कहते हैं आदि शंकराचार्य ने सात अखाड़ों का गठन किया था जिन्हें धर्म की रक्षा करने के लिए शस्त्र और शास्त्र दोनों की साधना करनी थी। जब से योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने हैं उन्होंने अपनी सरकार को अघोषित रूप से आठवें अखाड़े में परिवर्तित कर दिया है। कम से कम तीर्थराज प्रयाग के अर्धकुंभ और महाकुंभ मेले के समय तो योगी आदित्यनाथ की सरकार आठवें अखाड़े के रूप में ही काम करती नज़र आयी है। 2019 में अर्ध कुंभ के ठीक पहले अक्टूबर 2018 में योगी सरकार ने इलाहाबाद नाम हटाकर उस नगर के पौराणिक नाम प्रयाग के साथ राज जोड़कर प्रयागराज बना दिया। अपने संगम स्नान महत्व के कारण प्रयाग को तीर्थराज कहा जाता है। अब उसके नाम में ही राज जुड़ गया और वह संपूर्ण रूप से प्रयागराज बन गया।
प्रयागराज के कुंभ में प्रदेश सरकार की अपनी भूमिका और व्यवस्था हमेशा से रही है। किसी राज्य में इतना बड़ा आयोजन हो तो सरकार को अपने स्तर पर व्यवस्था बनाने का प्रयास करना ही पड़ता है लेकिन माघ मेला या कुंभ किसी राज्य सरकार की पहचान भी हो सकती है यह काम योगी सरकार ने ही किया। देश-विदेश से करोड़ों लोग हर कुंभ और महाकुंभ में पहुंचते ही हैं। इसमें मठ, संप्रदाय, अखाड़े, योगी साधु के अलावा सामान्य गृहस्थ कल्पवासी या स्नानार्थी बनकर तो विदेशी नागरिक दर्शनार्थी बनकर पहुंचते हैं।
योगी आदित्यनाथ जो कि स्वयं गोरखनाथ मठ के महंत हैं उनके लिए कुंभ का विशेष महत्व तो होगा ही जैसे कि किसी और साधु संन्यासी के लिए होता है। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस विराट आयोजन को राज्य की पहचान के तौर पर प्रस्तुत करने का प्रयास शुरू कर दिया। कुंभ मेला अब देश में यूपी की तो विदेश में भारत की विशिष्ट पहचान बनकर उभरा है। देश का मीडिया जो कभी इसे गंभीरता से नहीं लेता था उसने में भी इस विराट आयोजन के महत्व को पहचाना है और यह समझा है कि इसके बारे में रिपोर्ट करना क्यों ज़रूरी है। इसी तरह विदेश का मीडिया जो अब तक कुंभ मेला को एक तमाशा की तरह प्रस्तुत करता था पहली बार इसकी विराटता का बखान कर रहा है।
इस बखान में योगी सरकार का बहुत अहम योगदान है। सबसे पहले तो इस आयोजन को सिर्फ 4,000 हेक्टेयर के कुंभ मेला परिसर तक सीमित न रखते हुए पूरे प्रयागराज नगर में फैला दिया। अर्धकुंभ और अब महाकुंभ में पूरे नगर की व्यवस्था को दुरुस्त किया गया। इस बार ही राज्य की योगी सरकार ने कुंभ मेले के लिए 7,500 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया था। इस बजट से न सिर्फ कुंभ मेला की व्यवस्था बनायी गयी बल्कि नगर में सड़कों, चौक चौराहों को व्यवस्थित किया गया ताकि भीड़ बढ़ें तो व्यवस्थाएं चाक चौबंद रहें।
केंद्र की मोदी सरकार ने भी रेलवे के दोहरीकरण और एयरपोर्ट के विस्तारीकरण से जुड़ी परियोजनाओं को समय रहते पूरा किया ताकि कुंभ स्नान करने जो लोग आयें उनको आने जाने में असुविधा का सामना न करना पड़े। रेलवे द्वारा 3300 विशेष ट्रेनें चलाने की योजना है तो राज्य सरकार 7000 से अधिक कुंभ स्पेशल बस चला रही है ताकि लोगों को सकुशल लोगों को प्रयागराज संगम तक लाया ले जाया जा सके।
मुख्यमंत्री योगी बार बार इस बात को दोहरा रहे हैं कि इस बार कुंभ में 40 करोड़ श्रद्धालु स्नान करने पहुंचेंगे। अब तक आठ करोड़ से अधिक श्रद्धालु कुंभ स्नान करके जा चुके हैं जबकि मौनी अमावस्या और वसंत पंचमी का मुख्य स्नान शेष है। स्वाभाविक है कि जहां चालीस करोड़ लोग पहुंचनेवाले हों और सबका लक्ष्य उसी चार हजार हेक्टेयर में बने मेला क्षेत्र तक पहुंचना हो तो कोई भी व्यवस्था हो वह असीमित भीड़ के सामने नाकाफी साबित हो ही जाती है। वह जो भीड़ कुंभ की ओर आती है उसका 85 प्रतिशत हिस्सा तो मार्ग सड़क मार्ग का प्रयोग करता है। लोग आते हैं, संगम नहाते हैं, दान पुण्य करते हैं और अपने ही साधनों से वापस चले जाते हैं।
लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि मैनेजमेन्ट और व्यापार जगत के दिग्गज भी कुंभ मेला आ रहे हैं तो वहां प्रशासन की व्यवस्था को देखकर उससे कुछ सीखने की सलाह दे रहे हैं। अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी भी परिवार संग कुंभ नहाने आये और जब पत्रकारों ने उनसे कुंभ के अनुभव के बारे में पूछा तो उन्होंने यही कहा कि यहां इतनी भीड़ होने के बावजूद जिस तरह की व्यवस्था की गयी है उसे मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट को सीखने की ज़रूरत है। कुछ ऐसी ही बात राज्यसभा सांसद सुधा मूर्ति ने भी कही है जो तीन दिन कुंभ मेला परिसर में रहीं।
स्वाभाविक है जो कुंभ मेला अब तक सरकारों के लिए एक सरकारी आयोजन भर होता था उसे योगी सरकार ने असरकारी आयोजन में बदल दिया। कुंभ मेला निश्चित रूप से विश्व का आठवां अजूबा है जहां इतनी बड़ी संख्या में लोग आते हैं और नहाकर चले जाते हैं। यह आठवां अजूबा इतना असरकारी न होता अगर योगी प्रदेश के मुख्यमंत्री न होते। अपनी कैबिनेट के साथ मेला परिसर में रात बिताने और संगम में डुबकी लगानेवाले योगी आदित्यनाथ ने साबित किया है कि राज्य की वास्तविक पहचान और क्षमताओं को सामने लाकर ही आप उसके विकास का रास्ता खोल सकते हैं।
इसके लिए योगी ने उसे पुराने मिथक को भी तोड़ दिया जिसमें यह तय कर दिया गया था कि हिन्दुओं के किसी आयोजन में शामिल होने भर से सरकार का चरित्र सांप्रदायिक हो जाता है। अयोध्या काशी और प्रयाग से दूरी बनाने की बजाय योगी ने इसे राज्य की पहचान के तौर पर प्रस्तुत किया है। इसीलिए कुंभ मेले के आयोजन को राज्य सरकार ने इतने व्यापक स्तर पर अंगीकार करते हुए उसकी सुगमता के लिए हर व्यवस्था किया है। निश्चित रूप से यह राज्य की नौकरशाही के लिए नया अनुभव होगा लेकिन सच यही है कि योगी सरकार अगर खुद को कुंभ मेला के आठवें अखाड़े के रूप में सक्रिय नहीं करती तो कुंभ मेला की ऐसी चर्चा भी नहीं होती जैसी आज हो रही है।
(यह लेख वरिष्ठ पत्रकार संजय तिवारी ‘मणिभद्र’ द्वारा लिखा गया है। भारतीय चित्त, मानस और काल के प्रबल पैरोकार तिवारी बीते बीस सालों से दिल्ली में रहकर स्वतंत्र पत्रकारिता और लेखन कर रहे हैं। डिजिटल मीडिया में 2007 से बतौर ब्लागर प्रवेश और 2008 में करंट अफेयर पोर्टल विस्फोट डॉट काम की शुरुआत जो 2015 में स्थगित हो गया। फिलहाल, स्वतंत्र लेखन और संपादन में व्यस्त हैं।)