हरिशंकर परसाई के व्यंग्य से आज की ‘अश्लील’ स्टैंड-अप कॉमेडी तक; कितना बदला हँसाने का बाज़ार?

फारुकी पर इंदौर में भगवान गणेश और अन्य हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने का मुकदमा हुआ और मध्य प्रदेश में उसे बेल भी नहीं मिली थीI

जब पूरा देश 2019 की मई में चुनावी नतीजों की प्रतीक्षा में व्यस्त था, उसी समय एक छोटी सी खबर आई थीI तन्मय भट्ट और उनके तीन साथियों के लिए जाना जाने वाला एआईबी नाम का तथाकथित स्टैंड अप कॉमेडी का चैनल बंद हो रहा थाI इस चैनल के उत्सव चक्रबोर्ती पर यौन दुराचार के आरोप लगे थेI बाद की जांच में पता चला था कि उत्सव की करतूतों का चैनल के सीईओ तन्मय भट्ट को अच्छी तरह पता था लेकिन व्यक्तिगत बातचीत के अलावा उसने इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की थीI ये तथाकथित प्रगतीशील जमातों का आम व्यवहार है, जिसमें वो नारी स्वतंत्रता और उसके अधिकारों की बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं, लेकिन ऐसा कोई मामला आ जाए तो वो उसपर लीपापोती करके स्त्री को चुप करवाने की कोशिशें करने लगते हैंI

बाद में इसी चैनल के गुरसिमरन खंबा पर भी जब अक्टूबर 2018 में ऐसे ही यौन दुराचार के आरोप आने लगे तो अंत ऐसा ही होना थाI गाली-गलौच को कॉमेडी घोषित करने वाली एआईबी का इस तरह धीरे से अंत हो गयाI ये ‘मी टू’ आन्दोलन के भारत पहुँचने का भी दौर था और तथाकथित प्रगतिशीलों के कई स्तम्भ उस दौर में यौन दुराचार के आरोपों के घेरे में आयेI

जहाँ तक कॉमेडी को अश्लीलता का पर्याय बना देने का प्रश्न है, एआईबी का खात्मा केवल एक शुरुआत थीI मुम्बई में ‘कैनवास लाफ क्लब’ जैसे कॉमेडियन्स को प्रश्रय देने वाले मंच 2013 में ही कुनाल कामरा जैसे लोगों को सामने ला चुके थेI जुलाई 2017 तक कुनाल कमरा का अपना शो ‘शट अप या कुनाल’ जैसे कार्यक्रम के साथ वो डीमोनीटाईजेशन सहित कई मुद्दों पर विवादित कार्यक्रम बनाने उतर चुका थाI इसका शो भी इतना प्रसिद्ध था कि उसपर अरविंद केजरीवाल भी दिखे थेI इंडिगो की एक फ्लाइट के दौरान 2022 में सहयात्री अर्नब गोस्वामी को परेशान करने के कारण कामरा को एयर इंडिया और इंडिगो जैसी एयरलाइन्स ने प्रतिबंधित भी कर दिया थाI इस पूरे 2012 से 2022 के दौर में एआईबी से लेकर कामरा जैसे लोगों ने व्यंग को अश्लीलता और फूहड़पने का पर्याय बना देने में कामयाबी पाईI

कुणाल कामरा पर जजों के विषय में विचित्र एक्स पोस्ट (तब ट्वीट) करने का विवाद जैसे रहा, वैसे ही एक अग्रीमा जोशुआ पर छत्रपति शिवाजी की मूर्ती बनाने सम्बन्धी अभद्र टिप्पणियाँ करने पर भी विवाद रहा हैI गौरतलब है कि ये विवाद तब शुरू हुआ था जब अग्रिमा का एक पुराना (2019 का) खार के किसी आयोजन का वीडियो सामने आ गया थाI यानि आज क्या कर रहे हैं केवल इसपर नहीं, ये लोग पहले क्या करते रहे हैं ये देखना भी महत्वपूर्ण होता हैI केवल देश के अन्दर क्या कर रहे हैं, उससे फर्क नहीं पड़ता, वीर दास जैसे लोग अमेरिका में जाकर भी ऐसी बेइज्जती करने का प्रयास कर चुके हैंI ये भी ध्यान रखने लायक है कि ये विवाद ईसाई या मुस्लिमों को निशाना बनाने के लिए नहीं हुए, इन सभी ने केवल हिन्दुओं को ही निशाना बनाया हैI

इस पूरे प्रकरण में मुन्नवर फारुकी का नाम न लिया जाए तो बात अधूरी ही रह जाएगीI संभव है कि गड़बड़ी इसका नाम रखे जाने के क्रम में ही हो गयी हो क्योंकि मुन्नवर और फारुकी दोनों नाम वाले जो लोग याद आते हैं वो ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ से जुड़े हुए ही लोग थेI फारुकी पर पहले इंदौर में भगवान गणेश और अन्य हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने का मुकदमा हुआ और मध्य प्रदेश में उसे बेल भी नहीं मिली थीI बाद में सुप्रीम कोर्ट की जमानत पर वो छूट पायाI जैसी टिप्पणियाँ उसके कार्यक्रम में हो रही थीं, उसके कारण जस्टिस रोहित आर्य ने कहा था कि ऐसे लोगों को छोड़ा नही जाना चाहिएI बाद में मुंबई में बजरंग दल ने फारुकी के कार्यक्रम भी स्थगित करवाए थेI लगातार विरोध के बाद कहीं जाकर उसे मंच दिया जाना बंद किया गया हैI

सिर्फ व्यंग की बात करें तो आधुनिक भारत में व्यंग न रहा हो, ऐसा कभी नहीं थाI अभी भी साहित्य में जोशी जी या हरिशंकर परसाई जी पढ़े ही जाते हैंI सीधे देवी-देवताओं पर व्यंग की बात भी कर लें तो हरिमोहन झा की खट्टर काका में श्री राम के पूरे परिवार को जैसे लपेटा जाता है, वैसा तो दूसरे छोटे-मोटे पंथ-मजहबों में करने पर सर तन जुदा के नारे लगाती भीड़ सड़कों पर उतर आएगी! इसके बाद भी व्यंग लिखने वालों पर मुकदमे न हुए हों, ऐसा भी नहीं हैI दीनबंधु मित्रा पर ‘गजदानंद ओ जुबराज’ नाटक (1860) लिखने के लिए मुकदमा हुआ थाI स्तर की बात करें तो जोशी या परसाई जैसे लेखकों की तुलना में आज के ‘स्टैंड अप कॉमेडियन’ कहीं ठहरते भी नहीI विदूषकों की जो परंपरा भारतीय साहित्य में रही है उसे पिछले दशक में ‘स्टैंड अप कॉमेडी’ के जरिये गाली-गलौच में बदलने के प्रयास से अधिक कुछ नहीं हुआ हैI

गौर करने लायक ये भी है कि आज इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए हमारे पास जो कानून हैं भी, वो फिरंगी दौर के हैंI सिर्फ वाचिक और प्रिंट के माध्यम से आगे बढ़कर अब बात टीवी और इन्टरनेट तक पहुँच चुकी हैI जाहिर है कानूनों में भी उसी गति से सुधार होना चाहिए था जो कि नहीं हुआ हैI इन्टरनेट और विशेषकर सोशल मीडिया पर आप क्या डाल सकते हैं और क्या नहीं, इसपर और चर्चा जरूरी हैI सिर्फ एक बार किसी समय रैना और किसी रणवीर इलाहबादिया की गिरफ्तारी से मामले खत्म नही हो जातेI सूचना क्रांति के दौर में हम लोग ‘फोर्थ जनरेशन वॉरफेयर’ के युग में हैं जहाँ लड़ाइयाँ लड़ी ही सूचना तंत्र के जरिये जाती हैंI किसी एक समुदाय (यहूदियों) का मजाक बनाकर ही नाज़ियों ने शुरुआत की थी जिस भौंडी नाक के कार्टून को नरसंहारों में बदलते हुए विश्व देख चुका हैI अगर हर तथाकथित स्टैंड अप कॉमेडियन सिर्फ हिन्दुओं का मजाक उड़ाता दिखता है तो दोबारा नाज़ी दौर के आने की आहट इसे न माना जाए क्या?

बाकी सरकारें ऐसे मसलों पर तभी चेतती हैं जब जनता की ओर से उचित दबाव बनाया जाएI प्रश्न ये है कि भारत की जनता अपनी विधायिका को कब ये याद दिलाना शुरू करेगी कि हमने शौचालय बनवाने के लिए नहीं बल्कि नीतियाँ और कानून बनाने के लिए लोकतान्त्रिक चुनावों के जरिये लोगों को संसद में भेजा था?

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