वित्त वर्ष 2026 को लेकर क्रिसिल ने भारत की आर्थिक गति को लेकर एक आशावादी तस्वीर पेश की है। एजेंसी का अनुमान है कि देश की GDP वृद्धि दर इस साल 6.5 प्रतिशत के आसपास रह सकती है। इस अनुमान के पीछे घरेलू खपत में संभावित सुधार को एक बड़ी वजह के तौर पर देखा जा रहा है, जो न केवल उद्योगों की रफ्तार बढ़ाएगा, बल्कि व्यापक आर्थिक वातावरण में भी नई ऊर्जा भर सकता है।
क्रिसिल ने अपने विश्लेषण में कहा है कि उपभोक्ता मांग में यह संभावित सुधार कई सकारात्मक संकेतों का परिणाम हो सकता है। इनमें महंगाई में गिरावट, मजबूत कृषि उत्पादन, ब्याज दरों में संभावित कटौती और इस साल की आयकर नीतियों से मिलने वाली राहत जैसे कारक प्रमुख हैं। इन सबका सम्मिलित प्रभाव उपभोक्ताओं के विवेकाधीन खर्च को बढ़ावा देगा, जिससे औद्योगिक गतिविधियों को सीधा लाभ मिल सकता है।
इस पूरी परिदृश्य को और भी सशक्त बनाता है भारत मौसम विज्ञान विभाग का यह अनुमान कि इस वर्ष मानसून सामान्य से बेहतर रहने की संभावना है। एक अच्छा मानसून न सिर्फ किसानों के लिए राहत लेकर आता है, बल्कि खाद्य उत्पादन को बढ़ाकर महंगाई को भी नियंत्रित रखने में मदद करता है। इन तमाम कारकों को मिलाकर देखा जाए, तो क्रिसिल की यह भविष्यवाणी केवल एक आर्थिक संख्या नहीं, बल्कि उन सुधारों और संतुलनों का संकेत है, जिन पर भारत की विकास यात्रा अब आगे बढ़ रही है।
क्रिसिल इंटेलिजेंस के अनुसार…
क्रिसिल इंटेलिजेंस के ताज़ा आकलन के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में भारत को कुछ राहत मिल सकती है, खासकर ऊर्जा लागत के मोर्चे पर। अनुमान है कि इस वर्ष कच्चे तेल की औसत कीमत 65 से 70 डॉलर प्रति बैरल के बीच रह सकती है, जो कि पिछले वित्त वर्ष के औसतन 78.8 डॉलर प्रति बैरल की तुलना में उल्लेखनीय रूप से कम है। यह गिरावट घरेलू खर्च पर दबाव को कम कर सकती है और उद्योगों को लागत नियंत्रण में मदद दे सकती है।
क्रिसिल की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) से उम्मीद है कि वह अप्रैल तक रेपो दर में 50 आधार अंकों की कटौती के बाद, पूरे वित्त वर्ष के दौरान कुल मिलाकर 50 आधार अंकों की कटौती करेगी। ब्याज दरों में यह गिरावट पहले ही बैंक ऋण दरों को नीचे की ओर धकेल चुकी है, जिससे उपभोक्ता मांग में सुधार आने की संभावना है। हालांकि, क्रिसिल ने यह भी स्पष्ट किया है कि वैश्विक परिस्थितियों में अस्थिरता बनी रहने से आर्थिक वृद्धि दर पर कुछ जोखिम बरकरार हैं, और इसी संतुलन के साथ वित्त वर्ष 2026 में 6.5 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
औद्योगिक उत्पादन के स्तर पर, अप्रैल का महीना मिश्रित रहा। अमेरिका की टैरिफ नीतियों के प्रभाव और वैश्विक मांग में बदलाव के चलते कुछ निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों, जैसे फार्मास्यूटिकल्स और रसायन, में उत्पादन धीमा हुआ। वहीं, मशीनरी और रेडीमेड वस्त्र जैसे क्षेत्रों को त्वरित निर्यात गतिविधियों से लाभ मिला। पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में तेज़ी देखी गई, जबकि मध्यवर्ती वस्तुओं में मामूली सुधार दर्ज किया गया।
उधर, उपभोक्ता मांग की ओर इशारा करते हुए आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि नवंबर में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं, रेफ्रिजरेटर और टीवी जैसे कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के उत्पादन में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह संकेत देता है कि बढ़ती आमदनी के साथ उपभोक्ता खर्च भी मजबूती से उभर रहा है। साथ ही, बुनियादी ढांचे के मोर्चे पर सरकार द्वारा राजमार्ग, रेलवे और बंदरगाह जैसी परियोजनाओं में भारी निवेश के चलते इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में 4 प्रतिशत की ठोस वृद्धि दर्ज की गई है।