इस्लाम अपनाने के बजाय 14 वर्ष की उम्र में हकीकत राय ने कटा ली गर्दन, जल्लाद डरा तो खुद उठाकर दी तलवार

हकीकत के पिता ने 10 वर्ष की अवस्था में फारसी पढ़ने के लिए उन्हें एक मदरसे में भेज दिया था

काजी ने कहा था कि अगर हकीकत राय अगर मुसलमान बन जाए तो उसे माफ कर दिया जाएगा

काजी ने कहा था कि अगर हकीकत राय अगर मुसलमान बन जाए तो उसे माफ कर दिया जाएगा

भारत वह वीरभूमि है, जहाँ हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वालों में छोटे बच्चे भी पीछे नहीं रहे हैं। 1719 में स्यालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) के निकट एक ग्राम में भागमल खत्री के घर जन्मा हकीकत राय ऐसा ही एक धर्मवीर था। हकीकत राय के माता-पिता धर्मप्रेमी थे। अतः बालपन से ही उसकी रुचि अपने पवित्र धर्म के प्रति जाग्रत हो गयी। उसने छोटी अवस्था में ही अच्छी संस्कृत सीख ली। उन दिनों भारत में मुस्लिम शासन था। अतः अरबी-फारसी भाषा जानने वालों को महत्त्व मिलता था। इसी से हकीकत के पिता ने 10 वर्ष की अवस्था में फारसी पढ़ने के लिए उन्हें एक मदरसे में भेज दिया। बुद्धिमान हकीकत वहाँ भी सबसे आगे रहता था। इससे अन्य मुस्लिम छात्र उससे जलने लगे। वे लगातार उसे नीचा दिखाने का प्रयास करते थे पर हकीकत का मन हमेशा पढ़ाई में ही लगा रहता था।

एक बार मौलवी को किसी काम से दूसरे गाँव जाना था। उन्होंने बच्चों को पहाड़े याद करने को कहा और स्वयं चले गये। उनके जाते ही सब छात्र खेलने लगे पर हकीकत एक ओर बैठकर पहाड़े याद करता रहा। यह देखकर मुस्लिम छात्र उसे परेशान करने लगे। इसके बाद भी जब हकीकत विचलित नहीं हुआ, तो एक छात्र ने उसकी किताब छीन ली। यह देखकर हकीकत बोला, ‘तुम्हें भवानी माँ की कसम है, मेरी पुस्तक लौटा दो’। इस पर वह मुस्लिम छात्र बोला, ‘तेरी भवानी माँ की ऐसी की तैसी’। हकीकत ने कहा, ‘खबरदार, जो हमारी देवी के प्रति ऐसे शब्द बोले। यदि मैं तुम्हारे पैगंबर की बेटी फातिमा बीबी के लिए ऐसा कहूँ, तो तुम्हें कैसा लगेगा?’ लेकिन वह तो लड़ने पर उतारू था। हकीकत ने उसकी पिटाई कर दी और मुक्कों से उसके चेहरे का नक्शा बदल दिया। उसका रौद्र रूप देखकर बाकी छात्र डर कर चुपचाप बैठ गये।

थोड़ी देर में मौलवी लौट आये। मुस्लिम छात्रों ने नमक-मिर्च लगाकर सारी घटना उन्हें बतायी। इस पर मौलवी ने हकीकत की पिटाई की और उसे सजा के लिए काजी के पास ले गये। काजी ने इस सारे विवाद को लाहौर के बड़े इमाम के पास भेज दिया। उसने सारी बात सुनकर निर्णय दिया कि हकीकत ने इस्लाम का अपमान किया है। अतः उसे मृत्युदण्ड मिलेगा लेकिन अगर यदि वह मुसलमान बन जाये, तो उसे माफ किया जा सकता है। बालवीर हकीकत ने सिर ऊँचा कर कहा, ‘मैंने हिन्दू धर्म में जन्म लिया है और हिन्दू धर्म में ही मरूँगा’। मौलवियों ने उसे और भी कई तरह के प्रलोभन दिये। हकीकत के माता-पिता और पत्नी भी उसे धर्म बदलने को कहने लगे जिससे वह उनकी आँखों के सामने तो रहे पर हकीकत ने स्पष्ट कह दिया कि व्यक्ति का शरीर मरता है, आत्मा नहीं। अतः मृत्यु के भय से मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म का त्याग नहीं करूँगा।

गुरु से भगवद्गीता सुनते हकीकत राय

आखिर में 4 फरवरी, 1734 (बसंत पंचमी) को उस धर्म प्रेमी बालक का लाहौर में सरेआम सिर काट दिया गया। जब जल्लाद सिर काटने के लिए बढ़ा, तो हकीकत राय के तेजस्वी मुखमंडल को देखकर उसके हाथ से तलवार छूट गयी। इस पर हकीकत ने खुद तलवार उठाकर जल्‍लाद के हाथ में देते हुए कहा कि जब मैं बच्‍चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं तो तुम बड़े होकर धर्म से मुंह क्‍यों मोड़ रहे हो। कहते हैं कि हकीकत का सिर कटने के बाद धरती पर न गिर कर आकाश मार्ग से सीधा स्वर्ग में चला गया। उसी स्मृति में बसंत पंचमी को आज भी पतंगें उड़ाई जाती हैं। पंजाब के गुरदासपुर में उनकी समाधि भी है। हिंदू धर्म के लिए वीर हकीकत राय के बलिदान को हमेशा याद किया जाता है।

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