‘हिंदी हैं हम…’: भाषाई विवाद के बीच मेघालय में जनजातीय कार्यक्रम में हिंदी गीत गाती लड़की का वीडियो वायरल

अश्विन ने कुछ दिनों पहले हिंदी को लेकर टिप्पणी की थी जिसके बाद हालिया विवाद शुरू हुआ था

खासी जनजाति के एक कार्यक्रम में हिंदी गीत गाती लड़की

खासी जनजाति के एक कार्यक्रम में हिंदी गीत गाती लड़की

पूर्व भारतीय क्रिकेटर रविचंद्रन अश्विन ने कुछ दिनों पहले चेन्नई में एक प्राइवेट कॉलेज के दीक्षांत समारोह के दौरान हिंदी पर टिप्पणी की थी जिसके बाद इसे लेकर लगातार चर्चा हो रही है। दरअसल, अश्विन ने छात्रों से पूछा था कि वे उनसे किस भाषा में बात करें जिस पर छात्रों की ओर से तमिल में बोलने पर सर्वाधिक प्रतिक्रियाएं सामने आई थीं। बातचीत के दौरान अश्विन के हिंदी में बातचीत किए जाने का पूछने पर कुछ ही छात्रों ने जवाब दिया जिस पर अश्विन ने कहा, “हिंदी, कोई प्रतिक्रिया नहीं। लगता है कि मैं यह कहूं कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि आधिकारिक भाषा है।” अश्विन के इस बयान को कई लोगों ने इसे बेमतलब बताया और इसे हिंदी को लेकर अनावश्यक विवाद बनाने की कोशिश से जोड़ा था।

वहीं, इस विवाद के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ प्रचारक और प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक जे. नंदकुमार ने मेघालय में ‘सारे जहां से अच्छा’ गाती एक बच्ची का वीडियो ‘X’ पर शेयर किया है। उन्होंने लिखा, “मेघालय से एक खूबसूरत और गौरवपूर्ण दृश्य। एक और जहां धार्मिक-राजनीतिक आतंकवादी खुलेआम घूम रहे हैं जो सोचते हैं कि हिंदी बोलना एक बड़ा अपराध है और हिंदी बोलने वालों के खिलाफ कार्य करते हैं।” नंदकुमार ने आगे लिखा, “वहीं, देसी खासी जनजाति गर्व के साथ ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा’ कहकर हमारे देश की सांस्कृतिक एकता और मूल्यों को सुंदर हिंदी शब्दों में प्रस्तुत कर रही है।”

हिंदी को लेकर दशकों से विवाद जारी है दक्षिण भारत के कई राज्यों में कुछ लोग मानते हैं कि सरकार द्वारा अनावश्यक रूप से उन पर हिंदी थोपने की कोशिश की जाती है। हिंदी देश की आधी से ज़्यादा आबादी की मातृभाषा या दूसरी भाषा है तो ऐसे में कई लोग देश की एकजुटता को और मजबूत करने के लिए हिंदी को एक कड़ी के रूप में देखते हैं। ‘किंवा सर्व हिन्दुस्थानची एक भाषा करणे’ पुस्तक के ज़रिए देश में हिंदी को सर्वस्वीकृत भाषा बनाने की मांग करने वाले मराठी भाषी केशव वामा से लेकर गुजराती भाषी महात्मा गांधी ने देश में हिंदी को बढ़ावा दिए जाने की वकालत की थी। ऐसे लोगों की संख्या बहुत बड़ी है और इनमें मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं जो खुद गुजराती भाषी हैं लेकिन वे हिंदी को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बेहिचक और गर्व से इस्तेमाल करते हैं।

आंकड़ों की बात करें तो 55% आबादी हिंदी को या तो मातृभाषा के रूप में या अपनी दूसरी भाषा के रूप में मानती है और 1971 से वर्ष 2011 के बीच हिंदी बोलने वालों की संख्या 2.6 गुना बढ़ी है। लोकतंत्र के शुरुआती दौर में भारत में भाषाई विवाद को लेकर बहुत झगड़ा हो चुका है और गाहे-बगाहे आज भी जारी ही है। हिंदी को संवाद शून्यता खत्म करने वाली भाषा के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि स्थानीय भाषाओं को खत्म कर दिया जाए या उन्हें हाशिए पर पहुंचा दिया जाए। यह वक्त भाषाई विवाद में पड़कर पिछड़ने का बिल्कुल नहीं है ऐसे में लोगों और सरकारों को भाषाई मुद्दों को जनहित में सोच-समझकर ही उठाना चाहिए।

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