‘मैं एक शर्त पर ज़िंदा रह सकता हूं…’: अपने आखिरी पत्र में भगत सिंह ने साथियों से क्या कहा?

28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर ज़िले (अब पाकिस्तान) में जन्मे भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई थी

22 मार्च को भगत सिंह ने अपने साथियों को पत्र लिखा था

22 मार्च को भगत सिंह ने अपने साथियों को पत्र लिखा था

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की चर्चा भगत सिंह का नाम लिए बगैर हमेशा अधूरी ही मानी जाएगी। भगत सिंह का योगदान इतिहास के पन्नों में सवर्ण अक्षरों में अंकित है और सदियों तक लोगों को प्रेरणा देता रहेगा। 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर ज़िले (अब पाकिस्तान) में जन्मे भगत सिंह को आज ही के दिन (23 मार्च) 1931 में राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई थी। देश के लिए उनके बलिदान ने लाखों लोगों को प्रेरित किया जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी। भगत सिंह ने फांसी दिए जाने से एक दिन पहले 22 मार्च को अपने साथियों के नाम एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने आज़ादी और देश के लिए काम करने के अपने विचारों का ज़िक्र किया था। भगत सिंह ने इस पत्र में लिखा था

साथियो,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन मैं एक शर्त पर ज़िंदा रह सकता हूं, कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज़ नहीं हो सकता।

आज मेरी कमज़ोरियां जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फांसी से बच गया तो वे ज़ाहिर हो जायेंगी और क्रांति का प्रतीक-चिह्न मद्धिम पड़ जायेगा या सम्भवतः मिट ही जाए। लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जायेगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी।

हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका हज़ारवां भाग भी पूरा नहीं कर सका। अगर स्वतंत्र, ज़िन्दा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता।

इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया। मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इन्तज़ार है। कामना है कि यह और नज़दीक हो जाए।

आपका साथी,
भगत सिंह

देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने जा रहे भगत सिंह के मन में देश के लिए और कुछ कर गुज़रने की जो हसरतें थीं, वे बताती हैं कि क्यों वे आज़ादी के सबसे बड़े नायकों में शामिल हैं। क्यों आज भी देश अपने इस सपूत को इतना प्यार करता है। उनका बलिदान सिर्फ एक घटना नहीं बल्कि एक अनंतकाल के लिए प्रेरणा बन चुका है जो हर पीढ़ी को संघर्ष और बलिदान की सीख देता रहेगा।

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