पिछले कुछ साल से केंद्र सरकार नक्सलवाद के खात्मे के लिए तेजी से काम कर रही है। राज्य की सहायता से सुरक्षाबलों ने इस दिशा में कई मील के पत्थर गाड़े हैं। इसी का परिणाम है की लाल आतंक का लाल गलियारा अब धीरे-धीरे सिमट रहा है। पिछले कुछ दिनों से छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ कई बड़े ऑपरेशन हुए हैं। अब केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के बस्तर को माओवाद की रेड लिस्ट यानी LWE से बाहर कर दिया है। कुल मिलाकर अब बस्तर को करीब-करीब नक्सल मुक्त माना जा रहा है। हालांकि, अभी भी सुरक्षाबलों और सरकार की पैनी नजर रहेगी। केंद्र के इस फैसले के बाद लंबे समय से नक्सलवाद से प्रभावित बस्तर को विकास के नए आयाम गढ़ने के मौके मिलेंगे।
वामपंथी उग्रवाद (LWE) प्रभावित जिलों की सूची से इन दोनों जिलों को हटाना नक्सलवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई में एक बड़ी जीत का प्रतीक है। कभी माओवादी विद्रोह के पर्याय बने इन इलाकों को विरासत और जोर के जिलों के रूप में परिभाषित किया गया है। इसका अर्थ है कि इन क्षेत्रों में माओवादी गतिविधियां कम हो गई हैं। अब इनमें विकास की रफ्तार और अधिक हो गई है।
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30 जिलों में हुए शामिल
बस्तर कम से कम 25 सालों से LWE प्रभावित जिलों की सूची में शामिल था। बस्तर आईजी पी सुंदरराज ने कहा कि कोंडागांव और बस्तर अब देश के उन 30 जिलों में शामिल हो गए हैं जिन्हें पहले विरासत और जोर के जिले के रूप में रखा गया गया था। ऐसे में वो खुद ही LWE प्रभावित क्षेत्रों की श्रेणी से हट गए है। इससे जिले के विकास को नई गति मिल पाएगी। उद्योग और रोजगार का सृजन होगा।
संभाल के अन्य जिलों के हाल
गृह मंत्रालय ने देश के 18 जिलों को LWE-प्रभावित, अन्य LWE-प्रभावित के रूप में पहचान किया है। इसमें छत्तीसगढ़ के छह जिले शामिल हैं। बस्तर संभाग के सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर और कांकेर अभी भी सर्वाधिक प्रभावित LWE जिलों की लिस्ट में आते हैं। वहीं दंतेवाड़ा अन्य LWE जिलों के रूप में परिभाषित किया जाता है। जबकि, धमतरी, कबीरधाम, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई और राजनांदगांव विरासत और जोर के जिलों की लिस्ट में शामिल हैं।
टूट रही है नक्सलवाद की कमर
यह घोषणा ऐसे समय में हुई है जब पिछले हफ्ते ही पड़ोसी नारायणपुर जिले में माओवादी महासचिव बासवराजू को जमीन में मिला दिया गया था। इसके साथ ही कारेगुट्टा के पहाड़ में चलाए गए ऑपरेशन में 32 नक्सलियों का एनकाउंटर हुआ था। बासवराजू के साथ ही 26 अन्य नक्सली भी नारायणपुर में मारे गए थे। छत्तीसगढ़ के अलावा भी झारखंड और महाराष्ट्र में लगातार ऑपरेशन चल रहे हैं। दूसरी ओर कई नक्सली लगातार आत्मसमर्पण भी कर रहे हैं। ऐसे में नक्सलवाद की कमर टूटती हुई नजर आ रही है।
लोकतंत्र में बढ़ रही भागीदारी
बस्तर और कोंडागांव एक दौर में नक्सलवाद के गढ़ माने जाते थे। पिछले कुछ समय से जिलों ने नक्सल घटनाओं में कमी आई है। कोंडागांव में पिछले पांच सालों में एकमात्र मुठभेड़ 16 अप्रैल को हुई थी। इसमें दो बड़े माओवादी कमांडरों को मार गिराया गया था। इन दोनों जिलों में 2023 के विधानसभा चुनावों में अच्छा मतदान हुआ था। अब बस्तर रेंज से नक्सलवाद पूरी तरह खत्म करने के लिए प्रयास और तेज होंगे। यह बदलाव छत्तीसगढ़ को नक्सल मुक्त बनाने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है।