विनायक दामोदर सावरकर जिन्हें ‘स्वातंत्र्यवीर’ के रूप में जाना जाता है। वो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे। उनकी भूमिका और विचारधारा आज भी प्रासंगिक है। खास तौर पर से तब जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा उनकी देशभक्ति का अपमान किया जाता है। विडंबना यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी प्रशंसा की थी और उनके योगदान को सम्मान दिया था। इसके बाद आज की कांग्रेस उनके प्रति नकारात्मक रुख क्यों अपनाती है? कांग्रेस के लिए असल मसला सावरकर की क्रांति नहीं बल्कि उनका हिंदू चेहरा है।
विनायक दामोदर सावरकर आज के ही रोज यानी 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक में आने वाले भागुर गांव में हुआ था। साल 1901 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। हालांकि, तब तक सिर से माता-पिता का साया छिन चुका था। भाइयों ने उनकी पढ़ाई को जारी रखा। इसी दौरान उनके मन में क्रांति की ज्वाला फूट पड़ी। 1906 में पढ़ाई के लिए लंदन गए और अंग्रेजों की धरती पर क्रांतिकारी बन गए। इसके बाद से 1966 तक उनका पूरा जीवन क्रांति और हिंदू जागरण में बीता।
क्रांतिवीर ही नहीं हिंदुओं की आवाज भी थे
सावरकर शुरुआती जीवन से ही कट्टर हिंदू थे। जीवनभर वो आजादी की लड़ाई के साथ हिंदुओं को यूनाइटेड करने का करते रहे। उन्हें 1911 में कालापानी की सजा सुनाई गई। अंडमान की सेलुलर जेल में कठोर यातनाएं सहनी पड़ीं। इसके बाद भी उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया था। इस दौरान उन्होंने किताब लिखी और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई। जेल में रहने के दौरान उन्होंने धोखे से धर्मांतरण कराए गए हिंदुओं की घर वापसी कराई थी। नमाज की तेज आवाज पर उन्होंने पाबंदी लगवाई थी। इसी कारण आज भी सावरकर को हिंदुओं की सबसे बुलंद आवाज के नाम से जाना जाता है।
वीर सावरकर से क्यों चिढ़ती है कांग्रेस?
भारत की आजादी में सावरकर योगदान के साथ ही सनातन की रक्षा और बचाव के लिए उन्हें हिंदू अपनी प्रेरणा मानते हैं। कांग्रेस खासकर राहुल गांधी को इसी बात से सबसे बड़ी समस्या है। राहुल नहीं चाहते के आज की जनरेशन को सावरकर की सच्चाई पता चले। क्योंकि आज के युवा उनको को जान गया तो कांग्रेस की लुटिया डूब जाएगी। इसी कारण राहुल गांधी और कांग्रेस उनकी क्रांति को दरकिनार करते हुए उन्हें टारगेट करते रहते हैं। इससे उन्हें तुष्टिकरण करने में आसानी होती है।
इंदिरा गांधी ने किया था सम्मान
वीर सावरकर का विरोध और उनके खिलाफ गलत प्रचार करते समय कांग्रेस और राहुल गांधी भूल जाते हैं की देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी सावरकर के योगदान की सराहना करती थीं। उन्होंने उनका सम्मान भी किया था।
- इंदिरा गांधी ने 26 फरवरी 1966 में सावरकर के निधन पर शोक भी जताया था।
- इंदिरा गांधी सरकार ने 1970 में वीर सावरकर के सम्मान में डाक टिकट जारी किया था।
- 1980 में पंडित बाखले को लिखे पत्र में उन्होंने सावरकर क्रांति को अहम बताया था।
इतना ही नहीं कई रिपोर्ट में दावा किया जाता है कि इंदिरा गांधी ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर ट्रस्ट को 11,000 रुपये का व्यक्तिगत दान दिया था। कुछ जगहों पर ये राशि 15,000 रुपये बताई जाती है। हालांकि, राशि कितनी भी हो पर ये उनके प्रति इंदिरा गांधी के सम्मान को दिखाती है। बीजेपी ने अमित मालवीय ने 27 अक्टूबर 2019 के अपने एक X पोस्ट में दावा किया था कि साल 1983 में इंदिरा गांधी ने फिल्म डिवीजन को स्वातंत्र्यवीर पर आधारित प्रोग्राम बनाने का आदेश भी दिया था।
इंदिरा ही नहीं कांग्रेसी भी मानते हैं वीर
कांग्रेस नेता यशवंतराव चव्हाण सावरकर को मराठी अस्मिता का प्रतीक मानते थे। उनके अलावा भी कई नेता आज भी उन्हें अपनी प्रेरणा मानते हैं। कई बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि सावरकर के कुछ पहलुओं से असहमति हो सकती है लेकिन उनकी क्रांतिकारी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। इतना ही नहीं नेहरू और महात्मा गांधी भी कई मौकों पर उनके सपोर्ट में आए थे।
- इंदिरा गांधी ने सावरकर को भारत का महान सपूत कहा और उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया।
- राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए लिखे सावरकर के पत्र का महात्मा गांधी ने भी समर्थन किया था।
वोट बैंक के लिए दादी को भूले राहुल
आरएसएस ने सावरकर को राष्ट्रीय नायक के रूप में प्रस्तुत किया है। इस कारण वो हिंदुओं की प्रेरणा के साथ एक राजनीतिक आइकन बन गए हैं। उनका की हिंदुत्व की अवधारणा और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर आधारित थी। कांग्रेस उन्हें सम्मान देने पर अपनी सेक्युलर छवि खोने का डर महसूस करती है। क्योंकि, उनके विचार कांग्रेस के कथित सेकुलर सिद्धांत से टकराते हैं।
कांग्रेस का मानना है कि सावरकर के हिंदुत्व विचारधारा उसे सियासी नुकसान पहुंचा सकती है। भारतीय जनता पार्टी समेत देश की सभी राष्ट्रवादी दल स्वातंत्र्यवीर को सम्मान से देखती है। ऐसे में उनके प्रति नकारात्मक रुख अपनाकर कांग्रेस अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश करती है। यही कारण है कि राहुल गांधी अपनी दादी इंदिरा गांधी के सम्मान के रुख को किनारे रख उनका विरोध करते रहते हैं। जबकि, इसके लिए उन्हें कोर्ट से भी फटकार लग चुकी है।