भारत-पाकिस्तान के बीच सैनिक संघर्ष रुकने पर हम देश की प्रतिक्रिया देखें तो बड़ा वर्ग, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मोदी सरकार और भाजपा के समर्थक कार्यकर्ता शामिल हैं नाखुश दिखाई देते हैं। इन्हें लगता है कि भारत के पास पाकिस्तान को धूल चटाकर, ऐसा पंगु बना देने का अवसर था जिससे वह लंबे समय तक भारत को घाव देने की सोचे भी नहीं। कई रक्षा विशेषज्ञ भी यही मत प्रकट करते मिलेंगे। टकराव रुकने के कुछ घंटे बाद ड्रोन हमले शुरू हो गये। एक विश्वासघाती देश का चरित्र सामने आने के कारण देश से आवाज उठी कि यही मौका है सबक सिखा दो। सेना ने फिर सघन कार्रवाई करते हुए सारे हमले विफल किये। फिर हमले रुक गये। दूसरी ओर ऐसे लोग भी हैं जिन्हें लगता है कि भारत इस समय लंबे युद्ध कर पाकिस्तान को पराजित करने की लड़ाई नहीं लड़ रहा था। इसलिए तत्काल लंबा खींचना उचित नहीं था होता। प्रश्न है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद सैन्य टकराव रुकने को किस तरह देखा जाए?
भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकवादी हमले में धर्म पूछ कर मारे गए 25 एवं एक अन्य की हत्या के बाद अतीत का चरित्र त्याग कर पाक अधिकृत कश्मीर की सीमा में स्थित नौ आतंकवादी केन्द्रों को ध्वस्त किया और तत्काल यही उसका उद्देश्य था। इस तरह भारत ने सीमा पार आतंकवाद के विरुद्ध बदले हुए चरित्र वाले राष्ट्र का प्रमाण पेश किया। सबसे पहले जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ट्वीट आया कि लंबी बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने सीजफायर यानी युद्धविराम स्वीकार किया टीवी चैनलों पर बैठे पूर्व सैनिकों और विशेषज्ञों को भी हैरत हुआ। उसके बाद अमेरिका के विदेश मंत्री मार्क रुबियो का ट्वीट आ गया जिससे जानकारी मिली कि उपराष्ट्रपति जेडी बैंस लगातार दोनों देशों से बातचीत कर रहे थे। भारत के लोग इसकी पुष्टि करना चाहते थे और यह शाम 5 बजे विदेश सचिव विक्रम मिश्री के वक्तव्य के बाद स्पष्ट हुआ।
ध्यान रखिए , विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसके लिए स्टॉपेज आफ फायरिंग एंड मिलट्री एक्शन यानी गोलाबारी तथा सैन्य कार्रवाई के रुकने पर सहमति की बात की। वास्तव में भारत ने कभी भी सीजफायर या युद्धविराम शब्द का प्रयोग नहीं किया। यह शब्द पहले अमेरिका की ओर से आया और पाकिस्तान ने उपयोग किया। पाकिस्तान के साथ हमारा युद्ध विराम समझौता पहले से जिसे वह तोड़ रहा था। चाहे आतंकवादी अड्डों को ध्वस्त करना हो या पाकिस्तान को सैन्य कार्रवाई से उत्तर यार देश और विश्व को दी जाने वाली जानकारी एक नए रूप में भारत सामने आया है। 7 अप्रैल को आतंकवादी अड्डे ध्वस्त किए जाने के बाद सेना की दो महिला जवान कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह भारत की प्रवक्ता के रूप में सामने आई और उनके साथ विक्रम मिश्री भी आते रहे। संघर्ष रुकने के बारे में भी उनके माध्यम से ही देश ने अपना पक्ष सुना।
हालांकि, भारत जैसे परिपक्व और भविष्य की महाशक्ति की योजना से आगे बढ़ने वाला देश कोई हल्का वक्तव्य नहीं दे सकता। विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय को शनिवार को 4 बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करना पड़ा। सुबह 10.45 बजे हुई विदेश मंत्रालय की पहली कॉन्फ्रेंस हुई, जिसमें विदेश सचिव विक्रम मिसरी, कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर सोफिया अंसारी ने 8-9 मई रात पाकिस्तानी आक्रमण और उसके दावे तथा भारत की कार्रवाई को लेकर जानकारी दी। शाम 5 बजे विदेश सचिव मिसरी ने टकराव रुकने पर सहमति की बात सार्वजनिक की। फिर रक्षा मंत्रालय ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। कर्नल सोफिया कुरैशी ने ने जो कहा उसे भारत का रक्षा स्टैंड काफी हद तक स्पष्ट होता है। उनकी कुछ पंक्तियां देखिए- फिर से बात दोहराना चाहूंगी कि इंडियन आर्म्ड फोर्सेस पूरी तरह तैयार और सतर्क हैं।
भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए पूरी तरह समर्पित हैं। कमोडोर नायर ने कहा कि भारत की सेनाएं पूरी तरह सतर्क और तैयार हैं। अगर फिर हमला हुआ, तो हम मुंहतोड़ जवाब देंगे। 11 मई को सेना के तीनों अंगों के DGMO ने अपनी पत्रकार वार्ता में स्पष्ट कर दिया कि अभी हम युद्ध की स्थिति में हैं और यहां पूरी जानकारी देना उचित नहीं होगा। इसका अर्थ हुआ कि हमारी सेना अभी जहां जैसे थी वैसे रहेगी। पाकिस्तान ने आतंकवादी अड्डों को ध्वस्त करने को अपने पर हमला मानकर कार्रवाई किया था और भारत को उसका उत्तर देना पड़ा।
भारत दीर्घकालीन युद्ध की सोच से पाकिस्तान की सीमा में 100 किलोमीटर तक घुस कर आतंकवादी केन्द्रों को ध्वस्त करने नहीं गया था। देश में वातावरण इस कारण बना कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने जैसा पराक्रम दिखाया है उसको तार्किक परिणति या निर्णायक अवस्था में ले जाने की सामूहिक अपेक्षा पैदा हो गई। हालांकि पहलगाम आतंकी हमले के पहले किसी ने नहीं कहा कि आप पाक अधिकृत कश्मीर के लिए हमला करिए या पाकिस्तान पर हमला करिए। आश्चर्य की बात है कि जो विपक्षी दल आतंकवादी हमले पर सीमा पार करने से बचते रहे क्योंकि पाकिस्तान की प्रतिक्रियाओं से डरते थे वह भी सामूहिक रूप से सरकार पर प्रहार कर रहे हैं। प्रश्न है कि क्या सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने सरकार से पाक अधिकृत कश्मीर लेने या पाकिस्तान से अंतिम सीमा तक युद्ध करने की मांग की थी? क्या सरकार ने ऐसी कोई बात कही थी? यह दुर्भाग्य है कि पाकिस्तान और आतंकवादी के विरुद्ध इतनी बड़ी विजय और सफलता को भुलाकर जो है नहीं उसकी नॉरेटिव बना दी गई है।
ठीक है कि अमेरिकी राष्ट्रपति यदि लिखें कि उनकी मध्यस्थता में रातभर चली लंबी बातचीत के बाद मुझे बताते हुए खुशी हो रही है कि भारत और पाकिस्तान तुरंत और पूरी तरह हमले रोकने के लिए तैयार हो गए हैं तो भारत में चिंता स्वाभाविक होगी। किंतु डोनाल्ड ट्रंप को हम कोई कुछ पोस्ट करने से नहीं रोक सकते। वह क्या बोलते हैं इससे ज्यादा मायने इस बात की है कि भारत का स्टैंड क्या है? भारत ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान के साथ सामान्य DGMO की जो नियमित होने वाली सामान्य वार्ता ही होगी। दूसरे ,भारत ने कभी किसी की मध्यस्थता स्वीकारने की बात की ही नहीं। डोनाल्ड ट्रंप या अमेरिका की इच्छा हो सकती है कि वह कश्मीर पर मध्यस्थता करें लेकिन भारत की यह नीति नहीं है।
तीसरे, जब भारत ने स्पष्ट कर दिया कि कोई भी आतंकवादी घटना एक्ट ऑफ वार यानी युद्ध का कदम माना जाएगा तो उसमें राजनीतिक नेतृत्व से बातचीत की गुंजाइश बचती ही नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि अगर आतंकवादी हमला हुआ तो अभी हम केवल आतंकवादी केन्द्रों को निशाना बनाने के लिए मिसाइल के साथ घुसे उसके बाद देश पर हमला मानकर पाकिस्तान से सीधे टकराएंगे। इससे स्पष्ट मुखर और और आक्रामक नीति तथा वक्तव्य कुछ हो ही नहीं सकता। ध्यान रखिए, इस बार की सैन्य करवाई से संबंधित सभी निर्णयों में राजनीतिक नेतृत्व के साथ सेना के तीनों प्रमुखों और CDS सम्मिलित रहे। संघर्ष रोकने की घोषणा के पहले भी प्रधानमंत्री ने उनके साथ बैठकें की और सैन्य बलों ने क्या किया क्यों किया कैसे किया क्या सोचती है और क्या करेगी इन सबके बारे में वक्तव्य भी सेना के द्वारा ही दिया गया। यही बदले भारत के चरित्र का दिखाता है और देश को इस पर विश्वास करना चाहिए।
जो नेतृत्व पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान की सीमा में सटीक मिसाइल दाग कर आतंकवादी केन्द्रों को भी ध्वस्त करता है , जिसकी पाकिस्तान क्या अमेरिका कल्पना नहीं कर सकता था वह बातचीत करके पाकिस्तान जैसे विश्वासघाती और उन्मादी मजहबी सोच के आधार पर विदेश और सैन्य नीति चलाने वाले देश के साथ बातचीत कर उसे फिर घाव देने का अवसर देगा ऐसी कल्पना नहीं की जानी चाहिए। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ही अपने भाषण में कहा कि जम्मू-कश्मीर एक मुसलमा तनाजा था, है और उस वक्त तक रहेगा, जब तक कश्मीरी भाइयों को उनका हक नहीं मिल जाता। हम लश्कर बनकर दुश्मन का मुकाबला करेंगे और दुश्मन को शिकस्त देंगे। जिन आतंकी स्थलों को निशाना बनाया गया, उनमें से पांच पाक अधिकृत कश्मीर में 9 से 30 किलोमीटर के बीच और चार पाकिस्तान में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार 6 से 100 किलोमीटर के भीतर थे।
पाकिस्तान में कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि मिसाइलें पंजाब की सीमा में घुसकर बहावलपुर में मसूद अजहर के जैश ए मोहम्मद के किले को ध्वस्त कर इस स्थिति में पहुंचा देंगी कि भारत को इस्लामी देश बनाने ,अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनाने की घोषणा करने वाला मसूद फुट-फुट कर रोएगा कि मैं क्यों नहीं मर गया? मुंबई से लेकर अनेक हमलों का केन्द्र लश्कर ए तैयबा के मुरीदके को नष्ट करने की सोच भी सीमा पर नहीं थी। करवाई कितनी बड़ी थी इसको ऐसे देखिए कि हथियारों में राफेल से लॉन्च की गई स्कैल्प क्रूज मिसाइलें और हैमर स्मार्ट हथियार, गाइडेड बम किट, एक्सकैलिबर गोला-बारूद के साथ एम 777 हॉवित्जर और लोइटरिंग गोला-बारूद (उर्फ कामिकेज़ ड्रोन) आदि शामिल थे।
भारतीय राजनीतिक नेतृत्व और सैन्य नेतृत्व को अंदाजा था कि भले हम आतंकवाद भी अड्डे मानकर कार्रवाई करेंगे, पाकिस्तान की सेना और पूरी सत्ता ने अपना ही अंग मानकर विकसित और संरक्षित किया है इसलिए चोट उसे लगेगी और वह प्रतिक्रिया में कार्रवाई करेगा। इसकी पूरी तैयारी थी और इस कारण पाकिस्तान से हवाई हमलों को बेअसर करने के लिए कई तरह की वायु रक्षा प्रणालियों को तैनात किया गया। इनमें एस-400 ट्रायम्फ वायु रक्षा प्रणाली, स्वदेशी आकाश सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, बराक 8 वायु रक्षा प्रणाली, कई तरह की ड्रोन रोधी प्रणालियाँ और अन्य जवाबी उपाय।तो विजय उत्सव के क्षण को झूठे नैरेटिव में न गंवाएं।