जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा ‘सिंधु जल संधि’ को निलंबित करने के बाद अब पाकिस्तान बुरी तरह तिलमिला रहा है। पाकिस्तान ने भारत से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की अपील की है और इसे संभावित जल संकट की ओर ले जाने वाला बताया है। पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय को इस संबंध में पत्र भेजा है।
समा टीवी की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव सैयद अली मुर्तजा ने अपने भारतीय समकक्ष को पत्र लिखकर कहा है कि सिंधु जल संधि में इस तरह के निलंबन या एकतरफा बदलाव का कोई प्रावधान नहीं है। मंत्रालय का कहना है कि भारत द्वारा इस निर्णय को सही ठहराने के लिए जिन आधारों का उपयोग किया गया है, वे संधि की मूल भावना से मेल नहीं खाते।
पाकिस्तानी अधिकारियों ने दावा किया कि संधि अब भी पूरी तरह वैध है और इसे केवल आपसी सहमति से ही संशोधित किया जा सकता है। पाकिस्तान ने पत्र के माध्यम से भारत से आग्रह किया है कि वह इस निर्णय पर पुनर्विचार करे और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में सहयोग दे। सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान का यह पत्र भारत के विदेश मंत्रालय को भेजा गया है, जहां इस पर विचार किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था, “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।” उनके इस बयान को भारत के इस कड़े फैसले की पृष्ठभूमि में देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि भारत अब सिंधु नदी प्रणाली की तीनों प्रमुख नदियों रावी, ब्यास और सतलुज के जल का अधिकतम उपयोग करने की दिशा में तेज़ी से काम शुरू कर चुका है। साथ ही, सरकार मध्यकालिक और दीर्घकालिक जल प्रबंधन योजनाओं को भी अंतिम रूप दे रही है।
क्या है सिंधु जल संधि?
सिंधु जल संधि को समझने से पहले ज़रूरी है कि सिंधु बेसिन को समझा जाए। करीब 3200 किलोमीटर लंबी सिंधु नदी एशिया का सबसे लंबी नदियों में शामिल है। सिंधु नदी ट्रांस हिमालयन जोन के बोखर-चू ग्लेशियर से निकलती है। लद्दाख और जास्कर श्रेणियों के बीच में उत्तर-पश्चिम की ओर बहती हुई भारत में प्रवेश करती है। इसके बाद यह लद्दाख से होते हुए पीओके में चली जाती है। वहां से यह नदी गिलगित से होते हुए पाकिस्तान को कवर करते हुए अरब सागर में गिर जाती है। इसी बेसिन के इर्दगिर्द ही सिंधु घाटी सभ्यता ने जन्म लिया था।

भारत में जब ब्रिटिश राज था तो दक्षिण पंजाब में सिंधु नदी घाटी पर बड़ी नहर बनवाई गई और इसके चलते यह इलाका एशिया में एक प्रमुख कृषि क्षेत्र बन गया था। जब भारत का बंटवारा हुआ तो पंजाब को भी दो हिस्सों में बांटा गया और उसी समय सिंधु नदी घाटी और अन्य नदियों को भी बांट दिया गया। हालांकि, इस नदी का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में था लेकिन यह भारत से होकर जाती थी तो पाकिस्तान इससे मिलने वाले पानी के लिए पूरी तरह भारत पर निर्भर था। आज़ादी के बाद से ही इसे लेकर विवाद होना शुरू हो गया। दिसंबर 1947 में इसे लेकर पहला समझौता हुआ और बंटवारे से पहले की शर्तों के मुताबिक तय हुआ कि भारत 31 मार्च 1948 तक पाकिस्तान को पानी का एक निश्चित हिस्सा देता रहेगा। अप्रैल 1948 में जैसी ही यह समझौता खत्म हुआ तो भारत ने दो प्रमुख नदियों का पानी रोक दिया जिसके चलते पाकिस्तान को बहुत नुकसान झेलना पड़ा था।
इसके बाद विवाद को निपटाने के लिए मई 1948 में एक इंटर-डोमिनियन समझौता हुआ जिसके तहत भारत को सालाना भुगतान के बदले में बेसिन के पाकिस्तानी हिस्सों को पानी देना था। हालांकि, यह स्थाई समझौता नहीं था और विवाद निपटाने को लेकर अब भी प्रयास चल रहे थे। इसी बीच 1951 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बुलावे पर टेनेसी वैली अथॉरिटी और अमेरिकी परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व प्रमुख डेविड लिलिएनथल भारत आए थे। अमेरिका वापस लौटने पर उन्होंने इस विवाद को लेकर एक लेख लिखा।
लिलिएनथल ने सुझाव दिया कि भारत-पाकिस्तान को नदियों पर तंत्र का साथ में विकास और उसका प्रबंधन देखना चाहिए और उन्होंने एक समझौता भी सुझाया था। उन्होंने इसके लिए वर्ल्ड बैंक को धन और सलाह देने की बात भी कही। उस समय के वर्ल्ड बैंक प्रमुख ने इस लेख को पढ़ा और विश्व बैंक ने दोनों देशों के प्रमुखों से संपर्क कर 1954 में एक प्रस्तावित समझौते का मसौदा दिया था। करीब एक दशक तक बैठकों का दौरा चलता रहा और 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी प्रणाली के जल के उपयोग के संबंध में भारत और पाकिस्तान के बीच संधि हुई।
भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इस संधि में सिंधु, झेलम और चेनाब को पश्चिमी नदियां बताया गया जिनका पानी पाकिस्तान के लिए तय किया गया था। जबकि रावी, व्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां बताते हुए इनका पानी भारत के लिए तय किया गया था। वहीं, पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल का सीमित अधिकार भारत जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी का अधिकार भारत को दिया गया था। इसके मुताबिक जल का करीब 80% पाकिस्तान के पास चला गया था जबकि 20% भारत के पास बचा है।
इस संधि में सिंधु आयोग भी स्थापित किया गया और इस आयोग के तहत दोनों देशों के कमिश्नरों के मिलने को वर्ष में कम-से-कम एक बार बैठक करनी थी। विवाद के समाधान के त्रिस्तरीय तंत्र बनाया गया जिसमें स्थाई सिंधु आयोग (PIC), तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता न्यायालय शामिल थे। तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति विश्व बैंक या भारत सरकार और पाकिस्तान सरकार द्वारा मिलकर की जाती है। मध्यस्थता न्यायालय में 7 सदस्यीय मध्यस्थता न्यायालय शामिल है। इस संधि में कहा गया था कि जब कोई एक देश किसी परियोजना पर काम करता है और दूसरे को कोई आपत्ति होती है तो पहले देश को इसका जवाब देना होगा।