आतंकियों की मौत के बाद तिलमिलाया पाकिस्तान, बौखलाहट में गुरुद्वारे पर किया हमला; पुंछ में 11 नागरिकों की हुई मौत

तालिबान से लेकर पाक फौज तक — सिखों का खून बहाने वाले हाथ एक ही

पुंछ में पाकिस्तान ने की भारी गोलाबारी

पुंछ में पाकिस्तान ने की भारी गोलाबारी

इतिहास गवाह है कि 1947 का विभाजन हो या अफगानिस्तान में तालिबान का अत्याचार शरिया मानने वालों ने सबसे ज्यादा ज़ुल्म सिखों पर ही किये हैं। अब वही नफरत एक बार फिर पाकिस्तान की सरहदों पर फिर ज़िंदा दिख रही है। भारत ने जब पहलगाम में हुए आतंकी हमले का करारा जवाब देते हुए, जिसमें आतंकियों ने धर्म पूछकर हिंदुओं को निशाना बनाया था, पाकिस्तान और POK में नौ आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया, तो बौखलाए पाकिस्तान ने अपनी कायरता की हद पार कर दी। जवाबी कार्रवाई में जब वह भारतीय सेना का सामना नहीं कर पाया, तो उसने गुरुद्वारों को निशाना बनाना शुरू कर दिया और इस बार निशाना बना पुंछ का पवित्र गुरुद्वारा ‘श्री गुरु सिंह सभा साहिब’।

दरअसल, बुधवार सुबह पाकिस्तान की सेना ने जानबूझकर पुंछ स्थित गुरुद्वारे पर तोपों से हमला किया, जिसमें रागी अमरीक सिंह, अमरजीत सिंह और रंजीत सिंह की मौत हो गई है। इसके अलावा, पुंछ में हुए हमलों में खबर लिखे जाने तक कुल 11 लोगों की मौत हो चुकी थी और 43 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। यह हमला सिर्फ LOC पर हुई गोलीबारी नहीं था यह एक सुनियोजित धार्मिक हमला था, जिसमें सिखों को जानबूझकर निशाना बनाया गया। पाकिस्तान की ये हरकत बताती है कि वह न सिर्फ आतंकियों का हमदर्द है, बल्कि पहले हिन्दू और च्रिस्तियंस पर और अब सिखों पर कर एक और 1947 दोहराने की साजिश कर रहा है।

क्या बोले पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री

पुंछ के गुरुद्वारे पर हुए इस कायराना हमले को लेकर पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री और शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने पाकिस्तानी सेना की इस नृशंस हरकत की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए कहा, “मैं पुंछ में पवित्र केंद्रीय गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा साहिब पर पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए इस अमानवीय हमले की कड़ी निंदा करता हूँ, जिसमें तीन मासूम गुरसिख — रागी भाई अमरीक सिंह जी, भाई अमरजीत सिंह और भाई रंजीत सिंह — शहीद हो गए।”

सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि शिरोमणि अकाली दल इन शहीद गुरसिखों के परिजनों के साथ पूरी एकजुटता के साथ खड़ा है, और हम उनके लिए प्रार्थना करते हैं कि परमात्मा दिवंगत आत्माओं को शांति दे और उनके परिवारों को इस दुख की घड़ी में संबल और शक्ति प्रदान करे।

उन्होंने आगे कहा, “हम मांग करते हैं कि इन शहीदों को उनकी बलिदान के लिए उचित सम्मान दिया जाए और उनके परिजनों को इस कठिन समय में सरकार की ओर से समुचित मुआवज़ा मिले ताकि वे अपने जीवन को दोबारा संभाल सकें।” बादल ने यह भी दोहराया कि सिख समुदाय देश की ‘तलवार-बाहु’ रहा है और आगे भी रहेगा। “हम अपनी सेना के साथ चट्टान की तरह खड़े हैं। शिरोमणि अकाली दल और यह राष्ट्र हमेशा शांति के पक्षधर रहे हैं, लेकिन अगर दुश्मन हमारी अस्मिता को ललकारेगा, तो हमें अपने देशभक्ति के कर्तव्यों की याद दिलाने की कोई ज़रूरत नहीं।”

सिखों को शुरू से ही निशाना बनाती रही है पाकिस्तानी हुकूमत

यह कोई पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने सिखों को अपनी कायराना हिंसा का शिकार बनाया है। यह पूरी एक सुनियोजित परंपरा रही है 1947 के बंटवारे के समय सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला समुदाय सिख ही था, और आज भी वही ज़ख्म पाकिस्तान बार-बार कुरेद रहा है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों, खासकर सिख समुदाय पर बार-बार किए जा रहे हमलों ने यह साफ कर दिया है कि यह देश अल्पसंख्यकों के लिए एक कब्रगाह बन चुका है।

एशियन लाइट इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में ‘शरिया कानून’ लागू करने की बढ़ती मांगों के बीच सिख समुदाय के खिलाफ अत्याचारों में तेज़ी आई है। हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि सिखों के लिए पाकिस्तान में ज़िंदा रहना भी एक चुनौती बन चुका है। हत्या, अपहरण और जबरन मतांतरण जैसी घटनाएं सिखों के रोज़मर्रा के जीवन में डर का स्थायी भाव भर चुकी हैं।

यही नहीं पेशावर में पिछले कुछ वर्षों में सिखों की टारगेट किलिंग की कई घटनाएं सामने आती रही हैं। 2022 में हुई कुलजीत सिंह और रंजीत सिंह की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इससे पहले, जनवरी 2020 में, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में सिखों के सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक ननकाना साहिब पर एक उन्मादी भीड़ ने हमला कर दिया था। यह हमला न सिर्फ सिखों की धार्मिक भावनाओं पर प्रहार था, बल्कि यह संदेश था कि पाकिस्तान की हुकूमत खुद ऐसे हमलों को बढ़ावा दे रही है। 2014 के बाद सिखों पर इस तरह की यह 12वीं बड़ी आतंकी घटना थी। पिछले साल सितंबर में पेशावर में यूनानी चिकित्सक सतनाम सिंह की दिनदहाड़े उनके क्लिनिक में ही हत्या कर दी गई थी। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने भी खैबर पख्तूनख्वा में सिखों को लगातार निशाना बनाए जाने की कड़ी निंदा की थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले दो दशकों में जबरन धर्मांतरण और टारगेटेड किलिंग की वजह से पाकिस्तान में सिख आबादी में भारी गिरावट आई है। ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या ये हमला भी उसी मंशा का विस्तार है जो सिखों को धीरे-धीरे मिटा देना चाहती है?

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