औरंगजेब की कब्र पर बुलडोजर एक्शन की मांग करते हुए भाजपा विधायक टी राजा सिंह की ललकार; कहा – “औरंगजेब की कब्र पे कुत्ते मूतेंगे…. “

क्या इतिहास के घावों को मिटाने का समय आ गया है?

औरंगजेब की कब्र पर बुलडोजर एक्शन की मांग करते हुए भाजपा विधायक टी राजा सिंह की ललकार

औरंगजेब की कब्र पर बुलडोजर एक्शन की मांग करते हुए भाजपा विधायक टी राजा सिंह की ललकार

ओशो के पुराने प्रवचनों को सुन रहा था, जिनमें वे विश्व के विभिन्न धर्मों का उल्लेख करते हैं। इस दौरान उन्होंने इस्लाम पर बोलते हुए कहा कि अगर इस्लाम शब्द का अर्थ देखें तो वह है शांति, लेकिन इतिहास के पन्ने पलटें तो स्पष्ट हो जाता है कि इस मजहब ने दुनिया में किसी भी अन्य धर्म से अधिक रक्तपात और हिंसा फैलाई है। सातवीं शताब्दी से ही अरब देशों में मजहब के नाम पर निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारा गया। यही वह मजहब है, जिसके अनुयायियों ने भारत की पवित्र भूमि को भी रक्तरंजित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन्हीं अत्याचारी शासकों को भारतीय इतिहास में मुगल कहा गया, जिन्होंने तलवार के बल पर हिंदू धर्म को मिटाने का हर संभव प्रयास किया।

करीब 1500 के आसपास तैमूरी वंश के राजकुमार बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी। इसके बाद शुरू हुआ लगभग 150 वर्षों का सबसे भयावह दौर, जहां सिर्फ सत्ता नहीं छीनी गई, बल्कि हिंदुओं को अमानवीय यातनाओं से गुजरते हुए तलवार की नोक पर जबरन धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया। 1526 में शुरू हुए इस रक्तरंजित साम्राज्य ने 17वीं शताब्दी के अंत और 18वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया। लेकिन इस वंश में अगर किसी का नाम हिंदू समाज के दिलों में सबसे ज्यादा जख्म देता है, तो वह है औरंगजेब—वह शासक जिसने न केवल मंदिरों को ध्वस्त कराया और हिंदू त्योहारों पर रोक लगाई, बल्कि तलवार के बल पर हिंदुओं को उनके धर्म से दूर करने का हर संभव प्रयास किया। परंतु इतिहास गवाह है कि हिंदू समाज की आत्मा को झुकाया नहीं जा सका!

औरंगजेब के अत्याचारों के सामने जिस शक्ति ने सबसे मजबूत दीवार बनकर खड़े होने का साहस दिखाया, वे थे मराठा वीर सम्राट और पेशवा! इन्हीं हिंदू हृदय सम्राटों में से एक थे छत्रपति संभाजी महाराज, जिनकी बहादुरी और बलिदान की कहानी हर हिंदू के दिल में बसी हुई है। जब औरंगजेब ने उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया, तब संभाजी महाराज ने अपना सिर झुकाने की बजाय अपनी जान देना उचित समझा। उन्होंने भयंकर यातनाओं को सहते हुए भी अपने धर्म और आत्मसम्मान को नहीं त्यागा। यह सिर्फ एक व्यक्ति का बलिदान नहीं था, बल्कि हिंदू समाज के आत्मसम्मान और धर्म की रक्षा के लिए दी गई महान आहुति थी। उनके बलिदान ने यह संदेश दिया कि हिंदू धर्म तलवार की नोक से मिटाया नहीं जा सकता।

आज उसी महायोद्धा के सम्मान में महाराष्ट्र के मराठवाड़ा विभाग के एक प्रमुख जिले का नाम रखा गया है—छत्रपति संभाजीनगर जिला (पूर्व में औरंगाबाद जिला)। लेकिन यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि उसी जिले में आज भी हिंदू समाज के दुश्मन औरंगजेब की कब्र मौजूद है। यह कब्र केवल मिट्टी और पत्थर का ढेर नहीं—यह उस यातना और अपमान का प्रतीक है, जिससे हिंदू समाज को गुजरना पड़ा। क्या यह न्यायसंगत है कि जिस भूमि ने संभाजी महाराज जैसे महायोद्धा को जन्म दिया, उसी भूमि पर उस हत्यारे की कब्र आज भी सुरक्षित खड़ी है? शायद यही वजह है कि भाजपा के विधायक टी राजा सिंह ने सरकार से उस कब्र पर बुलडोजर चलाने की मांग उठाई है।

औरंगजेब की कब्र पर बुलडोजर एक्शन की मांग

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के फायरब्रांड नेता टी राजा सिंह ने एक बार फिर अपने तीखे बयानों से सुर्खियां बटोरी हैं। जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने गरजते हुए कहा—“जिसने मेरे संभाजी को तड़पा-तड़पा कर मारा, हमारे संभाजीनगर में उस औरंगजेब की कब्र क्यों अब तक बची हुई है?” उनके शब्दों में न केवल आक्रोश था, बल्कि हिंदू समाज के दिलों में सदियों से सुलगती पीड़ा की गूंज भी थी। उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को याद दिलाते हुए कहा—“देवेंद्र जी, मुझे याद है आपने कहा था कि उस औरंगजेब की कब्र पर कुत्ते मूतेंगे।”

टी राजा सिंह ने मंच से हुंकार भरते हुए कहा कि अब समय आ गया है—यह केवल महाराष्ट्र के हिंदुओं की नहीं, बल्कि पूरे भारत के हिंदू समाज की डिमांड है कि औरंगजेब की कब्र पर जल्द से जल्द बुलडोजर चलाया जाए। औरंगजेब का नाम और निशान महाराष्ट्र की पवित्र धरती से मिटाया जाना चाहिए। यह मांग केवल एक प्रतीकात्मक कार्रवाई नहीं, बल्कि उन अत्याचारों का प्रतिशोध है, जो औरंगजेब ने हिंदू समाज पर ढाए थे।

अपनी बात को और तीव्र करते हुए टी राजा सिंह ने आगे कहा—“आज भी उस गद्दार की कब्र वहां मौजूद है। आज भी औरंगजेब के नाम के बोर्ड वहां दिखाई देते हैं। जब मैं संभाजीनगर एयरपोर्ट पर उतरता हूं, तो वहां बड़े-बड़े बोर्ड पर लिखा होता है—‘औरंगाबाद एयरपोर्ट में आपका स्वागत है।’ जब शहर का नाम बदलकर ‘छत्रपति संभाजीनगर’ हो चुका है, तो फिर यह नाम अब तक क्यों बरकरार है? मैं पूछना चाहता हूं कि राजनीति हर चीज पर हो सकती है, लेकिन इतिहास से जिसने खिलवाड़ किया, जिसने हमारे संभाजी महाराज को यातनाएं देकर मारा, उसका नाम और निशान महाराष्ट्र की पवित्र धरती से पूरी तरह मिटना चाहिए—और मिटाया जाएगा।”

मुग़ल मानसिकता से आज़ादी कब मिलेगी?

मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही औपनिवेशिक मानसिकता को समाप्त करने की दिशा में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इसका उदाहरण तब देखने को मिला जब प्रधानमंत्री ने राजपथ और सेंट्रल विस्टा लॉन का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया। 2 सितंबर को भारतीय नौसेना के नए ध्वज का अनावरण करते हुए पीएम मोदी ने स्पष्ट किया कि सेंट जॉर्ज क्रॉस को हटाकर नौसेना के ध्वज से दासता के प्रतीक को समाप्त कर दिया गया है। अब इस ध्वज पर छत्रपति शिवाजी महाराज की मुहर से प्रेरित निशान शोभायमान है।

यह प्रक्रिया 2016 में शुरू हुई थी जब रेसकोर्स रोड का नाम बदलकर लोक कल्याण मार्ग कर दिया गया, जहां प्रधानमंत्री का आधिकारिक आवास स्थित है। यही नहीं, वर्ष 2014 से अब तक 1,500 से अधिक पुराने और अप्रचलित कानूनों को निरस्त किया गया है, जिनमें अधिकांश ब्रिटिश शासन के दौरान बनाए गए थे। ये कदम देश को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने के मोदी सरकार के संकल्प को दर्शाते हैं।

लेकिन सवाल उठता है कि जब सरकार अंग्रेज़ी शासन के अवशेषों को मिटाने के लिए इतनी सक्रिय है, तो फिर मुग़ल आक्रांताओं की विरासत और उनकी मानसिकता से छुटकारा कब मिलेगा? यह सच है कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार और महाराष्ट्र सरकार ने इस दिशा में कुछ अहम कदम उठाए हैं। लेकिन आज भी देश के कई शहरों के केंद्रों में मुग़ल आक्रांताओं के मकबरे मौजूद हैं और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में तो ऐसी कई सड़कें हैं, जिनके नाम मुग़ल शासकों के नाम पर रखे गए हैं।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि आख़िर कब तक हमारी आने वाली पीढ़ियां उन स्मारकों और नामों के साए में जीएंगी, जो उनकी सांस्कृतिक अस्मिता और स्वाभिमान को चुनौती देते हैं? क्या समय नहीं आ गया है कि भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान पर लगे इन चिह्नों को मिटाकर इतिहास के इस काले अध्याय के अवशेषों को समाप्त करे? क्या 150 सालों तक चले मुग़ल अत्याचारों और गुलामी की याद दिलाने वाले इन प्रातकों को समाप्त नहीं करना चाहिए?

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