जीवन के अंतिम क्षणों में अकेलापन एक गहरी त्रासदी है। जब कोई अपने घर में बिना किसी साथी या सहारे के दुनिया छोड़ता है तो यह समाज के टूटते रिश्तों की सबसे भयावह तस्वीर को दिखाता है। हाल ही में एक रिसर्च में बताया गया कि अकेलापन आपको क्रिएटिव बनाता है लेकिन यह शायद पूरा सत्य भी नहीं है। अकेलापन आपके अंतरमन को खोखला भी कर देता हैं और जब अकेलापन मजबूरी हो जाए तो यह और भी खतरनाक हो जाता है। जापान में अकेलेपन को लेकर एक हैरान करने वाली रिपोर्ट सामने आई है। जापान में 2024 में 76,000 से अधिक लोगों की अपने घर में अकेले मौत हुई है। दुनिया का ‘सबसे एडवांस’ देश कहा जाने वाला जापान रिश्तों को सहेजने के मामले में फिसड्डी साबित हुआ है।
जापान की राष्ट्रीय पुलिस एजेंसी द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, जापान में 2024 में 76,020 लोगों की अपने घर में अकेले मौत हुई जिनमें से 76.4 प्रतिशत की उम्र 65 वर्ष या उससे अधिक थी। यह स्थिति जापान में सामाजिक अलगाव और ‘कोडोकुशी’ यानी ‘अकेली मौत’ की गहराती समस्या को दिखाती है। यह पहला मौका है जब जापान ने इस तरह के आंकड़ों को आधिकारिक रूप से संकलित किया है। हैरानी की बात यह है कि 4,538 मामलों (7.8%) में शव एक महीने से अधिक समय तक घर में बिना खोजे पड़े रहे। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि कई मामले तब सामने आए जब पड़ोसियों या रिश्तेदारों ने लंबे समय तक डाक इकट्ठा न होने या संपर्क टूटने पर चिंता जताई थी।
इस त्रासदी से बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। सबसे अधिक अकेली मौतें 85 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों में दर्ज की गईं (14,658), इसके बाद 75-79 वर्ष के (12,567) और 70-74 वर्ष के (11,600) आयु वर्ग के लोग रहे। क्षेत्रीय आंकड़ों में टोक्यो सबसे ऊपर रहा जहां 7,699 अकेली मौतें दर्ज हुईं। इसके बाद ओसाका (5,329), कानागावा (3,659) और आइची (3,411) का स्थान रहा। इन भयावह आंकड़ों के आधार पर सरकार अब अकेलापन और सामाजिक अलगाव से निपटने के लिए नीतियां तैयार करने की योजना बना रही है, जो बढ़ती बुजुर्ग आबादी और छोटे होते परिवारों वाले देश में एक बड़ी चुनौती है।
1980 के दशक में पहली बार व्यापक रूप से चर्चा में आई ‘कोडोकुशी’ की समस्या जापान के सामाजिक अलगाव का डरावना प्रतीक बन चुकी है। यह शब्द उन लोगों (खासकर बुजुर्गों) के लिए प्रयोग होता है जो अकेले रहते हुए इस दुनिया से चले जाते हैं और जिनकी मौत का लंबे समय तक किसी को पता नहीं चलता है। जापान में बढ़ती बुजुर्ग आबादी, छोटे परिवार और कमजोर सामुदायिक रिश्तों ने इस चुपके से फैल रही ‘महामारी’ को और बढ़ावा दिया है। पारंपरिक बहु-पीढ़ी वाले परिवारों का विघटन और शहरीकरण ने सामुदायिक रिश्तों को कमजोर कर दिया है। व्यस्त जीवनशैली के चलते पड़ोसियों और रिश्तेदारों से संपर्क टूटता जा रहा है। साथ ही, अवसाद और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं अकेलेपन को बढ़ाकर कोडोकुशी को और गंभीर बना रही हैं।