राजनीति में पिछले कुछ समय से चुनावी हिंदू बनने का एक चलन सा चल पड़ा है। जो नेता आम दिनों में अक्सर मुस्लिम तुष्टिकरण की पिच पर खुलकर बैटिंग करते दिखते हैं, वे चुनाव नज़दीक आते-आते हिंदुत्व का चोला ओढ़ लेते हैं। दिल्ली में अगले कुछ हफ्ते में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया अरविंद केजरीवाल पर भी ऐसे ही आरोप लग रहे हैं।
केजरीवाल ने कुछ दिनों पहले एलान किया था कि अगर वे दिल्ली में फिर से सत्ता में लौटते हैं तो मंदिर के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को हर महीने 18,000 रुपए का भत्ता दिया जाएगा। इस एलान के ज़रिए केजरीवाल खुद को हिंदुओं का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। इनके सबसे बीच अब दिल्ली में एक नई बहस शुरू हो गई है जो राजधानी में मंदिरों को गिराने का आदेश देने से जुड़ी हुई है।
एलजी और AAP सरकार के बीच मंदिर तोड़ने का विवाद
दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने कुछ दिनों पहले उप-राज्यपाल विनय सक्सेना को पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था कि सक्सेना के आदेश पर मंदिरों और बौद्ध धर्म से जुड़े कुछ स्थलों को तोड़ने के निर्देश जारी किए हैं। इस पत्र में आतिशी ने दिल्ली में अलग-अलग जगहों पर स्थित 6 धार्मिक स्थलों का ज़िक्र किया था। इस चिट्ठी पर उप-राज्यपाल के सचिवालय ने जवाब देते हुए कहा कि ना तो किसी हिंदू मंदिर, मस्जिद, चर्च या अन्य किसी पूजा स्थल को तोड़ा जा रहा है और ना ही इससे जुड़ी कोई फाइल आई है। सचिवालय ने कहा कि मुख्यमंत्री अपनी और अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री (केजरीवाल) की विफलताओं से ध्यान भटकाने के लिए घटिया राजनीति कर रही हैं। जब आतिशी ने उप-राज्यपाल को घेरना चाहा तो उनके दफ्तर ने दिल्ली की केजरीवाल सरकार के ‘मंदिरों को तोड़ने’ का चिट्ठा जारी दिया है।
केजरीवाल की सरकार ने तोड़े 22 मंदिर
एलजी के ऑफिस ने जानकारी दी है कि केजरीवाल और उनके मंत्रियों ने 2016 से 2023 के बीच 22 मंदिरों समेत हिंदुओं की 24 धार्मिक संरचनाओं को तोड़ने के आदेश दिए थे। एलजी दफ्तर का दावा है कि उनके पास इस बात के दस्तावेज़ मौजूद हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 8 फ़रवरी 2023 को दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में 9 मंदिरों को गिराने की सिफारिश की थी। केजरीवाल और उनकी सरकार ने मंदिरों को ध्वस्त करने के तो आदेश दिए लेकिन इसी कालखंड में केजरीवाल सरकार ने मज़ारों गिराने की धार्मिक समिति की सिफारिशों को खारिज कर दिया था। गौर करने वाले बात यह भी है कि जिन मज़ारों को ध्वस्त करने की बात की गई थी, वे मज़ारें अवैध थीं। जुलाई 2017 में सत्येंद्र जैन ने सिफारिशें खारिज करते हुए इसे ‘धार्मिक भावनाओं और संवेदनशीलता’ का मामला बताया था।
पुजारियों के लिए एलान लेकिन प्रदर्शन कर रहे इमाम
अब जैसे ही चुनाव नज़दीक आए तो मंदिरों को तोड़ने का आदेश देने वाले केजरीवाल ने पुजारियों और ग्रंथियों को वेतन देने का एलान कर दिया है। इसे इस तरह भी समझिए कि केजरीवाल की ही सरकार इमामों को कई वर्षों से सैलरी दे रही है लेकिन उनकी पार्टी को इमामों और ग्रंथियों की याद चुनाव से ठीक पहले ही आई है। हालांकि, इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि केजरीवाल और आतिशी की सरकार ने कई महीनों से इमामों की भी सैलरी नहीं दी है। दिल्ली वक्फ बोर्ड के इमाम केजरीवाल के घर के बाहर प्रदर्शन करते हुए दावा कर रहे हैं कि उन्हें 17 महीने से वेतन नहीं मिला है। इस योजना के लिए केजरीवाल कितने गंभीर है इसका अंदाजा लोग लगा सकते हैं।
केजरीवाल क्यों हैं चुनावी हिंदू?
अरविंद केजरीवाल पर चुनावी हिंदू होने का आरोप पहली बार लगा हो ऐसा भी नहीं है। राम मंदिर को लेकर भी नानी के हवाले से दिया गया उनका ‘मंदिर विरोधी’ बयान भी चर्चा का विषय रहा था लेकिन जब राम मंदिर बन गया तो वे दर्शन करने चले गए। दिल्ली के पूर्व सीएम के एक सभा में दिए गए उनके भाषण ‘जवाहर लाल नेहरू जी ‘स्टील अथॉरिटी आफ इंडिया’ की जगह मंदिर बना देते तो क्या इस देश का विकास हो सकता था?’ इसका मतलब साफ था कि वे मंदिर को विकास की राह में रोड़ा मान रहे थे। हालांकि, मंदिरों के निर्माण से विकास को किस तरह गति मिलती है इसका उदाहरण अयोध्या, काशी, मथुरा जैसे स्थानों से दिखता है।
केजरीवाल पर हिंदुओं के पवित्र चिह्न ‘स्वास्तिक’ के अपमान का भी आरोप लगा जब उन्होंने स्वास्तिक के पीछे झाड़ू लेकर भागने की एक तस्वीर शेयर की थी। उन पर कश्मीरी पंडितों की पीड़ा का ‘मज़ाक’ उड़ाने का भी आरोप है। केजरीवाल पर इसके अलावा हिंदू विरोधी होने के तमाम तरह के आरोप हैं लेकिन दूसरी ओर उन्होंने करेंसी पर भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्ति लगाने की भी वकालत की थी। इसके अलावा उन्होंने बुज़ुर्गों को मुफ्त में तीर्थ यात्रियों पर भेजने के लिए योजना भी शुरू की है। ऐसे दावे लगातार सामने आते रहते हैं कि केजरीवाल को राजनीतिक विचारधारा की स्पष्टता से ज़्यादा अपनी वोटों की चिंता है। अब चुनाव से पहले मंदिरों को तोड़ने की इजाज़त देना और चुनाव नज़दीक आने पर पुजारियों के वेतन से जुड़ी योजना लागू करने को वोट बैंक की राजनीति के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।