ट्रंप के ‘टैरिफ वॉर’ के बाद मंडराया वैश्विक मंदी का संकट, दुनियाभर के शेयर बाज़ार हुए धराशायी, JP मॉर्गन की रिपोर्ट ने बढ़ाई टेंशन

सेंसेक्स 3000 अंकों के साथ ढहा, निफ्टी में 4% की भारी गिरावट

Share market prediction

वैश्विक मंदी का संकेत : टैरिफ युद्ध से एशियाई बाजार धराशायी (Image Source: IANS)

9 अप्रैल से ट्रंप प्रशासन की नई टैरिफ नीति लागू होने जा रही है, और इससे पहले ही वैश्विक वित्तीय गलियारों में घबराहट की लहर दौड़ चुकी है। दुनिया की प्रमुख इन्वेस्टमेंट फर्मों ने मंदी की आशंका को लेकर अपने अनुमान संशोधित कर दिए हैं। जेपी मॉर्गन ने अपने ताजा विश्लेषण में वैश्विक मंदी की संभावना को बढ़ाकर 60% तक पहुंचा दिया है जो वैश्विक आर्थिक स्थिरता पर सीधा सवाल उठाता है। फर्म के मुताबिक, अमेरिका और चीन के बीच गहराता टैरिफ वॉर और ट्रंप की आक्रामक टैरिफ नीति इस वित्तीय अनिश्चितता के प्रमुख कारण हैं। अगर यही रुझान जारी रहा, तो 2025 के अंत तक पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था एक गहरे आर्थिक संकट में फिसल सकती है।

इस बीच, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने भी वैश्विक आर्थिक माहौल को लेकर चिंता जताई है। शनिवार को प्रकाशित एक लेख में उन्होंने खुलकर कहा कि “ग्लोबलाइजेशन का युग अब समाप्ति की ओर है।” ब्रिटिश मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो वे आज देश को संबोधित करते हुए औपचारिक रूप से इस बदलाव की घोषणा करेंगे।

इन घटनाओं का असर अब दुनियाभर के शेयर बाजारों पर साफ देखा जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित रेसिप्रोकल टैरिफ के ऐलान के बाद बीते दो कारोबारी सत्रों में वैश्विक बाजारों में भारी बिकवाली देखी गई है। सबसे ज्यादा असर अमेरिकी शेयर बाजारों पर पड़ा है, जहां डाउ जोन्स दो दिन में 9% से ज्यादा टूट चुका है। 4 अप्रैल को डाउ जोन्स इंडेक्स 2,231.07 अंक यानी 5.50% गिरकर 38,314 के स्तर पर बंद हुआ। इससे पहले 3 अप्रैल को भी यह इंडेक्स 3.98% नीचे आया था।

S&P 500 ने भी जोरदार गिरावट का सामना किया है। 4 अप्रैल को यह 322.44 अंक या 5.97% टूटकर 5,074 के स्तर पर बंद हुआ, जबकि 3 अप्रैल को इसमें 4.84% की गिरावट दर्ज की गई थी। नैस्डैक कंपोजिट इंडेक्स भी इस दबाव से नहीं बच पाया और 4 अप्रैल को यह 1,050 अंक या 5.97% की गिरावट के साथ बंद हुआ। एक दिन पहले यानी 3 अप्रैल को भी नैस्डैक 5.82% गिरा था।

यूरोपीय बाजारों में भी ट्रंप की टैरिफ नीति का असर तीखा दिखा। यूके का FTSE इंडेक्स 3.51% गिरा, जबकि फ्रांस का CAC इंडेक्स 3.61% और जर्मनी का DAX इंडेक्स 3.88% तक लुढ़क गया। यूरोप का प्रमुख सूचकांक STOXX 600 भी लगातार दूसरे दिन नुकसान में रहा। 4 अप्रैल को इसमें शुरुआती कारोबार के दौरान 3.2% की गिरावट आई, जबकि एक दिन पहले इसमें 2.6% की गिरावट देखी गई थी।

एशियाई बाजारों पर भी यह संकट गहराता नजर आ रहा है। जापान का निक्केई इंडेक्स 6% नीचे गया, कोरिया का कोस्पी 4.5% और चीन का शंघाई कंपोज़िट 6.5% तक गिर गया। वहीं, हॉन्गकॉन्ग का हैंगसेंग इंडेक्स 10% टूट गया, जो हाल के वर्षों की सबसे बड़ी और डरावनी गिरावटों में से एक मानी जा रही है।

भारत भी इस वैश्विक वित्तीय उथल-पुथल से अछूता नहीं रहा। सोमवार, 7 अप्रैल को भारतीय शेयर बाजारों में साल की दूसरी सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। सेंसेक्स 3,000 अंकों यानी 4% की गिरावट के साथ करीब 72,300 के स्तर पर पहुंच गया, जबकि निफ्टी 900 अंकों यानी 4.50% टूटकर 22,000 के नीचे कारोबार करता दिखा। इससे पहले 4 जून 2024 को बाजार में 5.74% की गिरावट आई थी, लेकिन मौजूदा गिरावट ने यह साफ संकेत दे दिया है कि वैश्विक मंदी की आशंका अब सिर्फ अनुमान नहीं, बल्कि ज़मीनी हकीकत बनने लगी है।

20 लाख करोड़ की दौलत स्वाहा

सोमवार सुबह जब बाजार खुले, तो निवेशकों को समझ नहीं आया कि सबसे पहले क्या देखें सेंसेक्स की बेकाबू गिरावट, निफ्टी का टूटना, या अपनी तेजी से पिघलती संपत्ति। वैश्विक संकेत पहले से ही नकारात्मक थे, लेकिन फाइनेंशियल एनालिस्ट और CNBC के ‘मैड मनी’ शो के होस्ट जिम क्रैमर की गंभीर चेतावनी ने माहौल में घबराहट भर दी। उन्होंने आशंका जताई थी कि अमेरिकी बाजार जल्द ही 1987 जैसा ‘ब्लैक मंडे’ दोहरा सकते हैं।

क्रैमर ने साफ कहा था कि अगर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी रेसिप्रोकल टैरिफ नीति में सहयोगी देशों को राहत नहीं दी, तो वही परिदृश्य बन सकता है जैसा 1987 में देखा गया था, लगातार तीन दिनों की गिरावट और फिर सोमवार को एक ही दिन में 22% की ऐतिहासिक गिरावट। उन्होंने कहा, “हमें ज्यादा इंतज़ार नहीं करना होगा, सोमवार तक हालात सामने आ जाएंगे।”

क्रैमर की भविष्यवाणी सही साबित हुई और आज सोमवार को शेयर बाजार खुलते ही सेंसेक्स धड़ाम से 3000 अंक (लगभग 4%) गिरा और 72,300 के स्तर पर आ गया। निफ्टी भी 900 अंक (4.50%) की गिरावट के साथ 22,000 के नीचे लुढ़क गया। ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं हैं, ये करोड़ों निवेशकों की चिंता, डर और असहायता का संकेत हैं।

मिडकैप और स्मॉलकैप स्टॉक्स की हालत और भी खराब रही। BSE मिडकैप इंडेक्स में 1,850 अंकों (4.60%) की गिरावट दर्ज हुई और ये 38,630 पर आ गया। वहीं, स्मॉलकैप इंडेक्स ने 6.20% की बड़ी गिरावट के साथ 42,999.82 का स्तर छू लिया। इस पूरी बिकवाली का सबसे भयावह असर निवेशकों की वेल्थ पर पड़ा है। सिर्फ कुछ घंटों में करीब 20 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति बाजार से उड़नछू हो गई। शुक्रवार, 4 अप्रैल को बीएसई पर लिस्टेड कंपनियों का कुल मार्केट कैप 404 लाख करोड़ रुपये था, जो सोमवार सुबह 10 बजे तक गिरकर 383 लाख करोड़ के आसपास सिमट गया।

JP मॉर्गन की रिपोर्ट

जैसे-जैसे 9 अप्रैल नज़दीक आ रहा है वैश्विक इन्वेस्टमेंट फर्मों की चिंता और अनुमान, दोनों ही गहराते जा रहे हैं। प्रमुख वित्तीय संस्था JP मॉर्गन ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल इकॉनमी के मंदी में फिसलने की आशंका अब 60% तक पहुंच गई है, जो पहले 40% पर थी। फर्म का मानना है कि अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर और ट्रंप द्वारा घोषित रेसिप्रोकल टैरिफ्स वैश्विक व्यापार के संतुलन को झकझोर देंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे बिजनेस कॉन्फिडेंस कमजोर होगा, सप्लाई चेन में भारी व्यवधान आएगा और वैश्विक आर्थिक वृद्धि की रफ्तार थम जाएगी।

JP मॉर्गन की यह रिपोर्ट महज़ एक चेतावनी नहीं है यह एक ऐसा इंडिकेटर है जो बताता है कि 2025 के अंत तक वैश्विक अर्थव्यवस्था स्लोडाउन के गहरे गर्त में जा सकती है। और JP मॉर्गन अकेला नहीं है जो ऐसा सोचता है। S&P Global ने अमेरिका में रिसेशन की संभावना को 25% से बढ़ाकर 30-35% कर दिया है। वहीं, Goldman Sachs ने इसे 20% से बढ़ाकर 35% पर पहुँचा दिया है। इन अनुमानों में तेजी से आया ये उछाल, बाजार की बदलती मनोदशा और सामने आ रही वैश्विक अनिश्चितता को दर्शाता है। HSBC ने तो साफ तौर पर कहा है कि 40% मंदी का खतरा तो पहले से ही शेयर बाजारों की चाल में परिलक्षित हो रहा है। नया टैरिफ रेजीम सिर्फ एक नीति परिवर्तन नहीं है यह वैश्विक आर्थिक आंधी का संकेत हो सकता है, जिसका प्रभाव लंबे समय तक महसूस किया जा सकता है।

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