नेहरू के जाने से कुंभ में मारे गए थे 1000 लोग, पत्रकार की जुबानी ‘हत्या’ की कहानी: भिखारियों की मौत बता कांग्रेस ने की थी सच छिपाने की कोशिश

महाकुंभ 1954 मौत नेहरू

नेहरू के जाने से कुंभ में मारे गए थे 1000 लोग! (फोटो साभार: HT, IndiaToday)

कुंभ नहीं महाकुंभ कहिए…। तीर्थराज प्रयाग यानी प्रयागराज में दिव्य महाकुंभ की भव्य शुरुआत हो चुकी है। महाकुंभ की शुरुआत से पहले इसकी तैयारियों को लेकर विपक्ष सवाल खड़े कर रहा था। साथ ही कई प्रकार की बातें हो रही थीं। हालांकि अब शुरुआती दो दिनों में ही 4.5 करोड़ (साढ़े चार करोड़) से अधिक श्रद्धालु संगम में स्नान कर चुके हैं। इस दौरान वामपंथी-कट्टरपंथी गैंग कुंभ को बदनाम करने के लिए अफवाह से लेकर अपराध तक तमाम तिकड़म लगा रहा है। लेकिन हिंदूफोबिया से ग्रसित यह गैंग आजाद भारत के पहले कुंभ में मची भगदड़ के कारण जान गंवाने वाले 1000 लोगों की बात नहीं करता। कारण यह कि इसका सीधा संबंध कांग्रेस पार्टी और जवाहर लाल नेहरू से है।

भगदड़ के लिए नेहरू जिम्मेदार?

साल 1954 में आजाद भारत का पहला कुंभ प्रयागराज में आयोजित किया गया था। चूंकि यह आयोजन तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू शहर यानी प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में हो रहा था, इसलिए नेहरू इसमें अतिरिक्त रुचि ले रहे थे। हालांकि ऐसा दावा किया जाता है कि नेहरू की यही रुचि कुंभ में लाशों के अंबार का कारण बनी। हालांकि इस भीषण घटना को मामूली भगदड़ और कुछ भिखारियों की मौत बताकर तब से लेकर अब तक की कांग्रेस असलियत छुपाने की भरपूर कोशिश करती रही है।

दरअसल, 3 फरवरी 1954 को कुंभ के दूसरे शाही स्नान यानी मौनी अमावस्या का दिन था। मां गंगा-यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करने के लिए लाखों लोग एकत्रित हुए थे। लेकिन अव्यवस्थाओं के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में भगदड़ मच गई। ऐसा कहा जाता है कि इस भीषण दुर्घटना में करीब एक हजार लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि सरकार कुछ भिखारियों की मौत का दावा करती रही।

पत्रिका ने बताया था कि 500 लोग मारे गए थे (फोटो साभार: अमृता बाजार पत्रिका/नेहरू मेमोरियल संग्रहालय एवं पुस्तकालय)

इस घटना को लेकर प्रकाशित किए गए आर्टिकल्स और वहां भगदड़ के दौरान मौके पर मौजूद लोगों के बयानों के अनुसार तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद कुंभ मेले के दौरान सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा करने के लिए प्रयागराज पहुंचे थे। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों को ही शाही स्नान के दिन स्नान करना था। इसलिए पूरा प्रशासनिक अमला दोनों ही बड़े नेताओं की आगवानी के लिए आवभगत में लगा हुआ था।

देश के दो बड़े नेता एक साथ एक शहर में वह भी कुंभ जैसे बड़े आयोजन में पहुंचे थे। ऐसे में जब दोनों के शाही स्नान में शामिल होने का समय हुआ तो वीआईपी व्यवस्था कर दी गई और वहां मौजूद अन्य श्रद्धालुओं को स्नान करने से रोक दिया गया। हालांकि श्रद्धालु धीरे-धीरे किला घाट की तरफ बढ़ने लगे। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए बैरिकेड्स लगाए गए थे। लेकिन लाखों की भीड़ के आगे बैरिकेड्स कहां रुकने वाले थे।

घड़ी में सुबह के करीब 10:20 मिनट हो रहे थे। इसी वक्त नेहरू और राजेंद्र प्रसाद की कार त्रिवेणी रोड से आई और बैरियर को पार करके किला घाट की ओर बढ़ने लगी। नेहरू प्रधानमंत्री थे ऐसे में जनता उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़ी और अचानक भीड़ से चिल्लाने की आवाजें आना शुरू हो गईं और एक के बाद एक सैकड़ों लोग जमीन पर गिरते चले गए।

कुंभ में श्रद्धालुओं से मिलते नेहरू (फोटो साभार: अमृता बाजार पत्रिका/नेहरू मेमोरियल संग्रहालय एवं पुस्तकालय)

इसका मतलब साफ था कि नेहरू को देखने के चलते कुंभ में भगदड़ मची थी। कुछ ही पलों में ‘बचाओ-बचाओ’ की आवाज के बीच जो लोग जमीन पर गिर रहे थे, उनके ऊपर से लोग गुजरते जा रहे थे। इसका मतलब यह था कि एक बार नीचे गिरने वाले दोबारा नहीं उठ सके। करीब 1000 लोग भीड़ में कुचले जाने और दम घुटने से काल के गाल में समा गए।

पत्रकार ने बताई थी सच्चाई:

कुंभ में 1000 श्रद्धालुओं की मौत को छिपाने के लिए तत्कालीन सरकार ने तमाम हथकंडे अपनाए थे। लेकिन आनंद बाजार पत्रिका के फोटो जर्नलिस्ट एनएन मुखर्जी ने कांग्रेस और नेहरू की पोल खोल रख दी थी। साल 1989 में ‘छायाकृति’ नामक पत्रिका में छपे संस्मरण में एनएन मुखर्जी ने लिखा था कि हादसे के वक्त वह संगम चौकी के पास बने एक टावर पर खड़े थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को संगम स्नान के लिए आना था। इसके चलते ही यह पूरा हादसा हुआ था।

एनएन मुखर्जी ने अपने संस्मरण में लिखा था कि यह मामला अंतर्राष्ट्रीय मीडिया तक पहुंचने से रोकने के लिए सरकार ने इसे कुछ भिखारियों की मौत बताते हुए बड़ा हादसा मानने से इनकार कर दिया था। हालांकि एनएन मुखर्जी ने हादसे के कई फोटो दिखाए थे। इनमें से कुछ फोटो में महिलाएं महंगे वस्त्र और सोने-चांदी के आभूषण पहने नजर आ रही थीं। इससे यह स्पष्ट हो गया था कि मृतक भिखारी नहीं थे।

संस्मरण में यह भी सामने आया था कि भगदड़ में मारे गए लोगों के शव उनके परिजनों को सौंपने की बजाय ढेर कर सामूहिक रूप से जला दिए गए थे। एनएन मुखर्जी ने लिखा था कि सामूहिक रूप से जल रहे शवों की फोटो लेने के लिए उन्होंने पुलिसकर्मी के पैर पकड़ लिए थे और कहा था कि वह अपनी मृत दादी को आखिरी बार देखना चाहते हैं। इसके बाद उन्हें शवों के पास जाने दिया गया था। इसी दौरान एनएन मुखर्जी ने चुपके से सामूहिक रूप से जलाए जा रहे शवों की फोटो खींच ली थी।

चूंकि आनंद बाजार पत्रिका के फोटो जर्नलिस्ट एनएन मुखर्जी के पास हादसे की खबर और तस्वीर दोनों थी। ऐसे में पत्रिका ने इस हादसे को लेकर पूरी जानकारी प्रकाशित कर दी थी। हालांकि बाकी किसी अखबार या पत्रिका के पास या तो फोटो नहीं थे और यदि थे भी तो बहुत कम, ऐसे में मीडिया में काफी कम जानकारी सामने आ पाई थी। वहीं आनंद बाजार पत्रिका ने बड़े पैमाने पर इसको कवर किया था। इसलिए कांग्रेस का आलाकमान हिला हुआ था और तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने चिल्लाते हुए कहा था, ‘कहां है ये हरा*जा* फोटोग्राफर।’

1954 की कांग्रेस हो या फिर आज की, तमाम सबूतों के बाद भी तब से लेकर अब तक कांग्रेस ने कुंभ में हुई भगदड़ के लिए कभी भी नेहरू को जिम्मेदार नहीं माना। यहां तक कि महाकुंभ 2025 को लेकर सवाल उठाने वाले वामी गैंग से लेकर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव तक को साल 2013 में हुए कुंभ को याद करना चाहिए। दरअसल, अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए साल 2013 में हुए कुंभ में 30 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। हालांकि इस बार महाकुंभ के लिए केंद्र की मोदी सरकार से लेकर राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार तक एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। हर तरह से सुरक्षा व्यवस्था का ध्यान रखा जा रहा है। यही कारण है कि अब तक करीब 5 करोड़ लोगों के स्नान करने के बाद भी कुंभ से किसी भी तरह की अव्यवस्था की खबर सामने नहीं आई है।

 

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