्यों चाहता है नियंत्रण
रविवार को ट्रंप ने एरिज़ोना में टर्निंग पॉइंट यूएसए नाम के एक कंजर्वेटिव ग्रुप को संबोधित करते हुए पनामा नहर पर कब्जा वापस लेने की धमकी थी। इसके जिसके उत्तर में बिना किसी देरी के ही पनामा के राष्ट्रपति होसे राउल मुनीलो ने ट्रंप को जवाब देते हुए कहा कि राष्ट्रपति मुनीलो ने कहा, ”पनामा नहर का हर वर्ग मीटर हमारा है और इसके चारों तरफ़ का इलाक़ा भी हमारा है. पनामा की संप्रभुत्ता और स्वतंत्रता पर कोई समझौता नहीं होगा.” दरअसल पनामा नहर, जो 82 किलोमीटर लंबी है, अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ती है। इसका निर्माण 1900 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ, और 1914 में इसे यातायात के लिए खोला गया। पहले इस पर अमेरिका का नियंत्रण था, लेकिन 1977 तक पनामा और अमेरिका का संयुक्त नियंत्रण था। 1999 में आते आते पनामा ने पूरी तरह से इस नहर पर अपना नियंत्रण प्राप्त कर लिया।
यह नहर, जो विश्व व्यापार का एक अहम हिस्सा है, हर साल लगभग 14,000 पोतों की आवाजाही का गवाह बनती है, जिनमें कार ले जाने वाले कंटेनर शिप, तेल, गैस और अन्य उत्पादों से भरे पोत शामिल हैं। यह नहर चीन और अमेरिका के बीच की व्यापारिक कड़ी बन चुकी है, खासकर तब से जब चीन ने वैश्विक व्यापार में अपनी ताकत बढ़ाई है। विशेषज्ञों के अनुसार, चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण पनामा की रणनीतिक अहमियत और भी बढ़ गई है, क्योंकि यह नहर चीन से अमेरिका के पूर्वी तट को जोड़ती है।
अमेरिका की चिंता इस बात को लेकर है कि इस नहर से लगभग 75 प्रतिशत कार्गो अमेरिका की ओर जाता है या अमेरिका से आता है। पनामा नहर से होने वाला सालाना कारोबार करीब 270 अरब डॉलर यानी अमरीका के कुल समुद्री व्यपार का 14% का है। ऐसे में अमेरिका चाहता है कि इस अहम जलमार्ग पर किसी भी तीसरे देश का अप्रत्यक्ष नियंत्रण न हो, क्योंकि यह सीधे तौर पर अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है।
ड्रैगन और ईगल की टक्कर
2017 में पनामा ने चीन की ‘एक देश, एक नीति’ का समर्थन करते हुए ताइवान से अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिए थे, जिससे चीन के साथ इसके संबंध मजबूत हो गए। इस कदम को अमेरिका ने कड़ी आलोचना की और इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखा। अमेरिका ने इसका विरोध करते हुए, लैटिन अमेरिका के देशों, खासकर कोलंबिया, के साथ अपने व्यापार और रिश्तों को बढ़ाना शुर कर दिया था। यही नहीं 2017 के बाद से ही अमरीका पनामा के रिश्तों में टकराव जैसी संभावनाएं बनने लगीं थी। इस बढ़ते तनाव के बीच पनामा का चीन के साथ सहयोग और अमेरिका से विवाद, अब एक नया मोड़ ले चुका है, जिसमें पनामा नहर जैसे रणनीतिक जलमार्ग पर नियंत्रण का सवाल खड़ा हो गया है।
पनामा नहर, जो अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक मार्ग का एक महत्वपूर्ण बिंदु है, अब एक संघर्ष का केंद्र बन चुका है। ट्रंप ने इस नहर के संचालन में चीन के बढ़ते प्रभाव पर चिंता जताई थी, जबकि पनामा के राष्ट्रपति ने इसका खंडन किया। लेकिन इस विवाद को केवल एक द्विपक्षीय मुद्दे तक सीमित नहीं रखा जा सकता। यह अमेरिका और चीन के बीच एक व्यापक कोल्ड वॉर का हिस्सा बन चुका है, जिसमें पनामा जैसी छोटी ताकतें भी अपनी भूमिका निभा रही हैं।
इस समय जब रूस-यूक्रेन युद्ध और इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष जैसे बड़े वैश्विक विवादों की धुरी बनी हुई है, क्या यह नहीं लगता कि हम विश्व युद्ध 3 की शुरुआत के कगार पर खड़े हैं? इन सभी संघर्षों और बढ़ते तनावों को देखते हुए, यह सवाल उठता है कि क्या हम एक नई वैश्विक लड़ाई की ओर बढ़ रहे हैं, जो किसी भी वक्त दुनिया को पूरी तरह से बदल सकती है।