केरल के मंदिर से PETA ने छीन लिया हाथी: अकेले बांग्लादेश में बकरीद पर काटे गए 1 करोड़ बकरे, क्रिसमस पर UK-US में कटते हैं 3 करोड़ टर्की पक्षी

क्या PETA ने आज तक क्रिसमस पर अमेरिका-इंग्लैंड वालों को नकली टर्की पक्षी दिया काटने के लिए? कितने देंगे, दो ही देशों में 3 करोड़ से अधिक हो जाते हैं हर साल।

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PETA चाहता है कि मंदिरों के पास असली हाथी न हों

एक संगठन है – PETA. इसका फुल फॉर्म है – पीपल फॉर एथनिक ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स। ये संगठन दावा करता है कि ये दुनिया भर में पशु अधिकारों का संरक्षण करता है, ये कहता है कि ये लोग पशु-क्रूरता की रोकथाम के लिए अभियान चला रहे हैं। लेकिन, भारत में PETA इंडिया क्या कर रहा है? आपको ये जानना बेहद ही ज़रूरी है, इसीलिए ध्यान से सुनिएगा। केरल में एक जिला है -त्रिशूर। वही त्रिशूर, जहाँ से मलयालम अभिनेता सुरेश गोपी ने भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीत कर इतिहास रच दिया। अब त्रिशूर एक बार फिर से चर्चा में है।

केरल के मंदिर को PETA ने दिया नकली हाथी

त्रिशूर क्यों चर्चा में है, इसका जवाब ये है कि भारत में हिन्दू धर्म में बाहरी तत्वों का हस्तक्षेप कुछ अधिक ही बढ़ गया है। त्रिशूर के कोम्बारा श्रीकृष्ण मंदिर को PETA ने एक हाथी दिया है – नकली हाथी। यानी, PETA का कहना था कि हिन्दू परंपराओं में असली हाथी का इस्तेमाल पशु-क्रूरता है, इसीलिए हम नकली मेकेनिकल हाथी दे रहे हैं – इसका इस्तेमाल करो। बताइए, जिस देश में हाथियों को भगवान गणेश के रूप में पूजा जाता है – वहाँ ऐसी बातें? जहाँ देवराज इंद्र का वाहन सफ़ेद ऐरावत हाथी को माना जाता है, वहाँ PETA हमें बताएगा कि हाथियों से प्यार कैसे करते हैं?

कौवों को ही ले लीजिए। पश्चिम वाले कौवों को अपशकुन का प्रतीक मानते हैं, उनके झुण्ड को ‘मर्डर ऑफ क्रोज’ कहा जाता है – उन्हीं कौवों को भारत में हमारे पितरों का संदेशवाहक माना गया है। श्राद्ध के दौरान उन्हें पिंड देने की भी परंपरा है। हम तो विषधर नाग के लिए भी एक त्योहार रखते हैं और उन्हें दूध पिलाते हैं, और हमें कहा जा रहा है कि हम पशुओं के साथ क्रूरता करते हैं? वहीं इस्लामी और ईसाई त्योहारों को लेकर तो PETA का मुँह एकदम बंद रहता है। आखिर फंडिंग वहीं से तो आ रही सारी।

ईद पर मुस्लिमों को नकली बकरे देता है PETA?

एक आँकड़े के अनुसार, 2024 में अकेले पाकिस्तान में बकरीद के दौरान 66 लाख जानवरों को काटा गया। इनमें ऊँट, भेड़, गाय, भैंस, बकरा, बैल क्या नहीं शामिल थे। इसी तरह, बांग्लादेश की तो सरकार ने ही बताया कि ईद-उल-अदहा यानि बकरीद के दौरान वहाँ 1 करोड़ से भी अधिक जानवरों को काटा गया। क्या आपने कभी PETA को इसके खिलाफ आवाज़ उठाते हुए देखा है? आपको जान कर आश्चर्य होगा कि केरल में 5 मंदिरों से PETA ये शपथ दिला चुका है कि वो धार्मिक परंपराओं में असली हाथी का इस्तेमाल नहीं करेंगे, नकली हाथी का करेंगे।

यहाँ तक कि शोभायात्राओं में भी असली हाथियों का इस्तेमाल बंद कराया जा रहा है। हिन्दू त्योहारों से इन्हें इतनी दिक्कत है कि ये हमें ही दोषबोध में भर देते हैं और हम इनकी बातों में आकर अपनी ही परंपराओं को त्याग देते हैं। सोचिए, मंदिर का हाथी होता था तो महावत भी रखा जाता था। महावत के परिवार का भी पेट पलटा था हिन्दू परंपराओं के कारण। अब वो महावत बेरोजगार हो जाएँगे। फिर ये विदेशी संस्थाएँ ही कहेंगी कि भारत में बेरोजगारी बढ़ रही है। क्या PETA हर साल मुस्लिमों को करोड़ों नकली गाय, भैंस, भेड़, ऊँट, बकरा और बैल डोनेट करेगा? एक तो वो करेगा नहीं, दूसरा वो लोग केरल के इन मंदिरों के प्रबंधन की तरह बुद्धू नहीं हैं कि इनकी बात मान लेंगे।

Lamb Of God: कितने नकली भेड़ ईसाइयों को देगा PETA?

इस्लाम को छोड़ दीजिए। आइए, आपको एक ईसाई परंपरा के बारे में बताते हैं। चूँकि PETA पश्चिमी जगत से आता है जहाँ ईसाइयों की जनसंख्या अधिक है। एक ईसाई परंपरा है, जीका नाम है – Lamb Of God. इसके तहत एक भेड़ को ठीक वैसे ही लटकाया जाता है, जैसे ये लोग मानते हैं कि जीसस क्राइस्ट को लटकाया गया था। उस भेड़ को काट कर उसका मांस खाते हैं और उसके खून को अपने दरवाजों पर रखते हैं। आपने ईस्टर फीस्ट के बारे में सुना है? हर साल ईस्टर फीस्ट के लिए लाखों जानवर काटे जाते हैं, तब तो PETA कुछ नहीं बोलता। एक मोटा पक्षी है – टर्की। इसे हिंदी में पेरू पक्षी भी कहते हैं। हर साल क्रिसमस के दौरान अमेरिका में सवा 2 करोड़ और यूके में 1 करोड़ से भी अधिक टर्की पक्षियों को मार डाला जाता है। PETA एक रिपोर्ट प्रकाशित कर के इतिश्री कर लेता है।

क्या PETA ने आज तक क्रिसमस पर अमेरिका-इंग्लैंड वालों को नकली टर्की पक्षी दिया काटने के लिए? कितने देंगे, दो ही देशों में 3 करोड़ से अधिक हो जाते हैं हर साल। 2 करोड़ टर्की पक्षी कट जाते हैं तब इन्हें ये सब नज़र नहीं आता, एकाध मंदिरों में हाथी पाला जाता है तो इन्हें ये खलने लगता है। अरे भाई, जब मंदिर में हाथी रखे जाते हैं तो उनकी देखभाल के लिए भी लोग रखे जाते हैं। उनके खाने-पीने का भी समुचित प्रबंध किया जाता है। हाथी को नहलाया जाता है, घुमाया-फिराया जाता है, उनके बच्चों की भी देखभाल की जाती है। हमारी ऐसी क्या मज़बूरी है कि PETA जैसी विदेशी संस्थाओं की बात मान कर हम अपनी ही परंपराओं को त्याग रहे हैं?

सब आइए, थोड़ा चलते हैं स्पेन। स्पेन में बुलफाइटिंग का बड़ा क्रेज है। खुद PETA मानता है कि स्पेन में बुलफाइटिंग में हर साल हजारों बैल मारे जाते हैं, लेकिन इसने आज तक स्पेन वालों से नहीं कहा कि हम नकली बैल दे रहे हैं, इनसे लड़ लो।

आर्टिफिसियल सभ्यता क्या जाने प्रकृति के करीब होने का मतलब

आखिर PETA नकली हाथी क्यों न दे, ये पश्चिमी दुनिया वाले असली छोड़ कर आर्टिफिसियल चीजों के प्रति ही तो आसक्त रहे हैं। हम खेती-किसानी कर के चावल-दाल उपजा कर खाने वाले लोग, वो कहाँ चावल को पॉलिश कर के चमकाने वाले लोग। हम कहाँ तुलसी के असली पौधे और पीपल के असली पेड़ की पूजा करने वाले लोग, वो कहाँ क्रिसमस पर प्लास्टिक का ट्री सजाने वाले लोग। हम कहाँ असली गाय का दूध पीने वाले लोग, वो कहाँ पाउडर से दूध बनाने का चलन फ़ैलाने वाले लोग। आर्टिफिसियल खाना, आर्टिफिसियल पीना, आर्टिफिसियल सुंदरता और आर्टिफिसियल दोस्ती-रिश्तेदारी। हम कहाँ दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियाँ सुन कर बड़े होने वाले लोग, वो कहाँ दादा-दादी और नाना-नानी को फैमिली से हटा कर ‘जॉइंट फैमिली’ की श्रेणी में रखने वाली सभ्यता। आर्टिफिसियल सभ्यता क्या समझेगी प्रकृति के करीब रहने वाली सभ्यता का महत्व।

हम तो अपनी नदियों को हजारों साल से साफ़-सुथरी रखते आए हैं, इन फैक्ट्रियों के बनने से पहले तक। ‘गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती, नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु’ – हम पूजा-पाठ में भी नदियों को नमस्कार करते हैं। हम हिमालय पर्वत को पूजते हैं। हम सूर्य-चंद्र-वायु-पवन-पृथ्वी – प्रकृति के हर रूप को पूजते हैं। आर्टिफिसियल को नहीं। हम प्रकृति को जीतने नहीं चलते हैं, हम प्रकृति के साथ तारतम्य बिठा कर चलने वाले लोग रहे हैं। जब से पश्चिमी सभ्यता आई, हमने भी प्रकृति को ठेंगा दिखाना सीख लिया। धुएँ वाली सभ्यता क्या जाने नीम के दातुन से दाँत साफ़ करने वाली सभ्यता की महत्ता।

और ये हमें सिखाएँगे कि पशु-पक्षियों का सम्मान कैसे करना है? अभी मैंने बताया कि कैसे ईद और ईस्टर फीस्ट जैसे त्योहारों पर करोड़ों जानवर काटे जाते हैं, अब सुनिए हिन्दू धर्म में इन पशु-पक्षियों की क्या महत्ता है। भगवान विष्णु का वाहन गरुड़, भगवान शिव का वाहन नंदी बैल, माँ दुर्गा का शेर, भगवान गणेश का चूहा, कार्तिकेय का मोर, ब्रह्माजी का हंस, माँ लक्ष्मी का उल्लू, इंद्र का हाथी, यमराज का भैंसा, वरुण का मगरमच्छ, अग्नि का भेड़, वायु का हिरण, शनि का कौवा, भैरव का कुत्ता और माँ कालरात्रि का गदहा – हमारे पशु-पक्षी तो सीधे हमारे देवी-देवताओं से जुड़े हुए हैं। हमें PETA क्या सिखाएगा?

और हाँ, ये देखिए कि कैसे हमारे हर एक रीतियाँ और परंपराओं को एक-एक कर के निशाना बनाया जा रहा है। पहले इन्होंने कहा कि यज्ञ करने से वायु प्रदूषण होता है। जबकि ‘इंटरनेशनल आयुर्वेद मेडिकल जर्नल’ के रिसर्च में पाया गया कि यज्ञ के बाद हवा में मौजूद कई ख़तरनाक सूक्ष्मजीवी मर गए। एक अध्ययन में पता चला कि यज्ञ से सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे खतरनाक गैस कम हो गए। गाय के घी से लेकर आम की लकड़ियों तक, यज्ञ की महत्ता पर हम कभी और बात करेंगे क्योंकि ये अपने-आप में एक बृहद विषय है।

भारतीय संस्कृति विदेशी ताक़तों के निशाने पर

इसके बाद ये लोग तमिलनाडु के जल्लिकट्टु को लेकर हमें अपराधबोध से भर देते हैं, जबकि स्पेन के बुलफाइटिंग को लेकर कुछ नहीं करते। हम घी का दीया जलाया करते थे, अब ये हमें डिजिटल लैम्प्स जलाने के लिए कहते हैं। क्या मिट्टी का दीया और गाय के दूध के घी से ज़्यादा प्राकृतिक बिजली से जलने वाले लैम्प्स हैं? इनका मिशन साफ़ है – हिन्दुओं को अपनी संस्कृति से दूर करते जाओ, तभी तो ये हम पर पश्चिमी सभ्यता थोपने में सफल हो पाएँगे। आधुनिक बनने की रेस में हम भी आँख बंद कर इनकी बातें मानते चले जा रहे हैं, क्योंकि हमें डर है कि हम पर रूढ़िवादी होने वाला ठप्पा लगा दिया जाएगा।

आपको एक उदाहरण देता हूँ। हम गायें पालते हैं। कल को कोई आकर कहेगा कि इन किसानों ने गायों को रस्सी से क्यों बाँध रखा है। अब आप सोचिए, ये गायें हमारे दरवाजों पर अधिक सुरक्षित हैं या इन्हें जंगलों में छोड़ दिया जाए तब ये अधिक सुरक्षित हैं? एक किसान उन गायों के लिए खेत में घास उगाता है, उन्हें काटने के लिए मेहनत खरीदता है, उन्हें सुबह-शाम खिलाता-पिलाता है और नहलाता-धुलाता है – ये सब जंगल में कौन करेगा इनके लिए? मंदिरों ने हाथियों को मारने-पीटने के लिए थोड़े न रखा था, हमें सबसे पहले ये समझने की ज़रूरत है। उनकी पूजा ही तो होती है। पूरी दुनिया में मांस का बाजार 1500 खरब रुपए से भी अधिक का हो गया है, लेकिन PETA वालों को केरल के एक मंदिर से हाथी को हटाना है।

अगर PETA चाहता तो इन मंदिरों की मदद कर सकता था। हाथियों का ध्यान कैसे रखते हैं, इसे लेकर उन्हें प्रशिक्षित कर सकता था। लेकिन, उसने मंदिरों को, हिन्दुओं को – हाथियों से दूर करने का रास्ता अपनाया क्योंकि इसमें ईसाई मिशनरियों का फ़ायदा है। कल को ये लोग कहेंगे कि गौपालन त्याग दो, सारे गायों को जंगलों में छोड़ दो, और स्टील के बने हुए रोबोटिक गायों की पूजा करो। ये एनिमल वेलफेयर नहीं है, ये हिन्दुओं के ऊपर कल्चरल अटैक है। मंदिरों का प्रबंधन करने वालों को समझना होगा, आपको PETA का आदेश से नहीं चलना है। धर्माचार्यों से सलाह लीजिए, शास्त्रीय विद्वानों से सलाह लीजिए – विदेशी संस्थाएँ आपकी मालिक नहीं है। आधुनिकता और Wokeism को हमारे मंदिरों से तो कम से कम दूर रखो।

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