एक समय था जब भारत के वैज्ञानिक सैटेलाइट्स को साइकिल पर ढोकर लॉन्च पैड तक ले जाते थे, और आज वही भारत GSLV-F15 जैसे अत्याधुनिक प्रक्षेपण यान के जरिए अंतरिक्ष में धाक जमा रहा है। कभी अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों ने भारत को क्रायोजेनिक इंजन तकनीक देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि भारत आत्मनिर्भर बने। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ विजन और ISRO के शतत प्रयासों ने वह कर दिखाया, जो कभी असंभव माना जाता था।
आज, जब ISRO ने अपने 100वें मिशन के रूप में श्रीहरिकोटा से GSLV-F15 ने श्री हरिकोटा से NVS-02 सैटेलाइट का सफल प्रक्षेपण किया, तो यह न केवल भारत की वैज्ञानिक श्रेष्ठता का प्रमाण है, बल्कि उन सभी वैश्विक शक्तियों के लिए एक करारा जवाब भी है, जिन्होंने कभी भारत की अंतरिक्ष यात्रा को रोकने का प्रयास किया था। NVS-02 सैटेलाइट, जिसे इस मिशन के तहत सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया गया, भारत के स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम को और अधिक सुदृढ़ करेगा।
ISRO का शतक
46 साल पहले, जब भारत ने पहला Satellite Launch Vehicle-3 (SLV-3) प्रक्षेपण किया था, तो वह दुर्भाग्यवश बंगाल की खाड़ी में गिर गया था। लेकिन इस असफलता ने भारतीय वैज्ञानिकों के हौसले को कमजोर नहीं किया, बल्कि उन्हें और मजबूत बना दिया। आज उसी संघर्ष और मेहनत का नतीजा है कि ISRO ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपनी 100वीं सफल लॉन्चिंग को अंजाम देकर इतिहास रच दिया।
बुधवार, 29 जनवरी 2025 की सुबह 6:23 बजे, इसरो ने GSLV-F15 के जरिए NVS-02 उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजकर एक और स्वर्णिम उपलब्धि अपने नाम कर ली। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन से लैस इस शक्तिशाली रॉकेट ने मात्र 19 मिनट में उपग्रह को सटीक कक्षा में स्थापित कर दिया, जो भारत की बढ़ती वैज्ञानिक ताकत और आत्मनिर्भरता का एक और प्रमाण है।
🌍 A view like no other! Watch onboard footage from GSLV-F15 during the launch of NVS-02.
India’s space programme continues to inspire! 🚀 #GSLV #NAVIC #ISRO pic.twitter.com/KrrO3xiH1s
— ISRO (@isro) January 29, 2025
GSLV-F15 का यह मिशन केवल एक लॉन्च नहीं, बल्कि भारत की अपनी वैश्विक नेविगेशन प्रणाली (NavIC – Navigation with Indian Constellation) को और मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह उपग्रह भारत को सटीक नेविगेशन, सैन्य उपयोग, आपदा प्रबंधन और संचार सेवाओं में आत्मनिर्भर बनाएगा। GSLV-F15 जब 2,250 किलोग्राम वजनी NVS-02 उपग्रह को लेकर सुबह के आसमान में गरजा, तो यह भारत की वैज्ञानिक क्षमता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया। लॉन्च के 19 मिनट बाद, यह सैटेलाइट Geosynchronous Transfer Orbit (GTO) में स्थापित कर दिया गया। GTO वह कक्षा है, जो सैटेलाइट्स को Geostationary Orbit में पहुँचाने में मदद करती है, जिससे वे संचार, मौसम विज्ञान और सामरिक उपयोग के लिए महत्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं।
ISRO की यह 100वीं लॉन्चिंग कई ऐतिहासिक अभियानों की सफलता के बाद आई है। चंद्रयान, मंगलयान, आदित्य L-1, गगनयान जैसे मिशनों ने पहले ही भारत को एक अंतरिक्ष महाशक्ति बना दिया है। PSLV, GSLV और SSLV जैसे लॉन्च वाहनों के माध्यम से इसरो लगातार अंतरिक्ष की नई ऊंचाइयों को छू रहा है।
क्या है NavIC सिस्टम?
NavIC (Navigation with Indian Constellation) भारत का स्वदेशी GPS प्रणाली है, जिसे सटीक स्थिति (Position), गति (Velocity) और समय (Timing – PVT) सेवाएं प्रदान करने के लिए विकसित किया गया है। यह प्रणाली भारत और इसके 1,500 किलोमीटर के दायरे तक सटीक नेविगेशन सेवाएं देने में सक्षम है।
NavIC दो प्रकार की सेवाएं प्रदान करता है— स्टैंडर्ड पोजिशनिंग सर्विस (SPS) और रिस्ट्रिक्टेड सर्विस (RS)। SPS आम जनता के लिए उपलब्ध है और यह 20 मीटर से बेहतर लोकेशन सटीकता और 40 नैनोसेकंड से बेहतर समय सटीकता प्रदान करता है। वहीं, RS विशेष रूप से अधिकृत उपयोगकर्ताओं, जैसे कि रक्षा और सरकारी एजेंसियों के लिए सुरक्षित और अधिक उन्नत सेवा है।
NavIC प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए NVS-01 से NVS-05 तक के पाँच नए सेकंड-जनरेशन NavIC उपग्रहों की योजना बनाई गई है। इन उपग्रहों में L1 बैंड संचार प्रणाली जोड़ी गई है, जिससे यह अधिक उपकरणों और अनुप्रयोगों के लिए उपयोगी बन सके। इस श्रृंखला का पहला उपग्रह NVS-01 को 29 मई 2023 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था।
अब NVS-02 उपग्रह NavIC की सेवाओं को और सटीक बनाने में मदद करेगा। यह उपग्रह नेविगेशन, सटीक कृषि, आपातकालीन सेवाएं, फ्लीट मैनेजमेंट और मोबाइल लोकेशन सेवाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसमें L1, L5 और S बैंड्स पर काम करने वाला एक उन्नत नेविगेशन पेलोड मौजूद है, जिससे यह उच्च स्तर की सटीकता सुनिश्चित करेगा।
इसके अलावा, इसमें रूबिडियम एटॉमिक फ्रिक्वेंसी स्टैंडर्ड (RAFS) नामक अत्यंत सटीक परमाणु घड़ी है, जो समय मापन में अद्भुत सटीकता प्रदान करती है। NavIC प्रणाली भारत को आत्मनिर्भर बनाते हुए, संचार और नेविगेशन के क्षेत्र में एक नई ऊंचाई पर पहुंचा रही है।
आसान नहीं थी क्रायोजेनिक स्वतंत्रता की यात्रा
29 जनवरी को ISRO के GSLV-F15 ने अपने 100वें लॉन्च के साथ एक नई सफलता को छुआ। इस उड़ान में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का 11वां इस्तेमाल किया गया, और भारत ने फिर से यह साबित किया कि वह अब किसी पर निर्भर नहीं, बल्कि अंतरिक्ष की दुनिया में एक मजबूत महाशक्ति बन चुका है। लेकिन इस यात्रा की शुरुआत इतनी आसान नहीं थी।
1990 के दशक में जब भारत ने क्रायोजेनिक इंजन के लिए रूस से संपर्क किया था, तब अमेरिका, फ्रांस और चीन जैसे कुछ ही देशों के पास यह तकनीक थी। क्रायोजेनिक इंजन की संवेदनशीलता, खासकर उनके सैन्य उपयोगों के कारण, कई देश भारत की मदद करने में हिचकिचा रहे थे।
1991 में सोवियत संघ की अंतरिक्ष एजेंसी, ग्लेवकोस्मोस ने भारत को क्रायोजेनिक तकनीक देने पर सहमति दी थी, लेकिन अमेरिका ने इसका कड़ा विरोध किया और दोनों देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगा दिए। इसके बाद जब सोवियत संघ का विघटन हुआ, तो रूस ने यह तकनीक देने से इनकार कर दिया और भारत को सिर्फ क्रायोजेनिक इंजन बेचने का प्रस्ताव दिया, बिना उसकी तकनीक के। यह एक बड़ा झटका था, लेकिन भारत ने इसे अपनी क्षमता को साबित करने का एक अवसर माना।
भारत ने इस चुनौती का सामना किया और 2003 में अपने पहले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण किया। इसके बाद, 2014 में भारत ने अपने पहले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ सफल उड़ान भरकर अंतरिक्ष में अपनी ताकत साबित की।
आज, 29 जनवरी को GSLV-F15 की सफलता इस यात्रा का एक और अहम पड़ाव है, जो दिखाता है कि भारत ने अपनी तकनीकी और रणनीतिक ताकत को विश्व पटल पर मजबूत किया है। यह सफलता सिर्फ एक तकनीकी जीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता और वैज्ञानिक उत्कृष्टता का प्रतीक है। भारत अब अंतरिक्ष क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुका है और इसकी शक्ति पूरी दुनिया के सामने है।