सिखों के गले में डालते थे टायर, फिर पेट्रोल डाल लगा देते थे आग: कहानी सिख नरसंहार की, जिसे सज्जन कुमार जैसे कांग्रेसियों ने दिया अंजाम

सिख नरसंहार के दौरान सिखों की हत्याओं, लूटपाट, आगजनी के बीच सिख महिलाओं के साथ रेप की भी घटनाएं सामने आई थीं जिसके बारे में ज़िक्र कम मिलता है

त्रिलोकपुरी में पूरे समुदाय के सफाए के बाद जली हुई गाड़ी (फोटो- Hindustan Times), दंगों के बाद बिलखता परिवार (फोटो- Ram Rahman) और इंदिरा गांधी

त्रिलोकपुरी में पूरे समुदाय के सफाए के बाद जली हुई गाड़ी (फोटो- Hindustan Times), दंगों के बाद बिलखता परिवार (फोटो- Ram Rahman) और इंदिरा गांधी

दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट ने हाल ही में 1984 के सिख नरसंहार मामले में पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार को दोषी ठहराया है। जिसके बाद एक बार फिर देश के इतिहास के सबसे काले अध्यायों में शामिल इन दंगों को लेकर चर्चा शुरू हुई है। 31 अक्टूबर 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या किए जाने के बाद भड़के इन दंगों में हज़ारों सिखों की मौत हुई थी। बड़ी संख्या में सिखों की संपत्ति नष्ट की गई और उन्हें विस्थापित होना पड़ा था। आज जानेंगे उन दंगों की दर्दनाक कहानी जिन्होंने ना केवल राजनीति को बदल दिया बल्कि समाज पर भी गहरा असर छोड़ा था।

क्या थी इन दंगों की पृष्ठभूमि?

दिसंबर 1972 में अकाली दल ने एक उप-समिति का गठन किया था जिसकी रिपोर्ट में 1973 में श्री आनंदपुर साहिब में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव के माध्यम से अपनाया गया। इसमें मोटे तौर पर पंजाब के लिए अधिक स्वायत्ता की मांग की गई थी। अक्टूबर 1978 में लुधियाना में 18वें अखिल भारतीय अकाली सम्मेलन के खुले सत्र द्वारा इसका समर्थन किया गया। इसके चलते पंजाब में अकालियों की पैठ और उनका प्रभाव बढ़ रहा था। इसी बीच अप्रैल 1978 में अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच हिंसक झड़प हुई जिसमें 13 अकाली मारे गए। इस घटना को कई लोग पंजाब में चरमपंथ की शुरुआत के रूप में देखते हैं।

इस घटना के बाद रोष दिवस मनाया गया जिसमें जरनैल सिंह भिंडरावाले ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। अकाली दल अपनी मांगों को लेकर ढुलमुल रवैया अपना रहा था और भिंडरावाले ने पंजाब की मांग को लेकर कड़ा रवैया अपनाया। जरनैल सिंह का जन्म जून 1947 में रोडे गांव में हुआ था। जरनैल सिंह को सिख धर्म और ग्रंथों की शिक्षा देने वाली संस्था ‘दमदमी टकसाल’ का अध्यक्ष बनाया गया जिसके बाद उसके नाम के साथ भिंडरावाले जुड़ गया था। भिंडरावाले ने विवादास्पद राजनीतिक मुद्दों और धर्म पर नियमित तौर पर भाषण देने शुरु कर दिए और एक तबके का उन्हें समर्थन भी मिलने लगा था। इस बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर सिख समुदाय में अकाली दल के जनाधार को घटाने के लिए भिंडरावाले को प्रोत्साहन देने का आरोप लगे।

पंजाब में 1980 के दशक में हिंसक घटनाएं बढ़ने लगीं जिसके लिए भिंडरावाले को जिम्मेदार ठहराया गया। हालांकि, सबूत नहीं होने के कारण उसे कभी गिरफ्तार नहीं किया गया। 1981 में पंजाब केसरी के संस्थापक और संपादक लाला जगत नारायण की हत्या हुई, 1983 में पंजाब पुलिस के डीआईजी एएस अटवाल की हत्या कर दी गई और इसके कुछ ही समय बाद बंदूकधारियों ने पंजाब रोडवेज़ की बस में घुसकर कई हिंदुओं की हत्या कर दी। हिंसक घटनाएं बढ़ी तो इंदिरा गांधी ने पंजाब की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया और राष्ट्रपति शासन लगा दिया। इस बीच भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर में शरण ले ली थी और दावा किया जा रहा था कि पंजाब को एक अलग देश ‘खालिस्तान’ बनाए जाने की घोषणा भिंडरावाले द्वारा की जानी थी।

लगातार बढ़ती हिंसा पर काबू नहीं पाया जा सका, मार्च 1984 तक पंजाब में हिंसक घटनाओं में 298 लोग मारे जा चुके थे। अब इंदिरा सरकार ने भिंडरावाले को सबक सिखाने की ठान ली थी और ऑपरेशन ब्लू स्टार को मंज़ूरी दे दी गई। इसके तहत 1 जून 1984 से ही सेना ने स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी शुरू कर दी थी। भारतीय सेना ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत स्वर्ण मंदिर में प्रवेश किया और भिंडरावाले समेत कई अलगाववादियों को मार गिराया। इस सैन्य कार्रवाई में मंदिर को भारी नुकसान हुआ जिससे सिख समुदाय में गहरा आक्रोश फैल गया था। सिखों के आक्रोश के बीच 31 अक्टूबर 1984 प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही सिख अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने दर्जनों गोलियां मारकर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी।

मारे गए हज़ारों सिख

सिख नरसंहार के दौरान बड़ी संख्या में सिखों की हत्या की गई थी। 31 अक्टूबर से शुरू हुए ये दंगे 7 नवंबर तक चले थे लेकिन 4 नवंबर से हिंसा की घटनाओं में कमी होनी शुरू हो गई थी। आहूजा समिति के निष्कर्ष के अनुसार 31 अक्टूबर से 7 नवंबर के बीच दिल्ली में 2,733 सिखों की हत्या की गई थी। हालांकि, सिखों के प्रतिनिधि संगठन दावा करते हैं कि इन हमलों में 3,000 से अधिक सिख मारे गए थे। वहीं, देशभर में इन दंगों में 3,325 लोगों की मौत की बात मानी जाती है।

इन दंगों के मामलों में सज्जन कुमार को दोषी ठहराया गया है और 18 फरवरी को उनकी सज़ा पर सुनवाई होनी है। आज भी हज़ारों पीड़ित न्याय के इंतज़ार में है। कुछ की रिपोर्टें खो गईं, कुछ को नष्ट कर दिया गया और कुछ तो कभी दर्ज ही नहीं की हुईं। जिन लोगों ने अपनों को खो दिया, घरों से विस्थापित हो गए, पूरा परिवार उजड़ गया, वे हज़ारों लोग सरकार की फाइलों में सिर्फ एक नंबर बनकर दर्ज हैं। जिनकी लोगों की आंखों के सामने उनके परिवार के सदस्य मार दिए गए, घर खाक में मिल गए, पूरा का परिवार उजड़ गया वे लोग सरकारी फाइलों में बस एक नंबर बनकर रह गए हैं। आज भी वे हज़ारों लोग इस इंतज़ार में हैं कि न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटे और उनका दर्द अदालतों को नज़र आए। अब देखना ये होगा कि क्या ऐसे लोग इतिहास के पन्नों में एक याद बनकर रह जाएंगे या उन्हें उनका हक मिलेगा?

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