न्यायपालिका के फैसलों को न्यायिक इतिहास में एक नज़ीर माना जाता है। कोर्ट के फैसले आने वाले न्यायिक मामलों के लिए महत्वपूर्ण मील का पत्थर होते हैं। खासतौर पर महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा से जुड़े मामलों में दिए गए फैसले ना केवल न्यायिक व्यवस्था में बल्कि समाज में भी गहरी छाप छोड़ते हैं। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में नाबालिग पीड़िता के साथ किए गए गंभीर यौन उत्पीड़न को लेकर महत्वपूर्ण फैसला दिया है। हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि किसी नाबालिग पीड़िता के स्तनों को पकड़ना या उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना बलात्कार या बलात्कार का प्रयास के तहत अपराध नहीं है। इस फैसले के बाद लैंगिक न्याय और महिलाओं सुरक्षा को लेकर बहस शुरू हो गई है।
इस मामले में अभियोजन पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दावा किया था कि आरोपी पवन और आकाश ने कथित तौर पर 11 वर्षीय पीड़िता के स्तनों को पकड़ा था और इसके बाद एक ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और पीड़िता को पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया। हालांकि, राहगीरों के हस्तक्षेप के बाद आरोपी पीड़िता को छोड़कर भाग गए थे। इस मामले में आरोपियों के खिलाफ POCSO अधिनियम के तहत बलात्कार के प्रयास का मामला दर्ज किया गया था और ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ धारा 376 को भी लागू कर समन जारी किया था।
इस समन के खिलाफ आरोपियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया था और दावा किया था कि उनके खिलाफ बलात्कार का कोई अपराध नहीं बनता है। हाईकोर्ट ने अब इस मामले में निर्देश दिया है कि में आरोपियों पर आईपीसी की बलात्कार की धारा के मुकाबले कम गंभीर धारा 354-बी (नंगा करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और POCSO अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलाया जाए है।
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने अपने आदेश में कहा है…
“पवन और आकाश के खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने पीड़िता के स्तनों को पकड़ लिया और आकाश ने उसके निचले वस्त्र को नीचे खींचने का प्रयास किया। उन्होंने पीड़िता के पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप के कारण वे पीड़िता को छोड़कर घटना स्थल से भाग गए। यह तथ्य यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि अभियुक्तों ने पीड़िता के साथ बलात्कार करने का निश्चय किया था क्योंकि इन तथ्यों के अलावा उन पर कोई अन्य ऐसा कार्य करने का आरोप नहीं लगाया गया जो बलात्कार की मंशा को सिद्ध करे।”
“शिकायत या सीआरपीसी की धारा 200/202 के तहत दर्ज गवाहों के बयान में कहीं भी यह आरोप नहीं लगाया गया कि अभियुक्त आकाश ने पीड़िता के पायजामे का नाड़ा तोड़ने के बाद उत्तेजना महसूस की थी। आकाश के खिलाफ आरोप यह है कि उसने पीड़िता को पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया। गवाहों ने यह भी नहीं कहा कि इस घटना के कारण पीड़िता नग्न हो गई या उसके कपड़े पूरी तरह उतर गए। ऐसा कोई आरोप नहीं है कि अभियुक्त ने पीड़िता के साथ लैंगिक संपर्क (penetrative sexual assault) करने का प्रयास किया था।”
“अभियुक्त पवन और आकाश के खिलाफ लगाए गए आरोप और मामले के तथ्य इस अपराध को बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं रखते हैं। बलात्कार के प्रयास का आरोप सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि अभियोजन यह साबित करे कि यह अपराध केवल तैयारी (preparation) की अवस्था तक सीमित नहीं था बल्कि अपराध को अंजाम देने की दिशा में ठोस कदम उठाए गए थे। किसी अपराध की तैयारी और उसके वास्तविक प्रयास के बीच मुख्य अंतर दृढ़ निश्चय (determination) की तीव्रता में होता है।”
केंद्रीय मंत्री ने उठाए सवाल?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले की केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने निंदा की है। अन्नपूर्णा देवी ने कहा कि इस तरह के फैसले से समाज में गलत संदेश जाएगा। उन्होंने इसे गलत फैसला बताया है और सुप्रीम कोर्ट से भी आग्रह किया है कि इस मामले पर ध्यान दिया जाए।
कोर्ट के इस फैसले पर दिल्ली महिला आयोग की पूर्व प्रमुख और आम आदमी पार्टी (AAP) की सांसद स्वाति मालीवाल ने भी प्रतिक्रिया दी है। स्वाति ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा, “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और मैं फैसले में की गई टिप्पणियों से बहुत स्तब्ध हूं। यह बहुत शर्मनाक स्थिति है।” उन्होंने कहा, “उन पुरुषों द्वारा किया गया कृत्य बलात्कार के दायरे में क्यों नहीं आता? मुझे इस फैसले के पीछे का तर्क समझ में नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए।”
हाईकोर्ट ने बताई ‘बलात्कार की परिभाषा’
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किसी स्त्री की योनि, उसके मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में अपना लिंग किसी भी सीमा तक प्रवेश करता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; या
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किसी स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में ऐसी कोई वस्तु या शरीर का कोई भाग, जो लिंग न हो, किसी भी सीमा तक अनुपविष्ट करता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; या
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किसी स्त्री के शरीर के किसी भाग का इस प्रकार हस्तसाधन करता है जिससे कि उस स्त्री की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग या शरीर के किसी आग में प्रवेशन कारित किया जा सके या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; या
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किसी महिला की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुंह लगाता है या उससे अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा कराता है, जहां ऐसा निम्नलिखित सात भांति की परिस्थितियों में से किसी परिस्थिति में किया जाता है :-
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इस धारा के प्रयोजनों के लिए, ‘योनि’ में लैबिया मेजोरा भी शामिल होगा।
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सहमति का अर्थ है एक स्पष्ट स्वैच्छिक समझौता जब महिला शब्दों, इशारों या किसी भी रूप में मौखिक या गैर-मौखिक संचार के माध्यम से, विशिष्ट यौन क्रिया में भाग लेने की इच्छा व्यक्त करती है; परंतु ऐसी महिला के बारे में, जो प्रवेशन के कृत्य का भौतिक रूप से विरोध नहीं करती है, मात्र इस तथ्य के कारण यह नहीं समझा जाएगा कि उसने लैंगिक क्रियाकलाप के प्रति सहमति प्रदान की है।
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किसी चिकित्सीय प्रक्रिया या अंतःप्रवेशन से बलात्संग गठित नहीं होगा।
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किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग या यौन कृत्य, जबकि पत्नी की आयु पंद्रह वर्ष से कम न हो बलात्कार नहीं है।