संसद के चालू सत्र में वक्फ संशोधन विधेयक पेश किए जाने की उम्मीद है। हालाँकि, मुस्लिम नेताओं से लेकर मुस्लिम संगठनों तक इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस विधेयक के जरिए सरकार मुस्लिमों के अधिकारों को हड़पने की कोशिश कर रही है। वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद से लेकर AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी तक अफवाह फैला रहे हैं कि सरकार इस विधेयक के जरिए मुस्लिमों के मस्जिदों से लेकर उनकी संपत्तियों पर कब्जा कर लेगी। इस तरह के दावे करके ये लोग मुस्लिमों को गलत जानकारी दे रहे हैं और अफवाह फैलाकर उन्हें भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।
हमने अपने कई आलेखों में बताया कि इस तरह की अफवाह फैलाने के पीछे वास्तविक उद्देश्य क्या है। वहीं, वक्फ बोर्ड को पिछली कांग्रेस सरकारों ने इतना अधिकार दे दिया था कि ये समानांतर व्यवस्था चलाने लगे थे। वक्फ बोर्ड किसी भी जमीन को अपनी बताकर उस पर कब्जा कर लेता था और वक्फ कानून के तहत उसके इस दावों को कोर्ट में चुनौती तक नहीं दी जा सकती है। वक्फ बोर्ड के इन्हीं असीमित अधिकारों को कम करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक पास किया है, जिसे संसद के दोनों सदनों से पास कराया जाना बाकी है। इस आलेख में वक्फ की अनियंत्रित शक्तियों के दुरुपयोग का हम दो उदाहरण देने जा रहे हैं, जिसके तहत तमिलनाडु और कर्नाटक में पूरे के पूरे गाँव से लेकर हिंदुओं के मंदिर तक को वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया गया।
बिहार के पटना से सटे गोविंदपुर गाँव में एक व्यक्ति की निजी जमीन को बिहार वक्फ बोर्ड ने अपनी जमीन घोषित कर दिया। इसको लेकर काफी बवाल हुआ था। हालाँकि, यह तो सिर्फ 9 डिसमिल जमीन की बात है। तमिलनाडु और कर्नाटक में तो पूरे गाँव की जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित कर दी गई। सितंबर 2022 में तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने तिरुचेंथुरई गांव को वक्फ की संपत्ति बताकर उस पर दावा कर दिया। इसके कारण यहाँ के किसानों ऋण चुकाने के लिए अपनी कृषि भूमि बेचने से रोक दिया गया। इतना ही नहीं, तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने 7 अन्य हिंदू बहुल गाँवों को भी अपनी संपत्ति बताया है। वक्फ बोर्ड का यह भी दावा है कि वहाँ स्थित 1500 साल पुराना सुंदरेश्वर मंदिर भी वक्फ बोर्ड की संपत्ति का हिस्सा है।
वक्फ बोर्ड ने तमिलनाडु के जिन गाँवों की जमीनों पर अपने मालिकाना हक का दावा किया, उस पर वक्फ संपत्ति होने के पोस्टर्स भी लगा दिए गए। हालाँकि, स्थानीय लोगों ने वक्फ बोर्ड के इन दावों को सिरे से नकारा दिया। इसके बावजूद वक्फ बोर्ड इन पर अपना दावा नहीं छोड़ रहा है। गाँव वालों ने जिन जमीनों पर वक्फ बोर्ड ने अपना दावा किया है, उनसे जुड़े दस्तावेज भी दिखाए। गाँव वालों का कहना है कि इन कागजातों में उनके नाम हैं। उनका कहना है कि ये जमीनें सदियों से उनके पूर्वजों के पास थीं और अब उनके पास हैं।
यह मामला उस समय सामने आया, जब राजगोपाल नाम के एक व्यक्ति ने अपनी 1 एकड़ 2 सेंट जमीन राजराजेश्वरी नामक व्यक्ति को बेचने का प्रयास किया। जब राजगोपाल अपनी जमीन की रजिस्ट्री कराने के लिए रजिस्ट्रार के पास पहुँचे तो उन्हें बताया गया कि वे इस जमीन को नहीं बेच सकते, क्योंकि वह जमीन उनकी नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड की है। राजगोपाल ने बताया कि रजिस्ट्रार मुरली ने कहा, “जिस जमीन को आप बेचने आए हैं उस जमीन का मालिक वक्फ बोर्ड है। वक्फ बोर्ड के निर्देश के अनुसार इस जमीन को बेचा नहीं जा सकता। आपको चेन्नई में वक्फ बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त करना होगा।”
इस मामले के सामने आने के बाद विवाद बढ़ गया। जब जाँच हुई तो पता चला कि आसपास के दूसरे 17 गाँवों की जमीन भी वक्फ बोर्ड की है। त्रिची जिले के 18 गाँवों की 389 एकड़ भूमि के स्वामित्व को वक्फ बोर्ड ने मुस्लिमों का बताया था। इन दावों को लेकर तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने कहा कि इस जमीन का आवंटन सन 1954 में सरकार द्वारा सर्वेक्षण के बाद किया गया था। वहीं, इस गाँव को लेकर यह भी कहा जाता है कि सन 1956 में नवाब अनवरदीन खान ने इस गाँव को वक्फ के रूप में दान कर दिया था। अवैध बिक्री या अतिक्रमण को रोकने के लिए वक्फ बोर्ड ने पंजीकरण विभाग से वक्फ संपत्तियों का ‘शून्य मूल्य’ करने का अनुरोध किया। विवाद बढ़ा तो अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने इन विवादित संपत्तियों लेन-देन की अनुमति देने पर रोक लगा दी है।
इसी तरह का मामला कर्नाटक के एक गाँव का है। कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने विजयपुरा में किसानों की 1,200 एकड़ से अधिक की कृषि भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया। वक्फ का दावा है कि टिकोटा तालुका के होनवाड़ा गाँव की 1,200 एकड़ की ज़मीन मुस्लिमों की धार्मिक संस्था शाह अमीनुद्दीन दरगाह के रूप में नामित है। इसको लेकर गाँव के लोगों को नोटिस भी भेजा गया। उसमें कहा गया है कि यह ज़मीन शाह अमीनुद्दीन दरगाह की है। वहीं, गाँव वालों का कहना है कि यह जमीन सदियों से उनकी रही है। यह दरगाह कुछ सदी पुराना भी नहीं है। इन जमीनों को खाली करने के लिए 41 किसानों को नोटिस जारी किए गए।
इसी तरह कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने बीदर तालुका के धर्मपुर और चटनल्ली गाँवों पर दावा किया है। धर्मपुर गाँव के सर्वे नंबर 87 के तहत कुल 26 एकड़ जमीन को वक्फ संपत्ति बताई गई है। दरअसल, साल 2001 तक भूमि अभिलेखों में यह वक्फ संपत्ति नहीं था। इसे साल 2013 के बाद वक्फ संपत्ति के रूप में शामिल किया गया है। साल 2013 में वक्फ बोर्ड ने चटनल्ली गाँव में 960 एकड़ जमीन को अपनी संपत्ति के रूप में मान्यता दी। वहीं, चिट्टगुप्पा तालुका के उदबल गाँव में भी किसान कृष्णमूर्ति की लगभग 19 एकड़ जमीन वक्फ बोर्ड को सौंप दी गई है। दरअसल, कृष्णमूर्ति ने 31 साल पहले एक मुस्लिम को अपने खेत के एक कोने में दफनाने की अनुमति दी थी। इसके बाद वक्फ बोर्ड कृष्णमूर्ति की पूरी जमीन पर ही अपना दावा ठोक दिया।
इतना ही नहीं, कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने राज्य के ऐतिहासिक शहर श्रीरंगपट्टनम में 70 से अधिक सरकारी संपत्तियों को अपना बता दिया। इन संपत्तियों में सरकारी जमीन, टीपू सुल्तान शस्त्रागार, संग्रहालय और विरासत विभाग की कई इमारतें शामिल हैं। वक्फ बोर्ड ने बीदर जिले के दो गाँवों पर अपना दावा ठोकने के बाद बीदर किले को भी वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि इस किले को बहमनी सल्तनत द्वारा सन 1427 में बनवाया गया था। वक्फ बोर्ड ने साल 2005 में इसे अपनी संपत्ति घोषित कर दी। 17 अगस्त 2005 को जारी एक अधिसूचना में किले के क्षेत्र को वक्फ संपत्ति बताया गया है। कभी एशिया का सबसे बड़ा किला बताए जाने वाले इस किले को 29 नवंबर 1951 को भारत के राजपत्र में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। इसके रख-रखाव का काम अभी भी ASI के पास है।