पाइरेट्स ऑफ द कैरिबियन वाली शृंखला में जो समुद्री डाकू दिखते हैं, वैसे ही डाकू ने मुगलों के हज पर जाने वाले जहाज को लूटा था। इस लूट में वो मुगल राजकुमारी यानी औरंगजेब की बेटी को उठा ले गया था और औरंगजेब कुछ नहीं कर पाया था। मुगलों ने जो-जो किया था, वो जीवनकाल में ही भुगता भी। ‘गंज-ए-सवाई’ नाम का जहाज मुगलों की भारत से लूटकर इकठ्ठा की गई दौलत लेकर निकला था। इस जहाज को जब मरियम उल जमानी ने बनवाया था तब इसपर 62 तोपें होनी थीं, और कहते हैं कि लूटते वक्त इस पर 80 तोपें, 1100 नाविक और कम से कम 400 बंदूकची सवार थे। उसके साथ ही फतेह मुहम्मद नाम का जहाज था। इस जहाज पर नब्बे से अधिक तोपें थीं और 800 सिपाही सवार थे। समुद्री लुटेरों के पास छह जहाज थे और उन्होंने पहले फतेह मुहम्मद पर हमला किया था। इन छह लुटेरों के जहाजों ने हेनरी एवेरी को अपना एडमिरल चुना और उसी के नेतृत्व में हमला हुआ था।
औरंगजेब की दादी मरियम उल जमानी अकबर की बीवी थी और उसी का बेटा शहजादा सलीम बाद में जहाँगीर नाम से गद्दी पर बैठा था। अकबर के दौर में उसके हरम की स्त्रियों का नाम लेने पर पाबन्दी लगा दी गयी थी, इसलिए मरियम उल जमानी का नाम कम सुनाई देता है। वो अकबर के दौर की इकलौती स्त्री थी जिसके व्यापार करने के बारे में कई इतिहासकारों ने लिखा है। उसने मक्का जाने वाले कई जहाज बनवाये थे जिससे हाजी आते-जाते थे और मुगल शासकों द्वारा जमा की गई दौलत वहाँ भेजी जाती थी।
मसालों और रेशम का व्यापार करने के लिए मरियम उल जमानी के जहाज जाया करते थे। मुगल स्त्रियाँ जिन्हें शादी करने की इजाजत नहीं ही होती थी, उनके लिए विदेश व्यापार करने का रास्ता मरियम उल जमानी ने ही खोला था। अकबर खुद भी उसके व्यापार में रूचि लेता था, व्यापार में निवेश करता था और अकबर को सलाह भी मरियम उल जमानी ही देती थी। जब अगस्त 1695 में मरियम उल जमानी का बनवाया जहाज ‘गंज-ए-सवाई’ बाब अल मंदेब पहुंचा जो आज ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ कहलाने वाले इलाके में यमन और अरब के बीच पड़ता है। तब तक इन जहाजों को सूरत के बंदरगाह से चले 8 दिन हो चुके थे।
इन डकैतों में टिव अपने 60 लोगों के साथ एमिटी नाम के जहाज पर था। जोसफ फरो 60 आदमियों के साथ पोर्ट्समाउथ एडवेंचर पर सवार था। डॉलफिन नाम के जहाज पर 60 लोगों के साथ रिचर्ड वांट था, विल्लियम मायेस पर्ल पर 30-40 आदमियों के साथ था और थॉमस वेक 70 आदमी लिए सुसन्ना नाम के जहाज पर आगे बढ़ा। यानी कि समुद्री लुटेरों की कुल ताकत एक मुगलिया जहाज से भी कहीं कम थी। इसके बावजूद लुटेरों का इरादा पक्का था। इन जहाजों में डॉलफिन बहुत धीमा था इसलिए रिचर्ड वांट और उसके साथी डॉलफिन को जलाकर हेनरी एवेरी के जहाज फैंसी पर आ गए।
एमिटी जहाज भी तेज रफ़्तार मुगलों का पीछा नहीं कर पाया और कहीं पीछे ही छूट गया। एक मुगल जहाज के साथ मुडभेड़ में उसका कप्तान टिव पहले ही मारा जा चुका था, इसलिए वो अभियान में फिर शामिल ही नहीं हुआ। इस तरह चार या पांच दिन पीछा करने के बाद उनका सामना फतेह मुहम्मद से जब दोबारा हुआ तो सूरत के किसी अब्दुल गफ्फार नाम के व्यापारी के इस जहाज के नाविकों ने जमकर मुकाबला भी नहीं किया। हेनरी एवेरी ने आसानी से जहाज पर कब्जा करके, उस दौर के करीब पचास से साठ हजार पौंड की रकम लूटी। जब लुटेरों में हिस्सा बंटा तो हेनरी एवेरी के हिस्से बहुत छोटी रकम आई।
इतने कम से हेनरी एवेरी को संतोष नहीं हुआ। वो ‘गंज-ए-सवाई’ के पीछे निकल पड़ा। ‘गंज-ए-सवाई’ पर 80 तोपों और 400 सिपाहियों के अलावा छह सौ हज यात्री थे जिनमें ज्यादातर औरतें ही थीं। किस्मत से तोपों के पहले हमले में ही हेनरी के जहाज ने ‘गंज-ए-सवाई’ का मस्तूल उखाड़ दिया था। फैंसी नाम का जहाज अब ‘गंज-ए-सवाई’ के बराबर जा पहुँचा। थोड़ी देर तक तो लुटेरे मुगल बंदूकों की मार के कारण जहाज पर चढ़ नहीं पाए लेकिन तभी ‘गंज-ए-सवाई’ पर एक बड़ी तोप फट गई जिससे उस पर कई लोग मारे गए और कई आग से भागने लगे।
पर्ल नाम का एक दूसरा लुटेरा जहाज भी तब तक पास आ गया था लेकिन लुटेरों की हिम्मत मुगल जहाज पर चढ़ने की हुई नहीं थी। तब तक मुगल कप्तान इब्राहिम लड़ाई के क्षेत्र से भागकर नीचे जा छुपा और औरतों को बंदूकें थमाकर ऊपर भेज दिया। कई घंटे तक स्त्रियों ने लुटेरों का मुकाबला तो किया लेकिन फिर वो नेतृत्व और अनुभव की कमी के कारण हार गईं और आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद तो हेनरी एवेरी ने जहाज पर कब्ज़ा कर लिया और फिर कई दिनों तक ‘गंज-ए-सवाई’ पर बलात्कार और यातनाओं का नंगा नाच चलता रहा। उस वक्त सूरत में मौजूद इतिहासकार खफी खान ने अपने विवरण में इसके लिए पूरी तरह जहाज के कप्तान इब्राहिम को दोषी ठहराया था और लिखा था कि ईसाई तलवारों की लड़ाई में उतने बहादुर नही होते और कप्तान इब्राहिम ने बहादुरी दिखाई होती तो वो हार जाते।
दूसरे समकालीनों के अलावा खुद खफी खान ने भी इस घटना के बारे में लिखा है कि बलात्कार और यातनाओं का दौर कई दिन तक चला और एक-एक दिन लुटेरे, जहाज की एक-एक मंजिल नीचे उतरकर मुस्लिम औरतों की अस्मत लूटते रहे। बलात्कारों और यातनाओं के जरिये छुपाये हुए खजाने के बारे में उगलवाया गया। कुछ मुस्लिम औरतों ने जहाज से कूदकर या आत्महत्या करके जान दे दी। जो बच गयीं उन्हें लुटेरे हेनरी एवेरी के जहाज फैंसी पर उठा ले गए। इस घटना के बारे में तब के बम्बई के गवर्नर और ईस्ट इंडिया कंपनी के सर जॉन गएर ने एक चिट्ठी लार्ड ऑफ ट्रेड्स को लिखी थी जिससे पता चलता है कि ‘गंज-ए-सवाई’ और अब्दुल गफ्फूर के जहाज़ों को लूटा गया था। अपनी चिट्ठी में जॉन गएर ने ही लिखा था कि किसी बड़े उमराव की बीवी, बादशाह की एक करीबी रिश्तेदार इत्यादि उस जहाज पर थे, जिन्हें लुटेरे उठा ले गए। एक बड़े आदमी (कोई वजीर) की बीवियों ने खुदखुशी कर ली ताकि उनके पतियों को उनके जिस्म को नोचा जाना न देखना पड़े। यानि औरंगजेब की बेटी, कुछ मुगल शहजादियाँ जहाज पर थी जिन्हें लुटेरे उठा ले गए।
उस दौर में एक नाविक या जहाजी की सालाना आय करीब 15 से 33 पौंड के बीच होती थी। हेनरी एवेरी नाम के इस लुटेरे पर 1000 पौंड का इनाम रखा गया था। ये एक जहाजी के पूरे जीवन की कमाई से ज्यादा होता। इससे भी अनुमान लगाया जा सकता है कि लुटेरे मुगल शहजादी को उठा ले गए थे। खुद लुटेरों ने भी लिखा है कि इस लूट में उन्हें हीरे-जवाहरात से कहीं अधिक कीमती चीज मिली थी। इतिहास की सबसे बड़ी, किसी आदमी की खोज जो हुई हो, वो इसी घटना के बाद हेनरी एवेरी की खोज थी। इससे पहले किसी आदमी की इतनी बड़ी खोज नहीं हुई थी। हेनरी एवेरी कभी पकड़ा नहीं गया, न ही औरंगजेब की लुटी हुई ‘दौलत’ वापस मिली थी। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जो स्त्रियों बच्चों को लूट ले जाने का काम मुगलों ने किया था, वो उन्हें स्वयं भी अपने जीवनकाल में ही भुगतना भी पड़ा था। हाँ, भारत के इतिहास की किताबों में इन घटनाओं को नहीं लिखा-पढ़ा जाता है, उसके कारणों का अनुमान तो आपको होगा ही।