नेताजी की आजाद हिंद फौज के खजाने का क्या हुआ? क्यों खजाने की लूट पर जांच से बचते रहे जवाहर लाल नेहरू

आम हिंदुस्तानियों ने आजादी के लिए नेताजी की अपील पर अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था, लेकिन 1945 में उनके रहस्यमई परिस्थितियों में लापता होने के बाद इस धनराशि का क्या हुआ? ये आज भी बड़ा सवाल है

नेहरू अपने निजी अकाउंट में जमा कराना चाहते थे कुछ खजाना!

नेहरू अपने निजी अकाउंट में जमा कराना चाहते थे कुछ खजाना!

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की वर्ष 1945 में हुए विमान हादसे में मृत्यु होने के दावे को लगभग खारिज किया जा चुका है, लेकिन इससे जुड़ा एक और रहस्य है जिस पर आज तक पर्दा पड़ा हुआ है और वो है आजाद हिंद फौज के खजाने का रहस्य। नेताजी भारत की आजादी की लड़ाई में धन के लिए किसी दूसरे देश या सहयोगियों पर निर्भर नहीं रहना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने ये लड़ाई भी भारतीयों से मिले दान से लड़ने का फैसला किया था।

नेताजी के व्यक्तित्व और आजादी के प्रति उनके समर्पण का ही असर था, कि उनकी एक अपील मात्र पर लाखों-करोड़ों भारतीयों ने अपना सर्वस्व आजाद हिंद फौज को समर्पित कर दिया था। INA के इस खजाने में भारी मात्रा में नकदी के अलावा सोना-चांदी और दूसरे कीमती आभूषण भी थे। आजाद हिंद सरकार की इस धनराशि का प्रबंधन उचित ढंग से हो सके, इसके लिए बकायदा आजाद हिंद बैंक की स्थापना की गई थी।

बोस की संदिग्ध मृत्यु की जांच को लेकर बनी शाहनवाज कमेटी की रिपोर्ट में एक जगह बताया गया है कि जब नेताजी रंगून से बैंकाक आए तो उनके साथ करीब एक करोड़ रुपए का खजाना था, जिसमें ज्यादातर आभूषण और सोने की छड़ें थीं। हालांकि, ये खजाना 1945 के बाद कहां गया इसे लेकर कई सवाल हैं।

‘बेघर महिला ने दिया था INA को दान’

नेताजी बोस पर ‘नेताजी, आजाद हिंद सरकार और फौज – भ्रांतियों से यथार्थ की ओर‘ पुस्तक लिखने वाले इतिहासकार प्रोफेसर कपिल कुमार बताते हैं, “जब लोग INA को चंदा दे रहे थे तो एक गरीब औरत वहां पहुंची, जिसके कपड़े तक फटे हुए थे। उसके हाथ में कुछ सिक्के थे, जो वो नेताजी के हाथ में सौंपना चाह रही थी। नेताजी ने हिचकते हुए वे सिक्के ले लिए।” वह बताते हैं, “कर्नल महमूद जो उस वक्त वहीं थे, उन्होंने नेताजी से पूछा, ‘आप हिचक क्यों रहे थे’ तो नेताजी ने कहा मैं हिचक इसलिए रहा था कि अगर मैं इससे पैसे नहीं लेता तो यह समझेगी कि मैं गरीबों को साथ नहीं जोड़ना चाहता लेकिन अगर मैं पैसा ले लेता हूं तो इसके पास खाने का पैसा भी बचेगा कि नहीं।”

इसके बाद नेताजी ने पता कराया कि वह महिला कौन है, और कहां रहती है? जानकारी करने पर पता चला कि उस महिला का घर तक नहीं है। ये पता चलने के बाद आजाद हिंद सरकार उसके रहने का इंतजाम कराया। प्रोफेसर कपिल बताते हैं, “नेताजी ने कर्नल महमूद को आदेश दिए कि जब भारत आजाद हो जाएगा तो इस महिला को जहां भी यह भारत में जाकर रहना चाहती हो वहां उसके रहने का इंतज़ाम किया जाए। वर्ष 1947 के बाद कर्नल महमूद ने ऐसा ही किया और उस महिला को सिंगापुर से लाकर भारत में बसाया गया था।”

नेहरू ने अपने निजी खाते में लिया पैसा?

प्रोफेसर कपिल कुमार ने बताया है कि नेताजी के रहस्यमई स्थितियों में गायब होने के बाद वर्ष 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू सिंगापुर गए थे और उन्हें 5 लाख रुपए का सोना दिया गया था। प्रोफेसर कपिल ने कहा, “इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के सरदार साहब ने नेहरू को 5 लाख रुपए का सोना दिया था और उन्होंने वहां के इंडियन ओवरसीज बैंक में अपना खाता खोलकर, अपने उस खाते में वह सोना जमा करा दिया है।” उन्होंने कहा, “जब नेहरू ने आकर INA वेलफेयर कमिटी के सामने रिपोर्ट दी तो, उसमें इस 5 लाख रुपए का कहीं जिक्र नहीं था। आज तक कोई नहीं जानता कि वो सोना कहां चला गया।”

‘खजाना लुटता रहा नेहरू देखते रहे’!

2016 में सरकार द्वारा सार्वजनिक की गईं फाइलों के हवाले से प्रोफेसर कपिल बताते हैं कि जापान से भारतीय मिशन से लोग सरकार को लिख रहे थे कि टोक्यो में मौजूद 2 लोगों के पास आजाद हिंद फौज के खजाने के पैसे हैं और वे इसे खा रहे हैं। उन्होंने कहा, “इस पर कार्रवाई होनी चाहिए। बाद में वो फाइल भारत के प्रधानमंत्री नेहरू के पास गई तो उस पर लिखा गया ‘सीन’ यानी देख लिया। जिसका मतलब था कि इसमें कार्रवाई करने की कोई जरूरत नहीं है।”

‘₹40 लाख का सोना नेहरू के हस्तक्षेप के बाद गायब’

इतिहासकार प्रोफेसर कपिल कुमार ने सिंगापुर में अंग्रेजों द्वारा जब्त किए गए आजाद हिंद फौज के खजाने का प्रधानमंत्री नेहरू से जुड़े एक और किस्से का जिक्र किया है। प्रोफेसर कपिल बताते हैं, “उसमें करीब 40 लाख रुपए का सिर्फ सोना था और बाकी नकदी अलग थी। खजाना जब्त करने के बाद भारत के प्रधानमंत्री को खत लिखा गया कि इसका क्या किया जाना चाहिए तो नेहरू कहते हैं इस खजाने को मेरे सिंगापुर वाले इंडियन ओवरसीज बैंक के अकाउंट में जमा करा दिया जाए।”

इसके बाद जब खजाने को नेहरू के अकाउंट में जमा किया गया तो नेहरू ने उसे हिंदुस्तान और पाकिस्तान में आधा-आधा  बांटने को कह दिया। प्रोफेसर कपिल कुमार बताते हैं, “इस पर जब ब्रिटिश अधिकारियों ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से बात करने की बात कही तो नेहरू ने कहा कि मैं खुद उनसे बात करूंगा।” कपिल कुमार बताते हैं, “इस फाइल पर 1952 की आखिरी नोटिंग है कि भारत के पीएम ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से बात करने को कहा है तब तक हमें इंतजार करना होगा। उसके बाद फाइल पर कुछ नहीं है, वो सोना और पैसा कहां गया यह आज तक एक राज है।”

‘नेहरू ने नहीं माना खजाने पर शाहनवाज का सुझाव’

नेताजी की हवाई जहाज हादसे में संदिग्ध मृत्यु की जांच के लिए 3 सदस्यीय कमिटी बनाई गई थी। इस शाहनवाज कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में नेताजी के खजाने का जिक्र किया था। इसमें उन्होंने खजाने के बक्सों को लेकर कुछ हैरान करने वाले आंकड़े दिए हैं। हालांकि, उन्होंने गहराई से इसकी जांच नहीं की थी। प्रोफेसर कपिल बताते हैं, “शाहनवाज ने रिपोर्ट में लिखा कि समय बीत चुका है यह मेरी कमीशन की इंक्वायरी का विषय नहीं है और भारत सरकार चाहे तो इस खजाने को लेकर दूसरी इंक्वायरी करा सकती है। लेकिन प्रधानमंत्री नेहरू ने उस पर ध्यान नहीं दिया था।”

इनके अलावा नेताजी के खजाने को लेकर अभी कई बड़े और अनसुलझे सवाल हैं जिनका जवाब मिलना बाकी है। इसमें जापान के बैंक में जमा आजाद हिंद फौज के पैसे के गायब होने जैसे कई सवाल हैं। दावा किया जाता है कि नेताजी के खजाने की इस लूट में उस वक्त के कई बड़े नौकरशाह भी शामिल थे। प्रोफेसर कपिल का एक ओर दावा है कि यह लूट 20वीं सदी में किसी सरकारी खजाने की सबसे बड़ी लूट थी लेकिन तत्कालीन सरकारों ने इस पर कभी जांच नहीं कराई। आज भी यह बड़ा रहस्य है कि आखिर आजाद हिंद फौज के खजाने को किसने लूटा और वो किसके पास गया? भारत के आम लोगों के द्वारा अपनी आजादी के लिए दिया गया यह पैसा और सोना-चांदी कहां है? इसकी गहराई से जांच किए जाने की जरूरत है।

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