केंद्र सरकार दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है। माना जा रहा है कि आगामी मॉनसून सत्र में यह प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया कितनी मुश्किल हैं यह समझने के लिए यह जानना ही पर्याप्त है कि आज़ादी के करीब 78 वर्ष बाद भी आज तक किसी जज को महाभियोग की प्रक्रिया के तहत हटाया नहीं जा सका है। न्यायपालिका भारत में विधायिका और कार्यपालिका दोनों से ही स्वतंत्र रुप से काम करती है। हालांकि, कई बार जजों पर भ्रष्टाचार और यौन शोषण जैसे आरोप लगते रहते हैं। इस लेख में आपको बताते हैं कि जजों को हटाने की पूरी प्रक्रिया क्या है।
क्या है इसके संवैधानिक प्रावधान?
महाभियोग प्रस्ताव का उल्लेख भारत के संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4) और (5), 217 तथा 218 में किया गया है। संविधान की धारा 124 में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया बताई गई है, जिसमें भाग 4 यह स्पष्ट करता है कि देश के मुख्य न्यायाधीश को केवल संसद में महाभियोग की प्रक्रिया के जरिए ही हटाया जा सकता है। जज (इंक्वायरी) अधिनियम, 1968 के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश या अन्य किसी जज को केवल भ्रष्टाचार या अक्षमता के आधार पर ही हटाया जा सकता है, हालांकि इन शब्दों की परिभाषा स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं है। इसमें आपराधिक कृत्य या अन्य न्यायिक अनैतिकताएं शामिल हैं।
जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया
भारत में किसी भी उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया काफी गंभीर और तय नियमों के तहत होती है। इसे महाभियोग (Impeachment) कहते हैं। आइए जानें, यह प्रक्रिया कैसे चलती है:
1. प्रस्ताव लाने की शुरुआत
महाभियोग प्रस्ताव को लोकसभा के कम से कम 100 सांसद या राज्यसभा के 50 सांसद साइन करते हैं।
इसके बाद यह प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को सौंपा जाता है।
2. प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है
अध्यक्ष या सभापति इस प्रस्ताव को पढ़कर यह तय करते हैं कि इसे स्वीकार करना है या खारिज।
3. तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन
अगर प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो एक 3 सदस्यीय जांच समिति बनाई जाती है, जिसमें शामिल होते हैं:
एक सुप्रीम कोर्ट के जज,
एक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश,
और एक प्रसिद्ध न्यायविद (ज्यूरिस्ट)।
4. जांच और रिपोर्ट
यह समिति लगाए गए आरोपों की गहराई से जांच करती है।
अगर जांच में जज को दोषी पाया जाता है, तो प्रस्ताव संसद में पेश किया जाता है।
5. संसद की मंज़ूरी
महाभियोग प्रस्ताव को दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में पारित करना होता है।
पारित होने के लिए दो शर्तें ज़रूरी हैं:
उपस्थित सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत,
और सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत।
6. राष्ट्रपति की अंतिम मुहर
जब दोनों सदनों से प्रस्ताव पास हो जाता है, तब यह राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
राष्ट्रपति इसकी पुष्टि करते हैं और फिर जज को पद से हटा दिया जाता है।