डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर को ‘समग्र’ दृष्टि से समझना आज समय की माँग

अब इसे विडंबना नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे कि डॉ. आम्बेडकर मूलरूप से अर्थशास्त्री थे, उनकी पीएचडी और डीएससी अर्थशास्त्र विषय में थी उन्हें केवल अनुसूचित जाति वर्ग का नेता बनाकर प्रस्तुत करना क्या उनके व्यक्तित्व के साथ अन्याय नहीं है?

लोगों ने अपने स्वार्थों के कारण भीमराव आम्बेडकर ‘विवादित’ बना दिया है

लोगों ने अपने स्वार्थों के कारण भीमराव आम्बेडकर ‘विवादित’ बना दिया है

प्रतिवर्ष 14 अप्रैल विशेष महत्त्व का दिन होता है क्योंकि 14 अप्रैल 1891 को भारत के संविधान निर्माण में अहम् भूमिका निभाने वाले, महामानव भारत रत्न डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर का जन्म हुआ था। डॉ. साहब के जन्मदिन के विशेष प्रसंग पर उनके बारे में बात करना आवश्यक हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनको लेकर आज भी बहुत भ्रांतियां फैली हुई है, जिनके कारण लोग उनको अलग-अलग दृष्टि से देखते रहते हैं और निष्कर्ष भी अलग अलग ही निकालते रहते हैं। इस कारण ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों ने अपने स्वार्थों के कारण उनको ‘विवादित’ बना दिया है। वास्तव में डॉ. आम्बेडकर के जीवन और व्यक्तित्व के कई आयाम थे। लेकिन, यह विडंबना ही है उनके जीवन, व्यक्तित्व और कार्यों का न तो समग्रता से अध्ययन हुआ और न ही विश्लेषण करने की कोशिश की गई।

जबकि वास्तविकता यह है कि उन्होंने तो सबके लिए समानता और बंधुत्व की बात की थी। बल्कि भारत के जिस संविधान को बनाने में उनकी महती भूमिका है उसमें तो उन्होंने पहला अधिकार ही समानता का अधिकार दिया है। लेकिन, आजकल उनके नाम पर चलने वाली भीम आर्मी और दूसरे राजनितिक लोगों के विचार देखें तो लगता है कि शायद डॉ. आम्बेडकर को लेकर कोई साजिश चल रही है और उनको लेकर आम जन में भ्रम निर्माण किया जा रहा है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर को देखने या समझने की दृष्टि क्या है? या उनके व्यक्तित्व को लोगों को कैसे समझना चाहिए? इस प्रश्न के उत्तर के लिए डॉ. साहब के जीवन, उनके संघर्ष और चिन्तन को पुनः खंगालने की आवश्यकता है। इसके प्रश्न के उत्तर के लिए हमें बुद्ध, कबीर और महात्मा फूले को समझने की आवश्यकता है। क्योंकि डॉ. आम्बेडकर इन तीनों को ही अपना गुरु मानते थे। इसका मतलब हुआ कि डॉ आम्बेडकर ने जीवनभर हिन्दू धर्म की महान गुरु शिष्य परम्परा का निर्वहन किया।

डॉ. भीमराव आम्बेडकर के महान व्यक्तित्व पर विचार करें तो समझ आता है कि उनके व्यक्तित्व के दो पक्ष हैं, जिनमें पहला पक्ष है चिंतक का और दूसरा पक्ष है सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय नेतृत्व का। वास्तव में उनके जीवन का समग्रता से मूल्यांकन करने के लिए उनके सभी पक्षों का समग्रता से चिन्तन करना होगा। इसके साथ ही उन पर समग्र विश्लेष्ण करने के लिए तत्कालीन कालखंड को भी ध्यान में रखना अपरिहार्य होगा क्योंकि उस कालखंड में ही सब कुछ छिपा हुआ है। अब इसे विडंबना नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे कि डॉ. भीमराव आम्बेडकर मूलरूप से अर्थशास्त्री थे। उनकी पीएचडी और डीएससी अर्थशास्त्र विषय में थी। लेकिन उनके इस पक्ष या कार्य की बात कोई नहीं करता। उनका कार्य भूमि-धारण, ‘द प्रॉब्लम्स ऑफ द रुपी’, उद्योगतन्त्र, और मजदूरों के ऊपर भी था, लेकिन यह दुखद है कि उनके इन कार्यों पर कोई चर्चा नहीं होती !  उनको केवल अनुसूचित जाति वर्ग का नेता बनाकर प्रस्तुत करना क्या उनके व्यक्तित्व के साथ अन्याय नहीं है? उनको केवल अनुसूचित जाति वर्ग का नेता बनाकर प्रस्तुत करना क्या उनके व्यक्तित्व के साथ अन्याय नहीं है? क्या उनको खंड-खंड में पढ़ने और समझने से और भ्रांतियां फैलाने से वही विभेद नहीं हो रहा है जिसके वे जीवन भर विरोधी रहे हैं?

डॉ. आम्बेडकर के व्यक्तित्व और जीवन के समग्र अध्ययन और विश्लेष्ण के लिए बहुत से प्रश्नों के उत्तर ढूंढने होंगे:

ऐसे बहुत से प्रश्न और हैं जिनका उत्तर ढूंढे बिना डॉ. आम्बेडकर को समझना मुश्किल है और उनके एक पक्ष के आधार पर उनकी छवि गढ़ना उनके साथ अन्याय है, एक साजिश है। वास्तव में डॉ आम्बेडकर ने हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीतियों के निदान के लिया कार्य किया था। सबको साथ लेकर चलने की बात की है, समरसता की बात की है। जहाँ तक उन लोगों की बात है जो उनके बुद्ध के मार्ग पर चलने को धर्मान्तरण कहते हैं तो उनके लिए स्वातन्त्र्य वीर सावरकर का यह कथन पर्याप्त है कि “आम्बेडकर का ‘पंथान्तरण’ हिन्दू धर्म में विश्वास के साथ मारी गयी छलांग है; बौद्ध आम्बेडकर हिन्दू आम्बेडकर ही है।” सावरकर के मतानुसार आम्बेडकर ने एक अवैदिक लेकिन हिन्दुत्व की कक्षा में बैठने वाले भारतीय धर्म-पंथ को स्वीकार किया है, इसलिए वह धर्मान्तरण नहीं। इसके आलावा सावरकर ने यह भी कहा था महास्थाविर चंद्रमणि और अन्य भिक्षुओं ने दीक्षा समारोह के समय जो पत्रक प्रकाशित किया, उसमें कहा था कि “हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म एक ही वृक्ष की शाखाएँ है।”

तथाकथित धर्मान्तरण को लेकर पद्मश्री धनंजय कीर द्वारा रचित आम्बेडकर जीवन चरित में दिया गया एक उद्धरण यहाँ प्रस्तुत करना प्रासंगिक हैवह उद्धरण कुछ ऐसा है “बौद्ध लेखक ने कहा कि, ‘इस ‘स्थित्यंतर’ का वर्णन करने लिए ‘धर्मान्तरण’ संज्ञा उचित नहीं, क्योंकि जबरदस्ती और मोह का संबंध धर्मान्तरण के साथ रहता है।’ उन्होंने और कहा कि वह ‘खुद का मतान्तरण’ है, ‘धर्मान्तरण नहीं’, क्योंकि धर्मान्तरण का अर्थ है, अपना खुद का धर्म रखकर दूसरे विदेशी धर्म को स्वीकार करना।”

अतः देश और समाज को आज भी विघटन और कुरीतियों से बचाने के लिए भारत रत्न डॉ भीमराव रामजी आम्बेडकर पर समग्रता से अध्ययन करने की आवश्यकता है। नारायणायेती समर्पयामि II

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