‘पहला सावरकर’: कहानी बंगाल विभाजन के बाद अंग्रेजों को हिला देने वाले गणेश दामोदर सावरकर की

गणेश दामोदर सावरकर

गणेश दामोदर सावरकर

वह 20 साल की उम्र में अनाथ हो गया था। 13 साल तक जेल में संघर्ष करता रहा। होश संभालने के बाद से घर-परिवार की जिम्मेदारी और देश की कठिन परिस्थितियां दोनों ही उसे परेशान करती थीं। लेकिन हार मानना तो दूर उसने कभी पीछे मुड़कर भी नहीं देखा और स्वतंत्रता संग्राम में ऐसी आग लगाई कि जिसकी चिंगारी से वीर सावरकर नामक आग दुनिया के सामने आई। यह कोई और नहीं….सावरकर बंधुओं में सबसे बड़े गणेश दामोदर सावरकर थे। राष्ट्र हित के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले गणेश दामोदर सावरकर की आज यानी 16 मार्च को पुण्यतिथि है।

गणेश दामोदर सावरकर का जन्म 13 जून 1879 को महाराष्ट्र के नासिक के पास भागपुर गांव में चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। शुरुआती शिक्षा के दौरान ही गणेश का मन धर्म, योग और जप-तप में ज्यादा लगता था। वह संन्यासी बनने तक की सोचने लगे थे। हालांकि इसी बीच उनके पिता का प्लेग महामारी में निधन हो गया था। पिता की मौत से 7 साल पहले मां राधाबाई का भी निधन हो चुका था। गणेश 2 भाइयों और एक बहन के बीच घर में सबसे बड़े थे। ऐसे में इनके ऊपर पूरे घर की जिम्मेदारी आ गई। लेकिन वह इस जिम्मेदारी के साथ-साथ धर्म और देश के प्रति भी अपना कर्तव्य निभाते रहे।

राष्ट्र हित में काम करने व इसके लिए लोगों को आगे लाने के लिए गणेश दामोदर सावरकर ने अभिनव भारत सोसायटी नामक संगठन की स्थापना की। इसके बाद इस संगठन में उनके भाई वीर सावरकर भी शामिल हो गए। गणेश एक अच्छे लेखक भी थे। काफी शोध के बाद उन्होंने अंग्रेजी में ‘इंडिया एज ए नेशन’ नामक एक किताब भी लिखी थी। किताब जब्त न हो इसके लिए किताब दुर्गानंद नाम से एक छद्म नाम का उपयोग कर लिखी थी। हालांकि अंग्रेजों को इसका पता चल गया और किताब पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

साल 1905 में अंग्रेजों द्वारा जब बंगाल विभाजन की घोषणा किए जाने के बाद गणेश दामोदर सावरकर ने नासिक में ‘अभिनव भारत सोसायटी’ के सदस्यों के साथ विदेशी वस्तुओं की सरेआम होली जलाई थी। इस दौरान गणेश सावरकर द्वारा जलाई गई क्रांति की ज्वाला पूरे नाशिक में तेजी से फैलनी लगी, इससे अंग्रेजी आक्रांता खौफ से भर गए और ‘वंदे मातरम’ का नारा लगाने के कारण गणेश समेत अभिनव भारत के अन्य सदस्यों को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ मुकदमा चलाया।

इसके बाद साल 1908 में, एक बार फिर गणेश सावरकर को धोखे से गिरफ़्तार कर लिया गया। इसके बाद बिना किसी सबूत के “सब-इंस्पेक्टर मुहम्मद हुसैन की अवज्ञा” करने के लिए एक महीने की सज़ा सुनाई गई। इस दौरान उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया।

साल 1909 में नासिक से गणेश सावरकर को एक बार फिर गिरफ्तार किया गया और इस बार उन पर देशद्रोह का मुकदमा चला करकाला पानी की सजा सुनाई दी गई। इसके बाद पुरे 20 साल तक वह अंडमान की सेल्युलर जेल में बंद रहे। साल 1921 में उन्हें गुजरात लाया गया, यहां साबरमती जेल में एक साल तक बंद रहे। इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें छोड़ दिया।

जेल से रिहाई के बाद गणेश सावरकर के घर पर अंग्रेजों ने निगरानी बढ़ा दी थी। उनकी हर गतिविधि पर लगातार नज़र रखी जा रही थी। लेकिन इस दौरान वह राष्ट्र हित में लगे और बम बनाना सीखने के साथ ही छोटी-छोटी रियासतों के शासकों से मिले और अपने क्रांतिकारी आंदोलन को जारी रखा। इस दौरान वे जासूसों से बचते रहे और खुफिया पुलिस को भी चकमा देते रहे। चूंकि वे बम बनाना सीख चुके थे, इसलिए अन्य क्रांतिकारियों को भी बम बनाने की ट्रेनिंग देते रहे, ताकि समय आने पर अंग्रेजों के खिलाफ बमों की कमी ना हो। 

इतना ही नहीं गणेश सावरकर हिंदुओं को भी एकजुट करने में लगे रहे। इसी कड़ी में उन्होंने डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से मुलाकात की थी, उनसे मिलकर उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS की रूप-रेखा तैयार भी की थी। यही कारण है कि गणेश सावरकर को संघ के 5 संस्थापक सदस्यों में से एक माना जाता है। आजीवन राष्ट्र हित में लगे रहने और समाज की एकता के लिए काम करने वाले गणेश दामोदर सावरकर जेल से निकलने के बाद से ही बीमार रहने लगे थे। लेकिन साल 1944 के बाद से उनकी तबीयत और भी अधिक बिगड़ने लगी। लंबी बीमारी के बाद 16 मार्च 1945 को उनका निधन हो गया। इस तरह आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व समर्पण करने वाला एक दीपक आजादी से पहले ही बुझ गया।

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