देश में एक बार फिर कोरोना वायरस की वापसी डर पैदा कर रही है। सक्रिय मामलों की संख्या 1000 के पार जा चुकी है, लेकिन इस बार चिंता सिर्फ संक्रमण की नहीं है बल्कि उस खामोश खतरे की है, जो नजर नहीं आता, लेकिन जानलेवा हो सकता है। IIT इंदौर द्वारा की गई एक नई रिसर्च में ऐसा खुलासा हुआ है, जिसने मेडिकल जगत को भी चौंका दिया है। इस अध्ययन में दावा किया गया है कि कोविड-19 का डेल्टा वैरिएंट न सिर्फ फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि यह दिल पर भी असर डाल सकता है वो भी बिना किसी चेतावनी के। यही वजह है कि इसे ‘साइलेंट हार्ट अटैक’ का छुपा हुआ कारण माना जा रहा है।
यह रिसर्च इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी ICMR के सहयोग से की गई, जिसमें यह भी सामने आया कि कोरोना के विभिन्न वैरिएंट शरीर के भीतर ब्लड क्लॉट्स यानी खून के थक्के बनाने की प्रवृत्ति को बढ़ा सकते हैं। यही थक्के बाद में हृदयघात या अन्य गंभीर जटिलताओं में तब्दील हो सकते हैं। आज जब हम संक्रमण की संख्या के आंकड़ों पर निगाहें टिकाए हुए हैं, यह अध्ययन हमें उस अदृश्य खतरे की ओर इशारा करता है जो धीरे-धीरे शरीर के भीतर असर दिखा रहा है और वो भी बिना किसी सतही लक्षण के।
शरीर को कैसे प्रभावित करता है ये वैरिएंट
IIT इंदौर और ICMR के इस साझा अध्ययन में सिर्फ संक्रमण की पुष्टि तक सीमित नहीं रहा गया, बल्कि इस रिसर्च ने उस गहराई को छुआ है, जहां कोरोना वायरस शरीर के भीतर धीरे-धीरे अपना असर दिखा रहा है अक्सर बिना किसी स्पष्ट चेतावनी के। शोधकर्ताओं ने कम से कम 3134 कोविड पॉजिटिव मरीजों का डेटा खंगाला, जिसमें पहली और दूसरी लहर के संक्रमित शामिल थे। इस व्यापक डेटा सेट की मदद से उन्होंने सिर्फ डेल्टा ही नहीं, बल्कि अल्फा, बीटा और गामा जैसे अन्य वैरिएंट्स की भी जांच की। मगर जो सामने आया, उसने वैज्ञानिकों को भी चौंका दिया।
डेल्टा वैरिएंट, जो दूसरी लहर के दौरान प्रमुख रहा, शरीर में सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाला पाया गया। यह वायरस सिर्फ फेफड़ों तक सीमित नहीं रहा बल्कि उसने शरीर के बायोकेमिकल बैलेंस को बिगाड़ दिया। खास तौर पर थायरॉइड हार्मोन के उत्पादन में गड़बड़ी, कैटेकोलामाइन हार्मोन असंतुलन और मेटाबॉलिक सिस्टम पर गंभीर प्रभाव इसके प्रमुख असर के रूप में देखे गए। रिसर्च टीम के अनुसार, डेल्टा वैरिएंट के प्रभाव से साइलेंट हार्ट फेल्योर जैसे गंभीर परिणाम भी सामने आ सकते हैं। IIT इंदौर के निदेशक प्रोफेसर सुहास एस. जोशी ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “यह शोध साफ दिखाता है कि कोविड-19 सिर्फ एक रेस्पिरेटरी बीमारी नहीं है। यह शरीर के लगभग हर सिस्टम को गहराई से प्रभावित कर सकता है।”
डॉ. झा, जो इस अध्ययन से जुड़े विशेषज्ञ हैं, का मानना है कि इस रिसर्च से डॉक्टरों को कोविड से जुड़ी जटिलताओं को बेहतर समझने और मरीजों के इलाज में ज्यादा सटीकता लाने में मदद मिलेगी। यह अध्ययन भविष्य की दवाइयों और टेस्ट की दिशा तय करने में भी अहम भूमिका निभा सकता है। रिसर्च टीम ने यह भी बताया कि जब यह वायरस शरीर के मेटाबॉलिज्म और हार्मोनल पाथवेज में गड़बड़ी करता है, तब मरीजों में थकान, सांस लेने में दिक्कत, हृदय गति का असंतुलन, और थायरॉइड विकार जैसे लक्षण लंबे समय तक बने रह सकते हैं। इस अध्ययन में अत्याधुनिक तकनीकों जैसे रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी और मल्टी-ओमिक्स का इस्तेमाल किया गया, जिससे शोध की विश्वसनीयता और गहराई और भी बढ़ गई। इस स्टडी ने एक बार फिर चेतावनी दी है कि कोविड-19 को केवल एक आम संक्रमण समझना खतरनाक हो सकता है यह वायरस कहीं अधिक जटिल और खामोश तरीकों से शरीर को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है।