परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में भारत के विकास की बात आती है होमी जहाँगीर भाभा का नाम मानस पटल पर सबसे पहले आता है। परमाणु वैज्ञानिक भाभा का भारत के परमाणु कार्यक्रम के विकास में असीम योगदान है। उन्हें भारत के परमाणु कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। भाभा की 56 साल की उम्र में एक हवाई दुर्घटना में मौत हो गई थी। कहा जाता है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA ने यह विमान दुर्घटना करवाई थी, ताकि भारत परमाणु क्षमता हासिल ना कर पाए। अगर अमेरिका ने महान परमाणु वैज्ञानिक भाभा की हत्या नहीं करवाई होती तो भारत न्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में बहुत पहले ही अग्रणी स्थान हासिल कर चुका होता। वियना जाते हुए 24 जनवरी 1966 को एक विमान दुर्घटना में उनकी 56 साल की उम्र में मौत हो गई। डॉक्टर भाभा के विषय में कहा जाता है कि वे सादगी बेहद पसंद करते थे। वे अपने चपरासी को अपना ब्रीफकेस नहीं उठाने देते थे।
होमी जहाँगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक पारसी परिवार में हुआ था। उनका परिवार बेहद अमीर था। उनकी शुरुआती शिक्षा मुंबई के कैथेड्रल स्कूल और जॉन केनन स्कूल से हुई। पढ़ने में भी वे मेधावी थे और विज्ञान से उनके बचपन से ही लगाव था। इसके बाद वो रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से विज्ञान में स्नातक किया। फिर वे साल 1927 में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए। अपने पिता के कहने पर उन्होंने 18 साल की उम्र में अमेरिका के कैंब्रिज यूनवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की। इस दौरान उनकी रुचि भौतिक शास्त्र यानी फीजिक्स में बढ़ी। इसके बाद वे फीजिक्स की अपनी पढ़ाई जारी रखी। सन 1934 में उन्होंने क़ॉस्मिक रे को लेकर अपना पहला रिसर्च पेपर सामने रखा। वे परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में पढ़ाई और उस क्षेत्र में शोध करने लगे।
सन 1939 में होमी भाभा छुट्टी मनाने भारत आए, लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ जाने के कारण वे लौटकर वापस अमेरिका नहीं जा सके। इसके बाद सन 1940 में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉक्टर सीवी रमन ने उन्हें बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) से जुड़ने को कहा। डॉक्टर रमन के कहने पर भाभा IISc में फीजिक्स पढ़ाने लगे। वहाँ उनके कार्य को बहुत सराहा गया। डॉक्टर होमी जहाँगीर भाभा को डॉक्टर रमन भारत का लियोनार्दो द विंची कहकर बुलाते थे। सन 1945 में जब टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना में उनका अहम योगदान है। वे इसका निदेशक भी बने। इसके बाद वे 1948 में ट्रॉम्बे एटोमिक एनर्जी एस्टैबलिशमेंट के निदेशक बनाए गए।
देश आजाद हुआ तो डॉक्टर होमी जहाँगीर भाभा को सन 1950 में परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया और 1966 में अपनी मृत्यु तक वे इस पद पर बने रहे थे। तब वे भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे। उनकी अध्यक्षता में भारत का परमाणु कार्यक्रम तेजी से तरक्की करने लगा। इससे अमेरिका चिंतित हो गया। हाल में आजाद हुए भारत और वामपंथी रूस की तरफ उसके झुकाव को देखते हुए अमेरिका ने भारत में अपने खुफिया अधिकारियों को तैनात कर दिया। कहा जाता है कि अमेरिका ने उस समय भारत के प्रमुख संस्थानों में अपने एजेंट रखे थे। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय में भी CIA और रूस की खुफिया एजेंसी KGB के लोग थे। कहा जाता है कि सन 1950 और 1960 के दशक में सीआईए ने भारत में प्रकाशन गृह शुरू करने के लिए फंडिंग की थी। इसके जरिए भी उन्हें जानकारी मिल रही थी।
इस बीच अक्टूबर 1965 में डॉक्टर भाभा ने ऑल इंडिया रेडियो पर परमाणु हथियार के बारे में एक घोषणा करके दुनिया के कथित महाशक्तियों को चौंका दिया था। भाभा ने कहा था कि अगर उन्हें छूट मिले तो वे सिर्फ 18 महीने में परमाणु बम बनाकर दिखा सकते हैं। दरअसल, भाभा देश की सुरक्षा, ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति, कृषि और चिकित्सा के क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल की बात करते थे। वे देश के विकास के लिए परमाणु कार्यक्रम को जारी रखना जरूरी मानते थे। डॉक्टर भाभा की सार्वजनिक घोषणा और परमाणु हथियारों पर उनके खुले विचार ने अमेरिका को आतंकित कर दिया। अमेरिका किसी तरह भारत को रोकने की साजिश में लग गया।
इस बीच डॉक्टर होमी भाभा को वियना में एक सम्मेलन में जाना था। 24 जनवरी 1966 को कंचनजंघा नाम की एयर इंडिया की फ्लाइट नंबर 101 से वे मुंबई से ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना के लिए उड़ान भरे। बीच में इसके दो स्टॉपेज थे- दिल्ली और बेरूत। हालाँकि, यह विमान कभी वियना नहीं पहुँच पाया। वहाँ पहुँचने से पहले ही बोइंग 707 का यह विमान यूरोप के आल्प्स पर्वत श्रृंखला की माउंट ब्लैंक पहाड़ियों से टकराकर क्रैश हो गया। इस हादसे में होमी जहाँगीर भाभा समेत विमान में सवार 117 लोगों की जान चली गई। वे वियना एक बेहद महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेने के लिए जा रहे थे। इस घटना को लेकर आधिकारिक तौर कहा गया कि जेनेवा एयरपोर्ट और फ्लाइट के पायलट के बीच लोकेशन को लेकर गलतफहमी हुई। इसके कारण विमान हादसे का शिकार हो गया। हालाँकि, हादसे के बाद विमान का कुछ पता नहीं चला। इसके बाद कहा जाने लगा कि इस विमान में बम रखा गया था और उसमें विस्फोट करके इसे उड़ा दिया गया। वहीं, कुछ अन्य थ्योरी में कहा गया कि इसे लड़ाकू विमान के जरिए मिसाइल से मार गिराया गया था।
प्लेन क्रैश में हुई मौत या थी अमेरिकी साजिश
हादसे के 42 साल बाद साल 2008 में विदेशी पत्रकार ग्रेगरी डगलस ने अपनी किताब ‘कन्वर्सेशन विद द क्रो’ में CIA अधिकारी रॉबर्ट क्राउली के अपनी बातचीत का अंश लिखा है। सीआईए में क्राउली को ‘क्रो’ (यानी शातिर) के नाम से जाना जाता था। क्राउली ने CIA में अपना पूरा करियर वहाँ के योजना निदेशालय में बिताया था। योजना निदेशालय ‘डिपार्टमेंट ऑफ़ डर्टी ट्रिक्स’ (गंदी चालों का विभाग) भी कहा जाता था। क्राउली की अक्तूबर 2000 में मौत हो गई थी। अपनी मृत्यु से पहले क्राउली की पत्रकार डगलस से कई बार बातचीत हुई थी। क्राउली ने डगलस को दस्तावेज़ों से भरे दो बक्से भेजे थे और उन्हें कहा था कि इस बॉक्स को उनकी मौत के बाद ही खोला जाए। डगलस ने ऐसा ही किया। माना जाता है कि उन्हीं दस्तावेजों और बातचीत के आधार पर डगलस ने यह किताब लिखी थी।
पत्रकार डगलस ने क्राउली से बातचीत के आधार लिखा है कि होमी जहाँगीर भाभा की मौत के पीछे CIA का हाथ होने का दावा किया था। क्राउली ने भाभा के प्लेन को बम से उड़ाए जाने की बात मानी थी। डगलस के अनुसार, 5 जुलाई 1996 को क्राउली ने उनसे कहा था, “60 के दशक में भारत ने जब परमाणु बम बनाने पर काम शुरू किया तो हमारी मुश्किलें शुरू हो गईं। वो (भारत) दिखाने की कोशिश कर रहा था कि वो कितना चालाक है और जल्दी ही वह दुनिया की एक बड़ी ताकत बनने जा रहा है। वह सोवियत संघ (वर्तमान में रूस) के कुछ ज़्यादा ही करीब जा रहा था।” डगलस के अनुसार, क्राउली ने उन्हें आगे बताया था, “वो (भाभा) भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक हैं और वो परमाणु बम बनाने में सक्षम थे। इस बारे में उन्हें कई बार सचेत किया गया था, लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया। भाभा ने कहा था कि दुनिया की कोई ताकत भारत को दूसरी परमाणु शक्तियों के बराबर आने से नहीं रोक सकती। वो हमारे लिए ख़तरा बन गए थे।”
सन 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की जीत से अमेरिका में बेचैनी बढ़ गई थी। भारत की बढ़ती परमाणु ताकत को देखकर अमेरिका की चिंता बढ़ गई थी। रॉबर्ट क्राउली ने पत्रकार डगलस से कहा था कि भारत ये सब रूस की मदद से कर रहा था। क्राउली के अनुसार, भाभा जिस वजह से वियना जा रहे थे, उसके बाद अमेरिका की परेशानी और बढ़ती। इसी वजह से विमान के कार्गो में बम विस्फोट करके विमान को उड़ा दिया गया। क्राउली ने माना था कि अमेरिका नहीं चाहता था कि हाल ही में आजाद हुआ एक देश परमाणु शक्ति-संपन्न बने। अमेरिका भारत के परमाणु कार्यक्रम में डॉक्टर भाभा के योगदान को अच्छी तरह जानता था। इसके बाद उन्हें निशाना बनाया गया।
साल 2017 में उस विमान हादसे के कुछ सबूत मिले थे। फ्रांस में आल्प्स की पहाड़ियों के बीच स्थित माउंट ब्लैंक पर एक खोजकर्ता को मानव अवशेष मिले थे। उस समय कहा गया था कि ये मानव अवशेष उन लोगों के हो सकते हैं, जो 1966 के एयर इंडिया के विमान दुर्घटना में मारे गए थे। मानव अवशेष की खोज करने वाले डेनियल रोश ने कहा था, “मैंने इससे पहले इन पहाड़ियों पर कभी भी मानव अवशेष नहीं पाए थे। इस बार मुझे एक हाथ और एक पैर का ऊपरी हिस्सा मिला है।” रोश को जो अवशेष मिले थे, वो किसी महिला के थे। इसके अलावा, वहाँ विमान का जेट इंजन भी मिला था। इससे पाँच साल पहले यानी अगस्त 2012 में इस विमान के राजनयिक मेल का एक बैग मिला था। कुछ भारतीय अखबारों के साथ ‘राजनयिक मेल’ और ‘विदेश मंत्रालय’ की मुहर लगी जूट की थैली मिली थी। साइट पर एक कैमरा भी मिला था। इसके बाद साल 2013 में एक फ्रांसीसी पर्वतारोही को साइट पर एयर इंडिया का लोगो और 2,25,000 पाउंड (2.40 करोड़ रुपया) से अधिक मूल्य के माणिक, नीलम और पन्ने वाला एक धातु का डिब्बा मिला था।