एक वक्त था जब जम्मू-कश्मीर का जिक्र अक्सर पत्थरबाजी और आतंकी घटनाओं को लेकर किया जाता था, लेकिन अनुच्छेद 370 हटने के बाद सरकार और प्रशासन की प्रभावी नीतियों ने इस धारणा को बदल दिया है। आज यही जम्मू-कश्मीर स्टार्टअप और नवाचार का नया केंद्र बनकर उभर रहा है। यहां का मजबूत स्टार्टअप इकोसिस्टम न सिर्फ युवाओं को आत्मनिर्भर बना रहा है, बल्कि प्रदेश की तरक्की को भी रफ्तार दे रहा है। खासकर, लैवेंडर की खेती करने वाले किसानों ने एग्री स्टार्टअप्स को नई मजबूती और दिशा दी है।
इसी दिशा में, स्टार्टअप कल्चर को और मजबूती देने के लिए केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पीएमओ, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने जम्मू में ‘राष्ट्रीय स्टार्टअप महोत्सव 2025’ का उद्घाटन किया और इसे जम्मू-कश्मीर के युवाओं को समर्पित करने की घोषणा की।इस दौरान उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए ‘सरकारी नौकरी’ की मानसिकता से बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित किया।
‘बैंगनी क्रांति’ ने बदली घाटी की सूरत
शनिवार, 22 फरवरी 2025, को केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पीएमओ, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने जम्मू के गांधी नगर स्थित सरकारी महिला कॉलेज में आयोजित 2-दिवसीय ‘राष्ट्रीय स्टार्टअप महोत्सव’ का शुभारंभ किया। इस आयोजन को जम्मू-कश्मीर के युवाओं को समर्पित करते हुए उन्होंने नवाचार, उद्यमशीलता और उद्योग जगत से जुड़ाव के महत्व को रेखांकित किया, जिससे क्षेत्र में स्टार्टअप्स को नई दिशा मिल सके। उन्होंने विशेष रूप से ‘बैंगनी क्रांति’ पर जोर देते हुए बताया कि कैसे लैवेंडर की खेती ने यहां के 3,000 से अधिक युवाओं को आत्मनिर्भर बनाया और उन्हें लाखों कमाने का अवसर दिया। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे सिर्फ सरकारी नौकरियों पर निर्भर रहने की मानसिकता से बाहर निकलें और अपनी योग्यता के आधार पर नए अवसरों को अपनाएं।
सरकार की ‘अरोमा मिशन’ योजना के तहत जम्मू-कश्मीर के किसान अब पारंपरिक मक्के की खेती से आगे बढ़कर लैवेंडर उत्पादन को अपना रहे हैं, जिससे उनकी आमदनी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह बदलाव केवल आर्थिक तौर पर फायदेमंद नहीं, बल्कि क्षेत्र के किसानों के लिए एक नई पहचान भी बना रहा है। इस पहल से प्रेरित होकर अन्य राज्यों के किसान भी अब इस दिशा में कदम बढ़ाने लगे हैं।
अपने संबोधन में डॉ. सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि जम्मू-कश्मीर में कृषि-स्टार्टअप्स का दायरा तेजी से बढ़ रहा है, विशेष रूप से भद्रवाह और डोडा जिलों में लैवेंडर की खेती ने इस क्षेत्र को वैश्विक स्टार्टअप मानचित्र पर स्थापित किया है। उन्होंने कहा कि इस बदलाव को और आगे बढ़ाने के लिए उच्च-मूल्य वाली फसलों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों के युवाओं को भी कृषि स्टार्टअप्स से जोड़ने की जरूरत है।
डॉ. सिंह ने कहा कि एक दौर था जब जम्मू-कश्मीर के युवाओं के पास सीमित अवसर थे, लेकिन आज वे नवाचार और उद्यमशीलता के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।
स्टार्टअप क्रांति का श्रेय मिलना अभी बाकी है
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने जम्मू-कश्मीर में स्टार्टअप क्रांति को एक ऐसा परिवर्तन बताया, जिसे अभी तक वह पहचान नहीं मिली जो इसे मिलनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में 3,000 से अधिक लैवेंडर आधारित कृषि स्टार्टअप्स को सीएसआईआर के ‘अरोमा मिशन’ के तहत सहायता मिल रही है। इस मिशन के जरिए सरकार ने न केवल किसानों को प्रोत्साहित किया, बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त भी बनाया है।
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर की भूमि और जलवायु कृषि स्टार्टअप्स के लिए अनुकूल है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार इस क्षमता को पूरी तरह से विकसित करने के लिए ठोस कदम उठा रही है। इसी दिशा में सरकार ने लैवेंडर की एक विशेष किस्म तैयार कर किसानों को मुफ्त पौधे उपलब्ध कराए, जिससे वे इसकी व्यावसायिक खेती कर सकें। साथ ही, उन्हें खेती के आधुनिक तरीकों, बाजार तक पहुंच और उत्पादों को आगे बढ़ाने के लिए हरसंभव सहायता दी गई।
सरकार की इस पहल का असर अब साफ नजर आ रहा है। लैवेंडर की खेती अब सिर्फ खेती तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने कई नए कृषि स्टार्टअप्स को जन्म दिया है। लैवेंडर से तैयार किए गए उत्पाद—जैसे तेल, फूल और सुगंधित सामग्री—अब कई स्टार्टअप्स के लिए महत्वपूर्ण कच्चा माल बन चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों में जम्मू-कश्मीर और आसपास के इलाकों में कई सफल स्टार्टअप्स उभरे हैं, जो क्षेत्र की आर्थिक प्रगति में योगदान दे रहे हैं।
इस पहल के कारण कई युवा और किसान आत्मनिर्भर बने हैं। उदाहरण के तौर पर, एक किसान, जो अरोमा मिशन से जुड़ा था, अब 1 से 1.5 करोड़ रुपये की सालाना कमाई कर रहा है। वहीं, एक अन्य किसान ने लैवेंडर ऑयल और इससे जुड़े उत्पादों के व्यापार से 2.5 से 3 करोड़ रुपये तक का बिजनेस खड़ा कर लिया है। इसी तरह, एक युवा उद्यमी, जिसने मात्र दो साल पहले इस सेक्टर में कदम रखा था, अब लैवेंडर आधारित उत्पादों पर दो सफल कंपनियां चला रहा है।
लैवेंडर की खेती के चलते तीन बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। पहला, एग्री-टूरिज्म, जिससे डोडा में जून के महीने में लगभग सभी होटल 15 से 20 दिनों तक पूरी तरह बुक रहे। दूसरा, महिला सशक्तिकरण, जहां महिलाएं अपने घरों में ही नर्सरी तैयार कर बिना कहीं गए अच्छी आय अर्जित कर रही हैं। तीसरा, राष्ट्रीय राजमार्गों की खूबसूरती और लैंडस्केपिंग, जिससे न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिला, बल्कि पर्यटन क्षेत्र को भी मजबूती मिली है।