Tahawwur Rana Extradition: मोदी सरकार के आने के बाद भारत की आतंकवाद के प्रति नीति पूरी तरह बदल गई। चाहे उरी के बाद सर्जिकल स्ट्राइक हो या पुलवामा के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक, भारत ने दिखा दिया कि अब यह 2008 वाला भारत नहीं रहा। तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण भी इसी निर्णायक विदेश नीति और कूटनीतिक दबाव का परिणाम है। 26/11 मुंबई आतंकवादी हमलों के मुख्य आरोपी तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण हो गया। वर्तमान एनडीए सरकार के कार्यकाल में हुए इस प्रत्यर्पण का श्रेय कांग्रेस नेता लेने की होड़ में लगे हैं, जबकि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम के निरंतर कूटनीतिक दबाव और कानूनी प्रयासों का नतीजा है।
क्रेडिट की होड़ में कांग्रेस
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम (P Chidambaram On Tahawwur Rana Extradition) ने दावा किया कि तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण 2009 में यूपीए द्वारा रखी गई नींव का परिणाम है। यह दावा अवसरवादी है। राणा का प्रत्यर्पण भाजपा सरकार की उच्च स्तरीय कूटनीतिक वार्ता और मामले को अंजाम तक पहुंचाने के प्रयासों का नतीजा है। 2018 में एनआईए प्रतिनिधिमंडल की अमेरिका यात्रा से लेकर अमेरिकी अदालतों के जरिए से अथक प्रयास हुए। अंत में पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से बात की। 2014 के बाद से हर महत्वपूर्ण कदम एनडीए की सक्रिय विदेश नीति का स्पष्ट प्रमाण है।
UPA सरकार ये सब नहीं होता तो…
कांग्रेस को ये भी नहीं भूलना चाहिए कि मुंबई में 26/11 के हमले यूपीए के शासनकाल में हुए थे। दस पाकिस्तानी आतंकवादियों ने एक सुनियोजित ऑपरेशन में भारत की आर्थिक राजधानी पर धावा बोल दिया था। इसमें 166 लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल हुए। पूरा देश आतंकित हो गया था। हालांकि, कांग्रेस सरकार ने जवाबदेही के बजाय तुष्टिकरण को चुना। कोई ठोस जवाबी कार्रवाई नहीं हुई। इसके उलट मोदी राज में लगातार कार्रवाई हुई।
26/11 जैसे भीषण हमले के बाद भी यूपीए सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं दी। ‘रणनीतिक संयम’ के नाम पर केवल मौन और प्रतीक्षा का रास्ता चुना गया। उलटे, 2010 में 25 आतंकियों को ‘सद्भावना’ के नाम पर जेल से रिहा कर दिया गया। इसमें जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के हैंडलर शाहिद लतीफ शामिल था। लतीफ को बाद में 2016 के पठानकोट एयरबेस के हमलावरों के मुख्य हैंडलर के रूप में पहचाना गया।
ये भी पढ़ें: ‘मोदी है तो मुमकिन है’, 14 साल से वांटेड लिस्ट में था तहव्वुर राणा, चर्चा में क्यों आई 2011 की पोस्ट?
कांग्रेस की यूपीए सरकार की कई नीतियों ने न सिर्फ भारत की आंतरिक सुरक्षा को कमजोर किया, बल्कि सैनिकों का मनोबल भी गिराया। उदाहरण के लिए, कांग्रेस का “मानवाधिकारों” के नाम पर पोटा (आतंकवाद निरोधक अधिनियम) जैसे कानूनों को निरस्त करने का निर्णय। इसका नतीजा यह हुआ कि आतंकवाद-रोधी एजेंसियां तब बेबस हो गईं जब आतंकवाद तेजी से विकसित हो रहा था।
कांग्रेस शासन के दौरान कट्टर संगठनों पर कोई सख्ती नहीं बरती गई। कर्नाटक में 2013 में कांग्रेस सरकार ने PFI और SDPI से जुड़े मामलों में केस वापस ले लिए। लेकिन मोदी सरकार ने 2022 में PFI को प्रतिबंधित कर दिया। अगर कांग्रेस ने समय पर कार्रवाई की होती, तो कट्टरपंथी नेटवर्क को समय रहते रोका जा सकता था। यूपीए ने न केवल कड़े आतंक विरोधी कानून जैसे POTA को हटा दिया, बल्कि सुरक्षा एजेंसियों को राजनीतिक दबाव में भी काम करना पड़ा।
कांग्रेस नेता कर रहे हैं निष्पक्ष सुनवाई की मांग
तहव्वुर राणा भारत में मुकदमे का सामना कर रहा है। ऐसे में कांग्रेस इतिहास को फिर से लिखने के लिए बेताब है। अतीत को अलग रखते हुए इनके नेता पृथ्वीराज चव्हाण (Prithviraj Chavan On Tahawwur Rana Extradition) जैसे इसके नेता आतंकवादी के लिए निष्पक्ष सुनवाई की मांग कर रहे हैं। चव्हाण ने कहा कि राणा को कसाब को न्यायिक प्रक्रियाएं पूरी करने का मौका मिलना चाहिए। हमारे देश में कंगारू कोर्ट नहीं चलेगा, क्योंकि इस मामले को पूरी दुनिया देख रही है।
अब पहले वाला भारत नहीं है
तहव्वुर राणा का भारत लाया जाना यूपीए की किसी “जमीन तैयार करने” की रणनीति का नहीं, बल्कि 10 वर्षों की स्पष्ट, सशक्त और राष्ट्रहित में चली कूटनीतिक एवं कानूनी लड़ाई का परिणाम है। कांग्रेस आज भी राजनीतिक अंकगणित और बयानबाज़ी में उलझी है, जबकि मोदी सरकार ठोस कार्रवाई और सुरक्षा के नए मानकों की स्थापना कर चुकी है। कांग्रेस इस मामले में क्रिडिट लेने का स्थान खोज रही है वही मोदी सरकार ने से सिद्ध कर दिया है कि भारत अब पहले वाला भारत नहीं है।