संसद के जारी बजट सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार वक्फ बोर्ड के असीमित अधिकारों पर कैंची चलाने के लिए एक कानून की तैयारी कर रही है। इसे वक्फ संशोधन बिल के नाम से जाना जा रहा है, जिसका मुस्लिम संगठन से लेकर मुस्लिम नेता तक विरोध कर रहे हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और जमीयत उलेमा-ए-हिंद (JUeH) से लेकर असदुद्दीन ओवैसी तक इस बिल का विरोध कर रहे हैं और मुस्लिमों में यह भ्रांति फैलाकर उन्हें उकसा रहे हैं कि सरकार इस बिल के जरिए उनकी मस्जिदों और उनकी संपत्तियों पर कब्जा कर लेगी। अफवाह उड़ाने का काम सिर्फ ये इस्लामी संगठन एवं नेता ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि भारत विरोधी तत्व इसे मौके को देखकर सोशल मीडिया के माध्यम से देश में एक बार फिर से तनाव फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
पिछले लेख में हमने बताया कि वक्फ संशोधन को मुद्दा बनाकर देश में शाहीन बाग के तर्ज पर बवाल करने की कोशिश की जा रही है। हमने आलेख में यह भी बताया था कि वक्फ बोर्ड कानून में कोई संशोधन कर रही है। जो संशोधन पेश किए गए हैं, उनकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं। वक्फ बोर्ड के असीमित अधिकारों के कारण देश में कई ऐसे विवाद हैं, जो न्यायालयों में विचाराधीन हैं और बवाल की एक बड़ी वजह बने हुए हैं। आज हम ऐसे ही कई विवादों में से एक विवाद बेंगलुरु के ईदगाह मैदान की आज बात करेंगे। कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के चामराजपेट में स्थित ईदगाह मैदान और कर्नाटक के ही हुबली स्थित ईदगाह मैदान का विवाद बहुत पुराना है।
बेंगलुरु ईदगाह मैदान का विवाद
बेंगलुरु के चामराजपेट में एक ईदगाह मैदान है। यह ईदगाह मैदान बेंगलुरु के सबसे पुराने इलाकों में से एक में लगभग 2.1 एकड़ में फैला है। इस मैदान को फिलहाल खेल के मैदान के रुप में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन यहाँ ईद और बकरीद पर मुस्लिम समाज द्वारा नमाज़ पढ़ी जाती है। इसको लेकर हिंदू संगठनों का विरोध रहता है। इस जमीन पर स्वामित्व को लेकर लंबे समय से झगड़ा है। यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट तक जा चुका है।
इसमें मुस्लिम एक पक्ष का दावा है कि यह जमीन वक्फ बोर्ड की है। वहीं, हिंदू पक्ष का कहना है कि यह जमीन राज्य सरकार की है और इसका इस्तेमाल सभी कर सकते हैं। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने सन 1965 में फैसला दिया था कि ईदगाह मैदान वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। मुस्लिम समुदाय का दावा है कि सन 1871 से वे इस ज़मीन इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें नमाज़ पढ़ी जाती है और यहाँ कब्रिस्तान भी है।
मुस्लिम पक्ष का दावा है कि मैसूर स्टेट वक़्फ़ बोर्ड ने इसे वक्फ संपत्ति घोषित किया है। उनका है कि जब कोई संपत्ति वक्फ घोषित कर दी जाती है तो वह हमेशा वक्फ ही रहती है। इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता है। हालाँकि, यहाँ गणेश पूजा आयोजन की माँग हिंदू करते रहते हैं, जिसको लेकर विवाद होते रहता है। विवाद को देखते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट ने ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी की पूजा के लिए आदेश जारी कर दिए थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर साल 2022 में रोक लगा दी। फिलहाल, यह मामला विचाराधीन है।
वहीं, वृहत बेंगलुरु म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का कहना है कि सन 1974 के महानगर सर्वेक्षण के में ईदगाह मैदान को शहर के निगम से संबंधित खेल का एक मैदान और नागरिक संपत्ति के रूप में दर्शाया गया है। नगर निगम का यह भी तर्क है कि न तो कर्नाटक राज्य बोर्ड ऑफ AUQAF ने शहर के 1974 के सर्वेक्षण में भाग लिया और न ही किसी मुस्लिम संगठन ने विवादित भूमि के स्वामित्व पर अपना दावा दर्ज किया। निगम का यह भी कहना है कि इसका स्वामित्व किसी मुस्लिम संगठन के नाम पर हस्तांतरित नहीं किया गया था। यह विवादित जमीन साल 2006 से ही उसके कब्जे में है। उसने दावा किया है कि निगम ने मैदान के चारों ओर फुटपाथ, एक सार्वजनिक शौचालय और पीने के पानी की सुविधा भी बनाई है।
हुबली का ईदगाह मैदान
कर्नाटक के हुबली में स्थित ईदगाह मैदान लंबे समय से विवाद का केंद्र रहा है। यह सार्वजनिक संपत्ति है, लेकिन मुस्लिम इस पर अपना दावा करते हैं और इसे वक्फ संपत्ति बताते हैं। इसको लेकर कोर्ट में भी विवाद चल रहा है। यह विवाद 1971 में तब शुरू हुआ, जब अंजुमन-ए-इस्लाम ने इस स्थल पर एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाने की कोशिश की। उसने 1921 के लीज़ समझौते का उल्लंघन करते हुए एक इमारत खड़ी कर दी। सन 90 के दशक में यह विवाद बढ़ गया। अंजुमन-ए-इस्लामिया ने 1.5 एकड़ के मैदान पर अपना दावा ठोक दिया था। उनका कहना था कि इस मैदान पर पिछले 200 सालों से उनका कब्जा है और यहाँ उनके धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भाजपा का कहना है कि नगरपालिका के अधीन होने के कारण ये सरकारी संपत्ति है।
सन 1990 के दशक की शुरुआत में अंजुमन ने एक बार फिर इस मैदान में एक इस्लामी संरचना बनाने का फैसला किया। इसके लिए उसने तत्कालीन कांग्रेस सरकार से अनुमति माँगी और इसकी अनुमति भी मिल गई। हालाँकि, स्थानीय लोगों ने इसका भारी विरोध किया। हिंदू पक्ष ने न्याय की माँग करते हुए मुंसिफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मुंसिफ कोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश को पलट दिया और निर्माण को ‘अवैध और अप्रभावी’ माना। इसके बाद नगर निगम ने इस पर अपना अधिकार जमाया।
इस आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष हाई कोर्ट पहुँच गया। जुलाई 1992 में कर्नाटक उच्च न्यायालय के दोनों अतिरिक्त सत्र न्यायाधीशों ने मुंसिफ कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा और नगरपालिका को संरचना को ध्वस्त करने का निर्देश दिया। हाई कोर्ट ने यहाँ तक कह दिया कि यह संपत्ति निगम की है, ना कि मुस्लिम संगठन की। कोर्ट ने कहा है कि मुस्लिम संगठन इसे शिक्षा और कमर्शियल रुप में इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। इस आदेश के खिलाफ अंजुमन सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया और शीर्ष न्यायालय ने इस संरचना को ध्वस्त करने पर रोक लगा दी। इससे स्थानीय लोग और भड़क गए।
साल 1992 में भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराया था। उस समय भी इस ईदगाह मैदान में ऐसा ही एक कार्यक्रम रखा गया। उस दौरान राष्ट्रध्वज गौरव संरक्षण समिति के बैनर तले तिरंगा फहराने की योजना बनाई गई थी। इसको लेकर कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने आयोजकों पर भारी बल प्रयोग किया और उन्हें ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने से रोक दिया। इसके बाद साल 1994 में भाजपा की फायरब्रांड नेता नेता उमा भारती ने भी यहाँ झंडा फहराने की कोशिश की। उमा भारती का भी मुस्लिमों ने विरोध किया। स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहरा रहे लोगों को रोकने के लिए पुलिस ने भीड़ पर गोलियाँ चलाईं, जिसमें पाँच लोगों की जान चली गई थीं।
बता दें कि ईदगाह मैदान को हुबली निगम ने सन 1920 में बनाया था। इसके बाद सन 1921 में अंजुमन-ए-इस्लामिया नाम की संस्था को यह 999 साल के लिए लीज पर दे दिया था। इसका वार्षिक किराया मात्र एक रुपया तय किया गया था। इस कानूनी लड़ाई के बाद अंजुमन-ए-इस्लामिया ने इस पर पूरी तरह अधिकार कर लिया था। यहाँ वह साल में 2 बार नमाज़ की अनुमति मिली थी। बाकी किसी कार्यक्रम के लिए यहाँ अनुमति नहीं थी। स्थानीय रूप से ईदगाह मैदान के नाम से मशहूर इस मैदान को कित्तूर रानी चेन्नम्मा मैदान भी कहा जाता है। इसका यह नाम कित्तूर की प्रसिद्ध रानी के नाम पर रखा गया है।