कहते हैं विचार बनाए जिन्दगी। जैसे हमारे विचार होंगे वैसा ही हमारा जीवन होगा। बेहतर जीवन के लिए अध्ययन का महत्त्व इसलिए ही विद्वानजन बताते हैं। इसलिए बचपन से अच्छे विचारों को आत्मसात करने पर हमारे यहाँ बल दिया जाता है। अच्छे विचार निर्मित करने में अच्छे साहित्य की महती भूमिका रहती है। सरल शब्दों में कहूँ तो अच्छी पुस्तकें इसमें बहुत मदद करती हैं। अपने स्कूल के दिनों में हिंदी विषय के अंतर्गत मैंने सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कई कृतियाँ पढ़ी थीं। थोड़ी-थोड़ी आज भी स्मृति में थीं। संयोग से कुछ दिन पूर्व एक छोटी सी पुस्तक हाथ लगी और वो बचपन की स्मृतियाँ फिर से ताजा हो गईं।
जैसे जैसे पुस्तक पढ़ता गया मुझे बचपन के दिन याद आने लगे। बचपन का वो जोश, इधर उधर भागना, अनेक बहाना मारना, खेलना कूदना, खूब मस्ती करना फिर से मस्तिष्क में दौड़ने लगा। जिस पुस्तक की मैं बात कर रहा हूँ उसका शीर्षक है ‘रोचक बाल कहानियाँ’ और इस पुस्तक का प्रकाशन किया है देश के सुप्रसिद्ध प्रकाशन ‘वितस्ता प्रकाशन’ ने । इस पुस्तक में बच्चों के लिए अत्यंत रोचक और जीवनोपयोगी शिक्षाओं के साथ महाप्राण निराला की कहानियों का संकलन किया गया है। कुछ कहानियां मैंने बचपन में पढ़ी थीं। इस पुस्तक में एक-एक पृष्ठ की 6 अत्यंत रोचक लघु कहानियाँ हैं, जिनकी शिक्षा जीवन भर काम आने वाली है और यह शिक्षा व्यर्थ के तनाव को दूर भगाने में भी सहायक हो सकती है।
‘चतुरी चमार’ नामक एक लम्बी कहानी भी दी गई है। यह कहानी बड़ी रोचक है। लेकिन, बच्चों के हिसाब से इसकी भाषा थोड़ी सरल की जा सकती थी। कहीं कहीं वाक्य रचना लम्बी होने के कारण हल्की समस्या आ सकती है। वैसे आजकल के बच्चों को इस तरह की भाषा पढ़ना और समझना आना चाहिए क्योंकि उनको आजकल सब कुछ रेडीमेड पाने की आदत सी बन गई है। तो इस हिसाब से भाषा संबंधी यह प्रयोग उचित है।
आगे ‘महाराणा प्रताप’ उपन्यास के कुछ अंश दिए गए हैं। इस भाग को मैं एक ही बार में पढ़ गया क्योंकि यह इतना रोचक है कि इसे लटकाना उचित नहीं लगा। यह भाग बच्चों में वीररस और देश के प्रति कर्तव्य बोध का सृजन करने में सहायक होगा। सोशल मीडिया के इस युग में आजकल के बच्चों में वीररस की कमी प्रत्यक्ष दिखती है। यह भाग इस कमी को पूर्ण करने के लिए के औषधि का काम कर सकता है। इसके बाद श्रीमती गजानन्द शास्त्रिणी शीर्षक से एक शानदार व्यंग्य दिया गया है। हिंदी साहित्य में व्यंग्य की अपनी ही एक भूमिका और आनंद है। व्यंग्य के माध्यम से व्यंग्यकार समाज की अनेक बुराईयों या अच्छाईयों पर बात करते रहते हैं। व्यंग्य हंसाता भी है और सोचने पर विवश भी करता है। यहाँ भी कुछ ऐसा ही है। जो यह व्यंग्य पढ़ेगा एक वाक्य उसके मुंह पर अवश्य चढ़ जाएगा और वह वाक्य है ‘धर्म की रक्षा के लिए’। आजकल के बच्चों को व्यंग्य का स्वाद देने का यह प्रयोग बहुत दूरदर्शी प्रतीत होता है।
कुल मिलाकर 85 पृष्ठों की यह छोटी सी पुस्तक महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी ज्ञान के महासागर से कुछ बूंदे लेकर गागर में सागर भरने का एक अच्छा प्रयास है। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के पाठक को इससे लाभ हो सकता है। जीवनोपयोगी शिक्षा, कर्तव्य बोध और व्यंग्य के माध्यम से हंसी मजाक का सृजन करके मन मस्तिष्क को हल्का करने वाली ऐसी विषयवस्तु आज के समय में अत्यंत प्रासंगिक है। कुल मिलाकर यह पुस्तक पठनीय है। ऐसी पुस्तकें आज की पीढ़ी को राष्ट्रभाषा हिंदी के निकट लाने, हिंदी साहित्य में रूचि पैदा करने और हिंदी का महत्त्व समझने में लाभप्रद होंगी। पाठकों का स्नेह इस पुस्तक को मिलेगा ऐसी आशा। पुस्तक ऑनलाइन उपलब्ध है।
पुस्तक का नाम: रोचक बाल कहानियाँ
प्रकाशक: वितस्ता प्रकाशन, दिल्ली
पृष्ठ: 85