खून नहीं इनके रगों में है जुनून, दुश्मन के लिए काफी हैं भारत की ये 5 कमांडो यूनिट

India Special Commando: भारत की सेना और सुरक्षा बलों को मिलाकर कई विशिष्ट बल बनाए गए हैं। इसमें 5 कमांडो ऐसे हैं तो पांडवों की तरह पूरे युद्ध के लिए काफी हैं।

India 5 Special Commando

India 5 Special Commando

India Special Commando: भारत की सरहदों की हिफाजत चाहे जमीन पर हो या आसमान में या फिर समंदर की अथाह गहराई ही क्यों न हो हमारे जांबाज हमेशा जान हथेली पर लेकर खड़े रहते हैं। फौलादी जिगर वाले इन लड़ाकों के जिगर में खून नहीं जुनून दौड़ता है। हमारे जांबाजों की शौर्य गाथाएं रोम-रोम में रोमांच भर देती हैं। वहीं दुश्मन के दिल को सदमे के कगार तक ले जाती हैं। भारत के सीमाओं की सुरक्षा के लिए आपने थल सेना, जल सेना और वायुसेना का नाम सुना ही होगा। इसके अलावा सीमाओं के भीतर और सीमायी क्षेत्र में देश की रक्षा, सुरक्षा और कानून के लिए कई तरह की फोर्स और पुलिस काम करती है। इनका एक-एक जवान वो तीर है जो निशाने पर ही लगता है। इन्हीं में से कई तरह के विशिष्ट काम और मिशन के लिए खास कमांडो कुछ विशेष बल तैयार किए जाते हैं। हालांकि, आज हम पांच पांडवों तरह देश की रक्षा करने वाले गरुड़ कमांडो, पैरा कमांडो, कोबरा कमांडो, एनएसजी कमांडो, मार्कोस कमांडो की बात करेंगे।

जब बात मुल्क की हिफाजत की आती है देश में हर तरह की फोर्स को अलर्ट पर रखा जाता है। इसी कारण पहलगाम हमले के बाद गरुड़ कमांडो, पैरा कमांडो, कोबरा कमांडो, एनएसजी कमांडो, मार्कोस कमांडो के सतर्कता और शौर्य की चर्चा हो रही है। आइये जानें इन कमांडो की खासियत जो देश को आवाम को गर्व से सिर उठाने का मौका देते हैं और हर मुश्किल घड़ी में ढाल बनकर खड़े रहते हैं। इनके हौसले और ट्रेनिंग के आगे दुश्मन की एक न चलती।

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गरुड़ कमांडो । Garud Commando

गरुड़ कमांडो आसमान में चील की तरह उड़ते हैं। इसके जवानों ने हवा की रफ्तार में गहराई का गुरुर समेटे हुए हैं। हवा की फुसफुसाहट भी इनके शौर्य की गवाही देती है। दुश्मन के हवाई क्षेत्र में हमला करने, रडार व अन्य उपकरणों को ध्वस्त करने, स्पेशल काम्बैट (लड़ाई) और रेस्क्यू (बचाव) ऑपरेशन के लिए इन्हें खासतौर पर तैयार किया जाता है। इनका नाम सुनकर ही विरोधी कांप उठते हैं।

चयन के लिए होते हैं कई पड़ाव

गरुड़ कमांडो बनने के लिए तीन साल की कठिन ट्रेनिंग (Garud Commando Selection Process) होती है। इनकी सबसे ज्यादा तैनाती जम्मू और कश्मीर में होती है और ये सेना, एयर फोर्स कमांडो के साथ मिलकर अपने ज्वाइंट एक्शन तेज करते हैं। एयरबोर्न ऑपरेशन, एयरफील्ड सीजर और काउंटर टेररिज्म का जिम्मा उठाने के लिए इन्हें ट्रेंड किया जाता है।

कठिन ट्रेनिंग होती है

ट्रेनिंग पूरी करने के बाद ये कमांडो किसी भी परिस्थिति से निपटने में सक्षम होते हैं। खतरनाक हथियारों से लैस गरुड़ कमांडो दुश्मन को तुरंत खत्म कर देते हैं। जानें कैसे होती है ट्रेनिंग (Garud Commando Training)

पैरा कमांडो । Para Commando

पैरा कमांडो जमीन पर दुश्मन को धूल चटाते हैं। इसके जवाब न थके, न रुके का जीवंत रूप है। उनकी एक ही हुंकार दुश्मन के दिल की धड़कन रोकने के लिए काफी है। पैरा कमांडो, जिसे पैरा स्पेशल फोर्स या पैरा एसएफ के रूप में भी जाना जाता है। यह भारतीय सेना (Indian Army) की एक यूनिट है। इसे विशेष अभियानों के लिए तैयार किया जाता है। यह पैराशूट रेजिमेंट का एक हिस्सा है। मैरून रंग का बेरेट, शोल्डर टाइटल और बलिदान बैज पैरा एसएफ यूनिफॉर्म को आसानी से अलग पहचान देता है।

पैरा कमांडो भारतीय सेना की इलीट रेजिमेंट है। सैनिकों को उच्च मानसिक मजबूती के साथ-साथ शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती है। पैरा कमांडो बनने के लिए भारतीय सेना से शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों को स्पेशलिस्ट ट्रेनिंग (Para Commando Selection Process) से गुजरना पड़ता है। प्रोबेशन पीरियड को पूरा करने के बाद सैनिक अपनी योग्यता के आधार पर स्पेशलिटी का चयन कर सकते हैं।

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कोबरा कमांडो । Cobra Commando

कोबरा कमांडो जंगलों में सांप की तरह चुपके से वार करते हैं। घाटियों के अंधेरों में सांप से फुर्तीले होते हैं। इनसे पूछने पर ये आसानी से बता देंगे की जंगल की हर पत्ती क्या कहती है। देश की आजादी से पहले ही 27 जुलाई 1939 को केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स की स्थापना की गई था। तब इसे क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस के रूप में जाना जाता था। हालांकि, आजादी के बाद 28 दिसंबर 1949 को संसद के एक अधिनियम के जरिए इसका नाम केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल दिया गया। साल 2008 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स ने कोबरा बटालियन का गठन किया था। नक्सलवाद जैसी गंभीर समस्या के लिए इसका इस्तेमाल होता है।

कैसे बनते हैं कोबरा कमांडो?

इसके जवाब दो से सात दिनों तक चलने वाले ऑपरेशन में पूरी तरह से सक्षम होते हैं। इसके लिए आपको मेंटली और फिजिकली फिट होना चाहिए और अंदर कोबरा कमांडो बनने का जज्बा हो। आइये जानें कोबरा कमांडो बनने की शुरुआत कैसे होती है? (Cobra Commando Selection Process)

बेहद कठिन होती है ट्रेनिंग

CRPF के जवान को कोबरा कमांडो बनने के लिए आंतरिक टेस्ट देना होता है। अगर इस परीक्षा को पास कर लिया तो 90 दिनों की बेसिक ट्रेनिंग (Cobra Commando Training) दी जाती है। हालांकि, अभी जवान कोबरा नहीं बना होता। इसके लिए जरूरी है कि वो 90 दिन में सभी बाधाओं का पार करे तब उसे उसे अगले पड़ाव के लिए भेजा जाता है। नहीं सामान्य रूप से फोर्स में सेवा देता रहता है।

घने जंगलों में नक्सली और आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशनों को अंजाम देने के लिए इस विशिष्ट फोर्स को खास तरह की ट्रेनिंग मिली होती है। सबसे पहले उन्हें यह सिखाया जाता है कि जंगल में कैसे सरवाइव कैसे करना है। अगर ऑपरेशन के दौरान कोई रुकावट आए तो उससे लड़ने के लिए उन्हें सक्षम बनाया जाता है। इस बटालियन को इंस्‍पेक्‍टर जनरल रैंक का ऑफिसर हेड करता है।

एनएसजी कमांडो । NSG Commando

एनएसजी कमांडो सीमा के भीतर आतंक और किसी भी बड़े खतरे का खात्मा करते हैं। काले कपड़ों में इसके जवान हर मोर्चे पर दुश्मन के काल बन जाते हैं। बम की सुई पर किसके हाथों में है। इनके आंख और कान इसकी गवाही देते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड यानी NSG को देश में सुरक्षा के लिए सबसे ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है। ये पलक झपकते दुश्मन की कमर तोड़ देते हैं। साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सरकार ने देश और खासतौर पर कश्मीर से आतंकियों का सफाया करने के लिए इसका गठन किया गया था। इन्हें VIP सुरक्षा में भी लगाया जाता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की ट्रेनिंग

NSG कमांडो अपनी बहादुरी और कठिन ट्रेनिंग के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी ट्रेनिंग (NSG Commando Training) का मकसद अधिक से अधिक योग्य जवानों का चयन करना होता है। इसके लिए कई चरणों में जवानों का चयन किया जाता है। ये अपनी-अपनी फोर्स के सर्वश्रेष्ट सैनिक होते हैं। इन्हें मानेसर एनएसजी के ट्रेनिंग सेन्टर में 90 दिन में ट्रेंड किया जाता है। हालांकि, NSG कमांडो बनने के लिए यहां के हर पड़ाव को पार करना होता है। आंकड़े बताते हैं कि 15-20 फीसदी जवान यहां से बाहर हो जाते हैं। (NSG Commando Selection Process)

एनएसजी का गठन भारत की विभिन्न फोर्सेज से विशिष्ट जवानों को छांटकर किया जाता है। इसमें 53 फीसदी सेना के जवान होते हैं। बाकी के 47 प्रतिशत पैरामिलिट्री फोर्सेज (CRPF, ITBP, RFA और BSF) से होते हैं। इनकी अधिकतम कार्य सेवा 5 साल तक होती है। हालांकि, ये पूरे 5 साल महज 15-20 फीसदी ही रह पाते हैं। सेवा के बाद उनके मूल फोर्स में भेज दिया जाता है। मुंबई आतंकी हमला, पठानकोट एयरबेस हमला, अक्षरधाम मंदिर जैसे आतंकी हमलों में कमांडो ने खुद की जान पर खेलकर सैकड़ों लोगों की जान बचाई है।

मार्कोस कमांडो । Marcos Commando

मार्कोस समंदर के शहंशाह हैं जो पानी में दुश्मन को डुबो देते हैं। समंदर के सन्नाटे में गरजती इनकी हुंकार पानी में आग लगाने के लिए काफी है। मार्कोस बता सकते हैं कि समंदर की तह में क्या लिखा है? मार्कोस या मरीन कमांडो फोर्स भारत के सबसे खतरनाक और घातक कमांडो होते हैं। यह इंडियन नेवी की स्पेशल ऑपरेशंस फोर्स यूनिट है, लेकिन इनकी ट्रेनिंग इस तरह से दी जाती है कि यह आसानी से जमीनी स्तर से लेकर आसमान तक दुश्मनों का खात्मा कर सकते हैं। भारतीय नौसेना की यह स्पेशल यूनिट फरवरी 1987 में बनाई गई थी। इन्हें दुनिया के सभी आधुनिक हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है।

कौन होते हैं मार्कोस कमांडो?

1987 में मार्कोस कमांडो की स्पेशल यूनिट (Marcos Commando Selection Process) इसलिए बनाई गई थी, क्योंकि उस वक्त आतंकवादी हमले और समुद्री लुटेरों का आतंक काफी तेजी से बढ़ने लगा था। उस पर काबू पाने और सबक सिखाने के लिए एक स्पेशल फोर्स की जरूरत थी। मार्कोस की ट्रेनिंग अमेरिकी नेवी सील्स की तरह कराई जाती है। फिलहाल, हमारे पास इसके करीब 1200 कमांडो हैं। इनका चयन बहुत ही कठिन ट्रेनिंग के बाद किया जाता है।

कैसे होती है ट्रेनिंग?

मार्कोस को भारत के सबसे खतरनाक कमांडो में गिना जाता है। इसकी ट्रेनिंग (Marcos Commando Training) भी बहुत ही खतरनाक होती है। हर किसी के लिए इसको क्वालीफाई कर पाना संभव नहीं होता है। मार्कोस के लिए चुने गए सैनिकों की ट्रेनिंग तीन साल की होता है। इसमें हजारों सैनिकों में से कुछ ही सैनिकों को ट्रेनिंग के लिए आगे भेजा जाता है। ट्रेनिंग के दौरान सैनिकों को 24 घंटे में से मात्र 4-5 घंटे तक ही सोने दिया जाता है। तड़के सुबह से शुरू हुई ट्रेनिंग देर शाम या रात तक भी चलती रहती है।

मार्कोस 1987 से अब तक कई ऑपरेशन में अपनी भूमिका निभा चुके हैं। पहली बार मार्कोस की तैनाती 1990 के दशक में वुलर झील में की गई थी। साल 1987 में हुए पवन ऑपरेशन, साल 1988 में कैक्टस ऑपरेशन , 1991 में ताशा ऑपरेशन, साल 1992 में जबरदस्त ऑपरेशन ,1999 में कारगिल वार , 2008 में  ब्लैक टॉरनेडो ऑपरेशन और 2015 में हुए राहत ऑपरेशन में इनका प्रदर्शन देखने लायक है।

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भारत की रक्षा व्यवस्था में विशेष बलों की भूमिका किसी मजबूत किले की तरह है। हमारी अदृश्य पराक्रम के प्रहरी ये सभी विशेष बल भारत की सुरक्षा-व्यवस्था की रीढ़ हैं। मौका और माहौल कैसा भी हो आसमान, जमीन, जंगल, शहर, से लेकर समुद्र तक हमारे ये वीर सतर्क हैं। पहलगाम जैसे आतंकी हमलों के समय इनका महत्व और खास हो जाता है। पांच पांडवों की तरह काम करने वाले गरुड़, पैरा, कोबरा, एनएसजी व मार्कोस कमांडो मात्र सैनिक नहीं है। ये अपराजेय संकल्प की मूर्ति हैं। क्योंकि, इनकी शपथ ही है जहां नजर न पहुंचे, वहां भी तिरंगा सुरक्षित रहे। इनका शौर्य देश की सुरक्षा की नींव को और मजबूत करता है।

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