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‘तुम मत आओ, मैं सब संभाल लूंगा’: 26/11 मुंबई हमले के हीरो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के आखिरी ऑपरेशन की पूरी दास्तां

1995 में संदीप ने 12वीं की पढ़ाई खत्म की और उसी साल नैशनल डिफेंस एकेडमी में उनका चयन हो गया है

Shiv Chaudhary द्वारा Shiv Chaudhary
15 March 2025
in इतिहास, रक्षा
'ब्लैक टॉरनेडो' संदीप उन्नीकृष्णन का आखिरी ऑपरेशन था

'ब्लैक टॉरनेडो' संदीप उन्नीकृष्णन का आखिरी ऑपरेशन था

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‘डोंट कम अप, आई विल हैंडल देम’

26 नवंबर 2008 को पाकिस्तान से आए आतंकियों ने भारत की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई पर हमला कर दिया था। लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षित आतंकियों के निशाने पर मुंबई के लियोपोल्ड कैफे और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस जैसे कई महत्वपूर्ण स्थान थे। मुंबई के प्रसिद्ध ताज होटल पर भी आतंकियों ने हमला कर दिया था। आतंकियों ने होटल में महिलाओं, बच्चों समते कई लोगों को बंधक बना लिया था। NSG ने लोगों को बचाने के लिए ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो शुरू किया था और 31 साल के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन NSG की इसी टीम का हिस्सा थे। 27 नवंबर को NSG टीम ने मोर्चा संभाल लिया था। 28 नवंबर को ताज में गोलीबारी के बीच उन्नीकृष्णन ने सीढ़ियों से ऊपर जाते हुए अपने साथियों से कहा, ‘डोंट कम अप, आई विल हैंडल देम‘ (ऊपर मत आओ, मैं खुद उनसे निपट लूंगा)। ये शब्द उनके आखिरी शब्द थे जो उनकी अद्वितीय वीरता और बलिदान का प्रतीक बन गए।

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संदीप उन्नीकृष्णन का शुरुआती जीवन

मेजर संदीप उन्नीकृष्णन का जन्म 15 मार्च 1977 को केरल के कोझिकोड में हुआ था। उनके पिता के. उन्नीकृष्णन इसरो के डायरेक्टर के पर्सनल असिस्टेंट थे और उनकी मां धनलक्ष्मी उन्नीकृष्णन गृहणी थीं। कुछ समय बाद संदीप का परिवार कर्नाटक से बेंगलुरु शिफ्ट हो गया था और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बेंगलुरु के फ्रैंक एंथनी पब्लिक स्कूल से पूरी की। संदीप का झुकाव बचपन से ही सेना की ओर था। उनके स्कूल के प्रिंसिपल क्रिस्टोफर ब्राउनी के मुताबिक, संदीप न सिर्फ पढ़ाई में बल्कि खेलकूद में भी काफी तेज़ थे। बकौल ब्राउनी, संदीप बचपन से ही आर्मी ऑफिसर बनना चाहते थे और इसलिए वह स्कूल में भी सेना के जवानों जैसी कमांडो कट हेयरस्टाइल रखते थे।

कैसा रहा संदीप का सैन्य करियर?

1995 में संदीप ने 12वीं की पढ़ाई खत्म की और उसी साल उन्होंने नैशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) का पेपर दिया जिसमें उनका चयन हो गया। 1995 में उन्होंने पुणे स्थित NDA में प्रवेश ले लिया। उस दौरान वे ‘ऑस्कर’ स्क्वाड्रन का हिस्सा थे। यहां 3 साल की ट्रेनिंग के बाद वह देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) देहरादून चले और 1999 में यहां से पास आउट हुए। जिस समय संदीप देहरादून से पास आउट हुए उस समय उनकी उम्र 22 वर्ष थी और वे भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बन गए थे।

संदीप को पहले पोस्टिंग 7 बटालियन ऑफ बिहार रेजिमेंट में मिली थी। उसी समय कारगिल का युद्ध चल रहा था और जुलाई 1999 में संदीप को ‘ऑपरेशन विजय’ में हिस्सा लेने के लिए कारगिल भेजा गया। उसी साल दिसंबर में उन्होंने 6 जवानों की टीम का नेतृत्व करते हुए पाकिस्तानी सेना से लोहा लिया और अपने स्थान से 200 मीटर आगे भारतीय सेना की एक पोस्ट पर फिर से कब्जा कर लिया था।

2003 में संदीप कैप्टन बने और 2005 में मेजर बन गए। इस दौरान उन्होंने बेलगाम के कमांडो ट्रेनिंग में और गुलमर्ग में सेना की विशेष ट्रेनिंग ली थी। अपने शानदार कार्यकाल के दौरान उन्होंने सियाचिन, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और गुजरात में सेवाएं दीं और जनवरी 2007 में संदीप ने एनएसजी के 51 स्पेशल एक्शन ग्रुप (NSG SAG) जॉइन कर लिया था।

मुंबई हमला और मेजर संदीप

दिसंबर 2008 में संदीप अपने एक दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए वापस घर आने वाले थे लेकिन नियति को कुछ ओर ही मंज़ूर था। 26 नवंबर 2008 को 4 आतंकवादियों ने मुंबई के ताज होटल पर हमला कर दिया था और 80 बंधकों को मार डाला व 240 को घायल कर दिया था। इस हमले से रेस्क्यू के लिए NSG ने ऑपरेशन ‘ब्लैक टॉरनेडो’ की शुरुआत की और मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने वहां फंसे बंधकों को बचाने के लिए अपनी टीम का नेतृत्व किया था।

संदीप को जानकारी मिली की आतंकियों ने बंधकों को दूसरी मंज़िल पर एक कमरे में रखा है तो वे एक वैकल्पिक रास्ते के सहारे 28 नवंबर की रात मेजर संदीप अपने टीम के साथ एक शानदार सीढ़ी पर आगे बढ़े। इस दौरान संदीप की टीम पर आतंकियों ने अंधाधुंध गोलीबारी कर दी। मेजर उन्नीकृष्णन इस गोलीबारी के बीच अपने दो कमांडो के कवर फायर में आगे बढ़ते जा रहे थे। इसी दौरान ऊपर की किसी मंजिल से एक और ग्रेनेड फेंका गया जिससे निकले करीब 5,000 बॉल बेयरिंग ने खौफ का मंज़र बना दिया था। NSG के कमांडो सुनील पर छर्रों और गोलियों को प्रभाव हुआ था और उनके शरीर से खून बहता जा रहा था।

संदीत तुरंत सुनील के पास पहुंचे और अपने एक साथी से उन्हें फर्स्ट ऐड देने को कहा। अचानक ही वह ऊपर पाम लॉन्ज तक पहुंच गए और अपने साथियों से कहा, ‘डोंट कम अप, आई विल हैंडल देम‘ यानी ‘ऊपर मत आना, इन सबको मैं संभाल लूंगा‘। संभवत: ये संदीप के अपने साथियों से कहे गए आखिरी शब्द थे। संदीप इसके बाद गोलीबारी करते हुए ऊपर चले गए और फिर साथियों से नहीं मिले। अधिकारी लगातार उन्हें फोन करते रहे लेकिन उनका फोन स्विच ऑफ आ रहा था।

29 नवंबर 2008 की सुबह दो अधिकारी संदीप के कदमों के निशानों को पीछे करते हुए उन्हें खोजने में जुट गए। थोड़ी ही देर में उन्हें जम चुके खून के ढेर में संदीप का शव मिला। उनकी देह गोलियों से छलनी थी और एक गोली उनके जबड़े से घुसकर सिर को चीरती हुई ऊपर निकल गई थी। संदीप को एके-47 की गोलियां लगी थीं और उनके अंगूठे से एक ग्रेनेड की पिन की रिंग लटक रही थी। भारत मां के लाल ने मातृभूमि की सेवा में अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया था।

मुठभेड़ के दौरान संदीप ने आतंकवादियों को गोली भी मारकर उन्हें घायल कर दिया था। मेजर संदीप के आखिरी हमले की वजह से आतंकी ताज के उत्तरी हिस्से में जाने को मजबूर हो गए थे क्योंकि वे पूरी तरह घिर चुके थे। संदीप की टीम ने सभी आतंकियों को ढेर कर दिया। बेंगलुरु में उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने और उन्होंने श्रद्धांजलि देने के लिए लोगों को हुजूम उमड़ पड़ा था। इसके बाद पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। वीरता और आत्म-बलिदान के लिए संदीप को अशोक चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया।

स्कॉटलैंड के कवि थॉमस कैंपबेल ने अपनी एक कविता में लिखा है कि ‘जो लोग दिलों में ज़िंदा रहते हैं, वे कभी नहीं मरते‘। संदीप उन्नीकृष्णन, उनकी वीरता लोगों के दिलों में ज़िंदा है और हर भारतीय के लिए प्रेरणादायक है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि ‘देशसेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है‘। संदीप उन्नीकृष्णन की वीरता को देश नमन करता है।

स्रोत: मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, मुंबई हमला, ताज होटल, ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो, NSG, Major Sandeep Unnikrishnan, Mumbai Attack, Taj hotel, Operation Black Tornado
Tags: Major Sandeep Unnikrishnanmumbai attackNSGOperation Black TornadoTaj hotelऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडोताज होटलमुंबई हमलामेजर संदीप उन्नीकृष्णन
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मौलाना हसरत मोहानी: पाकिस्तान के लिए लड़ाई लड़ी, मुस्लिम लीग से चुनाव भी लड़े, लेकिन विभाजन हुआ तो अपने ख्वाबों के देश न जाकर भारत में ही रह गए

16 August 2025

जब 1947 में देश का बंटवारा हुआ, तो लाखों मुसलमान पाकिस्तान चले गए और बड़ी तादाद में हिंदू और सिख भारत लौट आए। ऐसे हालात...

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