लोनी पुलिस ने 65 वर्षीय मौलाना फिजू, जो इकराम नगर का निवासी है, को 30 वर्षीय महिला और उसकी 16 वर्षीय नाबालिग बेटी के साथ बार-बार दुष्कर्म करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। आरोपित ने महिला को उसके अलग हुए पति को वापस लाने का झांसा देकर जादू-टोना का बहाना बनाया और इस दौरान यह घिनौना अपराध किया। फिलहाल बृहस्पतिवार को पुलिस ने पोक्सो एक्ट और अन्य गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज कर फिजू को लोनी तिराहे से गिरफ्तार किया। अब सवाल यह है कि हिंदुस्तान टाइम्स और अमर उजाला जैसे बड़े मीडिया संस्थानों ने इस मामले में आरोपित मौलाना फिजू को अपनी हेडलाइंस में “तांत्रिक” क्यों बताया?
क्या यह सच्चाई से बचने और धार्मिक पहचान छिपाने की कोशिश नहीं है? जब भी कोई हिंदू धर्म से जुड़ा आरोपी होता है, तो मीडिया तुरंत उसकी पहचान को उजागर करता है। लेकिन इस बार, मौलाना को “तांत्रिक” बताकर सच्चाई को तोड़-मरोड़ने की कोशिश क्यों की गई? यह सिर्फ खबर को गलत तरीके से पेश करने का मामला नहीं है, बल्कि एक पक्षपातपूर्ण सोच को बढ़ावा देने की कोशिश है। पाठकों को सच्चाई जानने का हक है, और ऐसी पत्रकारिता लोगों के विश्वास को ठेस पहुंचाती है। सवाल ये है कि आखिर कब तक मीडिया समुदाय विशेष से आने वाले आरोपितों की पहचान को बचाने का काम करता रहेगा?
हिंदुस्तान टाइम्स
अमर उजाला
जब मौलाना को बताया गया था धर्मगुरु
यह कोई पहली बार नहीं है जब मेनस्ट्रीम मीडिया ने एक विशेष समुदाय से जुड़े आरोपियों के प्रति पक्षपात दिखाया हो। बार-बार देखा गया है कि ऐसे मामलों में आरोपियों को उनकी असली पहचान छिपाकर, हिंदू प्रतीकों या शब्दों से जोड़ने की कोशिश की जाती है ताकि सच्चाई को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा सके।
हाल ही में ऐसा एक मामला राजस्थान के अजमेर में देखने को मिला, जहां एक मुस्लिम पिता-पुत्र ने इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया। पिता, जो पहले शफीक खान (बदला हुआ नाम) के नाम से जाना जाता था, ने धर्म परिवर्तन के बाद अपना नाम शुभम अग्रवाल रख लिया, और बेटे ने अपना नाम अकरम खान से बदलकर अमन अग्रवाल कर लिया। उनका यह कदम पड़ोस के मौलाना की लगातार प्रताड़ना से तंग आकर उठाया गया था। मौलाना ने उनकी पत्नी और बेटी को उकसाकर उन पर गंभीर आरोप लगवाए।
मगर जब यह मामला सामने आया, तो मेनस्ट्रीम मीडिया ने मौलाना को “धर्मगुरु” कहकर पेश किया। यह प्रयास सिर्फ एक शब्द बदलने का नहीं था, बल्कि आरोपियों की पहचान को छिपाने और सच्चाई को धुंधला करने की सोची-समझी कोशिश थी। अब सवाल उठता है कि आखिर मेनस्ट्रीम मीडिया विशेष समुदाय के आरोपियों को बचाने और उनकी असल पहचान छिपाने में इतनी दिलचस्पी क्यों लेता है? क्यों हिंदू धर्म से जुड़े किसी भी मामले में तुरंत धार्मिक पहचान उजागर की जाती है, लेकिन जब बात किसी अन्य समुदाय की होती है, तो शब्दों के जरिए भ्रम फैलाने की कोशिश की जाती है?
ऐसी पक्षपाती रिपोर्टिंग से पत्रकारिता की साख पर सवाल खड़े होते हैं। मीडिया को निष्पक्षता और सच्चाई के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। अगर मीडिया को समाज का आईना माना जाता है, तो यह जरूरी है कि वह हर खबर को सच और समान रूप से पेश करे, न कि एकतरफा एजेंडा चलाए।