रूस और भारत के बढ़ते सहयोग से म्यांमार में कमज़ोर पड़ रहा चीन का दबदबा

भारत और म्यांमार के बीच द्विपक्षीय व्यापार अप्रैल-नवंबर 2024 में सालाना आधार पर 23% बढ़कर 1.50 बिलियन डॉलर हो गया था

म्यांमार में बढ़ती रूस और भारत की बढ़ती उपस्थिति चीन के लिए बेहद असहज करने वाली स्थिति है

म्यांमार में बढ़ती रूस और भारत की बढ़ती उपस्थिति चीन के लिए बेहद असहज करने वाली स्थिति है

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में म्यांमार की सैन्य सरकार (जुंटा) के प्रमुख के साथ बैठक की है। 2021 में आंग सान सू की की निर्वाचित सरकार को हटाकर सत्ता हथियाने वाले जनरल मिन आंग ह्लाइंग की रूस की यह चौथी यात्रा थी। गृह युद्ध जैसे हालातों के बीच म्यांमार पश्चिमी देशों से विभिन्न तरह के प्रतिबंध झेल रहा है और रूस के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करना चाहता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, जुंटा इन दिनों आंतरिक संघर्ष, म्यांमार की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था, बढ़ रही भूख का सामना कर रहा है और म्यांमार के 5.5 करोड़ लोगों में से एक तिहाई लोगों को सहायता की गंभीर आवश्यकता है।

दुनिया में अलग थलग पड़े म्यांमार की रूस लगातार मदद करता रहा है और पुतिन ने मिलिशिया गुटों से लड़ने और देश में पकड़ बनाए रखने के लिए जनरल मिन आंग की मदद के लिए हथियारों की बड़ी खेप म्यांमार भेजी है। पुतिन ने इस बैठक में म्यांमार के साथ द्विपक्षीय व्यापार और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में बढ़ते सहयोग का उल्लेख किया और रूस को छह हाथी देने के लिए उन्होंने म्यांमार को धन्यवाद दिया है। इसे विशेषज्ञों द्वारा ‘ऐलीफेंट डिप्लोमेसी’ के तौर पर देखा जा रहा है। म्यांमार में इस वर्ष चुनाव कराए जाने का भी प्लान है। हालांकि, इसे बेहद मुश्किल माना जा रहा है। इस सहयोग को चीन के लिए बड़ा खतरा माना जा रहा है।

रूस-म्यांमार की बढ़ती दोस्ती

चीन के साथ-साथ रूस भी मिलकर म्यांमार का एक प्रमुख समर्थक और हथियार आपूर्तिकर्ता है और वहां रूस में निर्मित लड़ाकू विमानों का उपयोग जातीय अल्पसंख्यक समूहों के नियंत्रण वाले क्षेत्र पर हमलों में किया जाता रहा है। रूस द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर म्यांमार की सैन्य सरकार का बचाव किया जाता है और इसके बदले में सत्तारूढ़ जनरल आमतौर पर रूस की विदेश नीति के एजेंडे का समर्थन करते हैं। रूस को म्यांमार की सैन्य सरकार का प्रमुख समर्थक माना जाता है और वह राजनयिक समर्थन के अलावा शासन की युद्ध क्षमता को बढ़ाने और बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है।

रूस और म्यांमार ने संयुक्त सैन्य अभ्यास किए हैं और म्यांमार में एक छोटे पैमाने के परमाणु संयंत्र के निर्माण को लेकर समझौता भी किया है। इस संयंत्र की क्षमता शुरुआत में 100 मेगावाट होगी और इसकी क्षमता को तीन गुना तक बढ़ाए जाने की संभावना है। रूस ने इस बैठक के दौरान कहा है कि रूस-म्यांमार के बीच संबंध लगातार विकसित हो रहे हैं और पिछले साल द्विपक्षीय व्यापार में 40% की वृद्धि हुई है। पुतिन ने यह भी घोषणा की कि म्यांमार की एक सैन्य इकाई 9 मई को मॉस्को में नाजी जर्मनी पर द्वितीय विश्व युद्ध की जीत की 80वीं वर्षगांठ पर आयोजित होने वाली सैन्य परेड में भाग लेगी

भारत के साथ संबंध बढ़ाने पर भी म्यांमार का ज़ोर

म्यांमार पड़ोसी भारत के साथ अपने व्यापार और निवेश संबंधों का विस्तार करना चाहता है और चीन पर अपनी अत्यधिक निर्भरता को कम करने के प्रयासों के तहत दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के निर्यात की संभावना तलाश रहा है। दिसंबर 2024 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के उप महानिदेशक के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने म्यांमार का दौरा कर दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के क्षेत्र में संभावित सहयोग को लेकर कई महत्वपूर्ण बैठकें की थीं। म्यांमार में दुर्लभ पृथ्वी खनिजों की भरमार है। इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए ज़रूरी इन म्यांमार के इन खनिजों के निर्यात में मौजूदा वक्त में चीन की हिस्सेदारी है।

भारत वर्तमान में म्यांमार में 11वां सबसे बड़ा निवेशक है और इसे बढ़ाए जाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। भारत और म्यांमार के बीच द्विपक्षीय व्यापार अप्रैल-नवंबर 2024 में सालाना आधार पर 23% बढ़कर 1.50 बिलियन डॉलर हो गया था। खास तौर पर फार्मास्यूटिकल्स का निर्यात भारत के लिए बेहद अहम है। भारत में बनीं सस्ती और गुणवत्ता वाली दवाइयों के चलते भारत ने म्यांमार के 60% फार्मास्यूटिकल्स बाज़ार पर कब्ज़ा कर लिया है।

चीन का घटता प्रभाव!

रूस और भारत के साथ म्यांमार के बढ़ते संबंधों से सबसे बड़ा नुकसान चीन का क्षेत्रीय साख को होने जा रहा है। करीब एक महीने पहले रूस ने म्यांमार को 6 Su-30 एसएमई लड़ाकू विमान सौंपे थे और इस कदम को भी चीन के लिए चुनौती के तौर पर देखा गया था जो म्यांमार में लंबे वक्त से दबदबा बनाए हुए है। रूस-म्यांमार के बढ़ते सैन्य सहयोग को लेकर चीन में सोशल मीडिया पर भी खूब सवाल उठाए जाते रहे हैं और चीन की सरकार की आलोचना की जाती है। पड़ोसी देश में बढ़ती रूस और भारत की बढ़ती उपस्थिति चीन के लिए बेहद असहज करने वाली स्थिति है। 

चीन ने म्यांमार सीमा के पास युनान प्रांत में एडवांस्ड रडार सिस्टम (LPAR – लार्ज फेज्ड ऐरे रडार) लगाए हैं जिससे जिनपिंग सरकार इस पूरे क्षेत्र के साथ-साथ और सैन्य गतिविधियों पर भी नज़र रख सकती है। चीन लगातार म्यांमार में आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में है और ऐसे में रूस-भारत का म्यांमार में बढ़ता प्रभाव उसके सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर सकता है।

चीन के लिए यह चिंता का विषय है कि म्यांमार में उसकी स्थिति अब पहले जैसी मजबूत नहीं रही। रूस और भारत की बढ़ती भागीदारी न केवल चीन की रणनीतिक स्थिति को प्रभावित कर रही है बल्कि उसके दीर्घकालिक हितों पर भी खतरा पैदा कर रही है। चीन अब तक म्यांमार की सैन्य सरकार का प्रमुख सहयोगी रहा है लेकिन रूस की नई सक्रियता से यह समीकरण बदल सकता है। दूसरी ओर भारत भी म्यांमार को एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक भागीदार मानता है और अपनी ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत उसे सहयोग देता आ रहा है। इन नई परिस्थितियों में चीन के लिए अपने प्रभाव को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है, जिससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल सकता है।

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