नक्सलवाद पार्ट-4: क्या थी नक्सलियों के विस्तार की असल वजह?

बस्तर में कांग्रेस की नीतियों और नक्सलबाड़ी से फैला आंदोलन रेड कॉरिडोर के जरिए कई प्रदेशों में घर कर गया। आखिर इसके बनने की असल वजह क्या थी?

Naxalism Naxalites Lal Aatank Red Corridor

Naxalism Naxalites Lal Aatank Red Corridor

नक्सलवाद पार्ट-4: 1967 के नक्सलबाड़ी आंदोलन को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे बस्तर में घर करने का मौका दिया। बस्तर के लोगों में भूमकाल आंदोलन से ही बाहरी लोगों के खिलाफ थे। उस दौर में सामंतों और ठेकेदारों ने भी किसानों को परेशान किया। जातिवाद और सरकार से परेशान लोग इसके प्रभाव में आते चले गए। जब उनके दर्द को सुनने वाला कोई नहीं मिला तो नक्सली ही उन्हें अपना लगने लगे। देखते-देखते रेड कॉरिडोर के जरिए नक्सलियों का विकृत स्वरूप महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा तक पहुंच गया। आंदोलनकारियों का मानना था कि भूमि उसी की होनी चाहिए जो उस पर खेती करे। शुरुआत में, इसका उद्देश्य बड़े जमींदारों से जमीन छीनकर भूमिहीन किसानों और मजदूरों में बांटना था। धीरे-धीरे यह आंदोलन फैलते हुए लाल गलियारे के रूप में स्थापित हो गया। कम्युनिस्टों के प्रभाव के कारण ये एंटी इंडिया भी हो गया।

नक्सलवाद पार्ट-3 में हमने आपको रेड कॉरिडोर के बारे में बताया कि ये कहां-कहां फैला है और इसने किस तरह से इसका विस्तार किया। आज हम बात करेंगे की आखिर नक्सलियों ने रेड कॉरिडोर कैसे और क्यों बना लिया? आखिर इसके लिए सरकार कैसे दोषी हैं?

करीब 6 दशक से भारत में नक्सलवाद ने अपनी जड़ों को जमा रखी हैं। यह आंदोलन लंबे समय तक इसलिए चल पाया। क्योंकि देश के अंदर और बाहर दोनों जगह से समर्थन मिला है। सरकार की कमजोर नीतियों और समाज के रिवाजों के कारण उन्होंने रेड कॉरिडोर बना लिया। यहां उनको सुरक्षित पनाह भी मिल गई। इस कॉरिडोर ने उनको सुरक्षाबलों के ऑपरेशन से बचाने और लंबा सरवाइव करने में मदद की। क्योंकि, उस दौर की सरकार ने समावेशी विकास के स्थान पर एक तरफा उद्योगों को बढ़ाने की कोशिश की थी।

मुख्य रूप से मध्य और पूर्वी भारत के आदिवासी इलाकों में फैले रेड कॉरिडोर बनने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। इसमें ऐतिहासिक और सामाजिक पृष्ठभूमि, नक्सलियों की माओवादी विचारधारा और सरकारी नीतियां शामिल हैं। वहीं जटिल सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रक्रिया इसका आधार हैं।

सामाजिक रीतियां

आज जो पूरा इलाका रेड कॉरिडोर कहलाता है यहां ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से आदिवासी और जनजातीय समुदायों का निवास है। उनका आजादी से पहले से शोषण हुआ है। यहां औपनिवेशिक शासकों का अत्याचार चरम पर था। पहले बस्तर के राजा के साथ मुगलों और अंग्रेजों ने अत्याचार किए। इसके बाद आजाद भारत में राजा प्रवीर चंद्र भंजदेव के साथ कांग्रेस की सरकार ने कुटिल चाल चली। नक्सलबाड़ी आंदोलन के बाद भी उस दौर की सरकार ने जमींदारों, साहूकारों के शोषण से आदिवासियों को आजाद नहीं कराया।

सरकार की कमजोर नीतियां

आजादी के बाद एक तो सरकार ने जमींदारों, साहूकारों को लगाम नहीं लगाई। ऊपर से विकास के नाम पर खनन, बांध निर्माण और औद्योगिक परियोजनाओं के नाम पर आदिवासियों को उनके स्थान से विस्थापित कर दिया गया। इसके स्थान पर उन्हें उचित मुआवजा और लाभ नहीं दिया गया। सुदूर और जंगली इलाके होने के कारण यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और रोजगार की पहुंच भी धीमी रही।

रेड कॉरिडोर के क्षेत्र में खनिज संसाधनों की भरमार है। खनिजों के दोहन से होने वाले लाभ का हिस्सा स्थानीय लोगों तक नहीं पहुंचा। इससे कॉरपोरेट और बाहरी लोगों ने जमकर कमाई की। इससे नक्सलियों को आदिवासियों को संगठित करने का मौका मिला। अंग्रेजों के समय से विस्थापित होते आदिवासी आजाद भारत की सरकार में भी परेशान रहे। इस कारण नक्सलियों को समर्थन देने लगे। इस मासूमियत का फायदा नक्सलियों ने लूटपाट और राज्य के विरोध में इस्तेमाल किया।

सरकारी की जवाबी कार्रवाई

नक्सलियों को सबसे अधिक खौफ छत्तीसगढ़ के बस्तर, झारखंड के सिंहभूम और ओडिशा का मलकानगिरी इलाके में है। ये क्षेत्र जंगलों और पहाड़ी इलाकों का है। ये नक्सलियों के मूवमेंट को बेहतर बनाता है। दुर्गम इलाके उन्हें सुरक्षा बलों से बचने में मदद करते थे। सरकार ने इन क्षेत्रों में नक्सलवाद को नियंत्रित करने के लिए सैन्य उपाय किए। कांग्रेस की सरकार के दौरान ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाया गया। इसमें 1500 नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया जाता है। हालांकि, दूसरी ओर ये भी कहा जाता है कि इसमें कई निर्दोष आदिवासी भी मारे गए थे। इस कारण उनका गुस्सा और अधिक फूट गया।

देश को तोड़ने की माओवादी विचारधारा

सरकारों ने इन इलाकों को विकसित करने के लिए कई योजनाएं चलाई। हालांकि, पहले तो दुर्गम इलाके होने के कारण पहुंच धीमी रही। दूसरी ओर  भ्रष्टाचार और खराब कार्यान्वयन के कारण इनका असर कम ही नजर आया। ऐसे में कम्युनिस्ट नक्सलियों ने पूरे प्लान के साथ आदिवासियों के बीच काम किया। उन्होंने जमीन का अधिकार, कॉरपोरेट शोषण और सरकारी उपेक्षा जैसे मुद्दों को उठाया। इससे आदिवासियों को भ्रम हो गया कि नक्सली उनके साथ खड़े हैं।

कैसे हुआ विस्तार?

रेड कॉरिडोर का दायरा पहले की तुलना में काफी कम हो गया है। क्योंकि सरकार की सैन्य कार्रवाइयों और विकास योजनाओं ने नक्सलवाद को कमजोर किया है। फिर भी छत्तीसगढ़ के बस्तर और कुछ अन्य क्षेत्रों में नक्सली गतिविधियां अभी भी जारी हैं। अब इनकी कमर तोड़ने के लिए केंद्र सरकार ने कसम खा ली है। इसके लिए सैन्य कार्रवाई के साथ ही सामाजिक-आर्थिक असमानता, आदिवासियों के शोषण से भी लड़ने का काम किया है। इसका असर है कि अब आदिवासियों में लोकतंत्र के प्रति आस्था जाग रही है।

नक्सलवाद पर हमारी सीरीज और अन्य नक्सल खबरों के लिए यहां क्लिक करें।

आजादी के दशकों बाद भी इन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं जैसे सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य सेवाएं  नहीं पहुंचीं। इससे लोगों में विश्वास की कमी हुई। वहीं बड़ी कंपनियों को खनिज ब्लॉक देने के लिए आदिवासियों की भूमि छीनी गई। नक्सलियों ने इस गुस्से को हथियार बना लिया। इन इलाकों से उठी राजनीतिक आवाजें अक्सर दबा दी जाती थी या चुनावी लाभ के लिए इस्तेमाल होती थीं। वहीं सरकारी सह पर पुलिसिया दमन ने निर्दोष आदिवासियों को नक्सली बताया इससे स्थानीय लोगों का गुस्सा फूटा। कुल मिलाकर आदिवासी क्षेत्रों में सरकारी विफलता, सामाजिक असमानता के कारण मिले स्थानीय समर्थन ने नक्सलियों को मजबूत किया। इसी का परिणाम था कि खौफनाक रेड कॉरिडोर हम सबके सामने आया।

Exit mobile version