‘ये दुख काहे खत्म नहीं होता’ साल 2015 में आई फिल्म मसान का एक डॉयलॉग बहुत वायरल हुआ था। इस पर ढेर सारे मीम भी बनाए जाते हैं। इस डॉयलॉग को लेकर एक मीम तो कांग्रेस के लिए भी बनता ही है। इस मीम की बात का कारण कांग्रेस का वह दुख है जो लगातार बढ़ता जा रहा है। एक-एक कर सारे सहयोगी कांग्रेस का हाथ छोड़कर जाते जा रहे हैं। इसमें नया नाम ‘डीप स्टेट की कंपनी’ हिंडनबर्ग का है। दरअसल, हिंडनबर्ग के फाउंडर नेट एंडरसन ने कंपनी को बंद करने का ऐलान कर दिया है। कहा तो यह भी जा रहा है कि ट्रंप के सत्ता में आने से पहले हिंडनबर्ग (Hindenburg) ने अपना कारोबार समेटने में ही भलाई समझी है।
हिंडनबर्ग के फाउंडर नेट एंडरसन ने बुधवार (15 जनवरी, 2025) को कंपनी की वेबसाइट पर एक लंबा-चौड़ा बयान छापा है। इस बयान में एंडरसन ने कंपनी शुरू करने से पहले की अपनी परिस्थितियों और फिर झूठ फैलाने के चलते हुए केस का रोना रोते हुए कहा है कि कंपनी बंद करने का कोई खास कारण नहीं है।
एंडरसन ने लिखा है, “मैंने पिछले साल के अंत में ही अपने परिवार, दोस्तों और अपनी टीम को हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी को बंद करने के फैसले के बारे में बताया था। हमारी योजना यह थी कि हम जिन उद्देश्यों के लिए काम कर रहे थे, उन्हें पूरा करने के बाद इसे बंद कर दिया जाएगा। अब हमने पोंजी स्कीम वाला प्रोजेक्ट पूरा कर लिया है, ऐसे में अब कंपनी बंद कर रहे हैं।”
इस बयान में एंडरसन ने हिंडनबर्ग को एक लव स्टोरी की तरह बताते हुए लिखा है कि कंपनी बंद करने का कोई खास कारण नहीं है। उसने लिखा, “आखिर हम अपनी कम्पनी क्यों बंद कर रहे हैं? इसका कोई खास एक कारण नहीं है और ना ही कोई खतरा है, ना कोई स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या है और ना ही कोई बड़ी व्यक्तिगत समस्या है।”
इस बयान में नेट एंडरसन ने किसी का नाम लिए बगैर यह भी लिखा है, “हमारे काम के जरिए कम से कम 100 लोगों पर आपराधिक गतिविधि के आरोप लगाए गए हैं। इसमें अरबपति और अमीर लोग शामिल हैं। हमने कुछ ऐसे साम्राज्यों को हिला दिया, जिनके बारे में हम सोच रहे थे कि इन्हें हिलाने की जरूरत है।”
क्या करती थी हिंडनबर्ग:
हिंडनबर्ग रिसर्च की शुरुआत साल 2017 में हुई थी। कंपनी का कहना था कि वह दुनिया भर की बड़ी-बड़ी कंपनियों को लेकर रिसर्च करती है और जानकारी इकट्ठा करने के बाद ‘गड़बड़ियों’ पर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करती है। हालांकि हिंडनबर्ग पर रिसर्च कर रिपोर्ट पब्लिश करने के नाम पर शॉर्ट सेलिंग करने के आरोप लगे थे।
रिपोर्ट्स में सामने आया था कि हिंडनबर्ग किसी भी कम्पनी को लेकर रिपोर्ट पब्लिश करने से पहले, उस कंपनी के शेयर स्टॉक मार्केट में शॉर्ट करती थी। सीधे शब्दों में कहें तो कंपनी पर यह आरोप है कि वह इस बात पर दाव लगाती थी कि कंपनी का शेयर करेगा। हिंडनबर्ग की विवादित रिपोर्ट के बाद शेयर गिरते भी थे, जिससे हिंडनबर्ग से जुड़े लोगों को करोड़ों डॉलर की कमाई होती थी।
भारतीय बिजनेस मैन गौतम अडानी की कंपनियों के साथ भी हिंडनबर्ग ने यही किया था। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आने के बाद भारतीय निवेशकों को लाखों करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा था। हालांकि बाद में यह सामने आया था कि हिंडनबर्ग ने जो आरोप लगाए हैं उनमें से अधिकांश फर्जी हैं और शेष पहले से पब्लिक डोमेन में थे। इस मामले में हुई जांच के बाद भी अडानी ग्रुप के खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला सामने नहीं आया था।
जॉर्ज सोरोस के इशारे पर ‘नाच’ रही थी कांग्रेस?
हालांकि इस मुद्दे को लेकर सड़क से लेकर संसद तक जमकर हंगामा हुआ था। कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने अडानी ग्रुप को सरकार से जोड़ने की नाकाम कोशिश करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की कोशिश की थी। हालांकि झूठ का गुब्बारा कितने दिन टिकता। कांग्रेस की पोल खुलनी थी और डीप स्टेट से उसके संबंध उजागर होने थे और हुए भी। डीप स्टेट के मुखिया जॉर्ज सोर्स के बयान से यह स्पष्ट हो गया था कि कांग्रेस और हिंडनबर्ग एक ही पिच पर खेल रहे थे।
दरअसल, जॉर्स सोरोस ने कहा था, “मोदी और बिजनेस टाइकून अडानी करीबी सहयोगी हैं। उनकी किस्मत एक दूसरे से जुड़ी हुई है। अडानी एंटरप्राइजेज ने शेयर बाजार से फंड जुटाने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहा। अडानी पर शेयर में हेरफेर करने का आरोप है और उनका शेयर ताश के पत्तों की तरह ढह गया। मोदी इस विषय पर चुप हैं, लेकिन उन्हें विदेशी निवेशकों और संसद में सवालों का जवाब देना होगा।”
जॉर्स सोरोस का यह बयान कांग्रेस के बयान की ही तरह था। कांग्रेस और सोरोस दोनों एक ही लाइन पर बातें करते हुए मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे थे। इससे साफ था कि कांग्रेस सोरोस के इशारे पर ही काम कर रही है। जॉर्स सोरोस पहले भी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए अरबों रुपए खर्च करने का बयान दे चुका है। वास्तव में देखें तो हिंडनबर्ग के जरिए लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय शेयर बाजार को अस्थिर करने की कोशिश की गई थी। हालांकि अब अडानी की कंपनियों के शेयर तो ठीक-ठाक स्थिति में पहुंच गए हैं। लेकिन हिंडनबर्ग को बंद किया जा रहा है। एक ओर जहां एक-एक कर INDI गठबंधन के साथ कांग्रेस का हाथ जोड़ते जा रहे हैं, वहीं अब हिंडनबर्ग का बंद होना कांग्रेस के लिए बड़े झटके से कम नहीं है।
हिंडनबर्ग के बंद होने के मामले में दिलचस्प बात यह है कि कंपनी को बंद करने का फैसला न्यूयॉर्क के पूर्वी जिले के अमेरिकी अटॉर्नी ब्रियोन पीस द्वारा इस्तीफा देने के बाद किया गया है। अमेरिकी अटॉर्नी ब्रियोन पीस ने अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी व सात अन्य अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी व रिश्वतखोरी के आरोप लगाए थे।
उल्लेखनीय है कि यह सब ट्रंप की सत्ता में वापसी से ठीक पहले हो रहा है। अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प 20 जनवरी, 2025 को अपना पदभार संभालेंगे। ट्रम्प प्रशासन में टेस्ला और स्पेसएक्स जैसी कंपनियों के मालिक एलन मस्क और भी अधिक ताकतवर होंगे। बायडेन सरकार के दौरान हिंडनबर्ग ने एलन मस्क के खिलाफ भी साजिश रचने की कोशिश की थी। ट्विटर डील में मस्क के खिलाफ कार्रवाई होने के कयास लगाते हुए हिंडनबर्ग ट्विटर पर भी पैसा लगाया था। हालांकि अब जब मस्क के समर्थन वाली सरकार सत्ता में आने से पहले ही हिंडनबर्ग ने अपना धंधा बंद करने का फैसला कर लिया है। बड़ी बात यह है कि ट्रंप समर्थक एलन मस्क, जॉर्ज सोरोस के खिलाफ भी रहे हैं। जॉर्ज सोरोस ही हिंडनबर्ग को फंडिंग देता आया है।