सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर करने से पहले प्रधानमंत्री और भारत के राष्ट्रपति के पास जाएं। पीठ ने याचिका खारिज करने से पहले कहा कि पहले उन अधिकारियों के समक्ष प्रतिनिधित्व दाखिल करें जो उन्हें कार्रवाई करने के लिए कह रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार वकीलों की रिट याचिका पर सुनवाई की गई थी। इसमें जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से कथित तौर पर अवैध नकदी बरामद होने के मामले में FIR दर्ज करने की मांग की गई थी। जस्टिस अभय ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने इस मांग को खारिज कर दिया है। बता दें याचिका एडवोकेट मैथ्यूज नेदुम्परा और तीन अन्य लोगों द्वारा दायर की गई थी।
क्यों खारिज की याचिका?
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए बताया कि मुख्य न्यायाधीश (CJI) पहले ही आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट के साथ ही जस्टिस वर्मा के जवाब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज चुके हैं। याचिकाकर्ताओं ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सामने कार्रवाई की मांग के लिए कोई आवेदन दायर नहीं किया है। इसलिए मैंडामस की मांग करने वाली उनकी रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
जस्टिस ओक की टिप्पणी
जैसे ही मामले की सुनवाई शुरू हुई, जस्टिस ओक ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नेदुम्परा से कहा ‘आंतरिक जांच रिपोर्ट है। इसे भारत के राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री को भेज दिया गया। इसलिए मूल नियम का पालन करें। यदि आप मैंडामस की मांग कर रहे हैं तो आपको सबसे पहले उन अधिकारियों के समक्ष आवेदन करना होगा जिनके पास ये मुद्दा लंबित है। इस मामले में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री द्वारा कार्रवाई की जानी है।
जस्टिस ओक ने आगे कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप याचिका दाखिल नहीं कर सकते। आप रिपोर्ट की विषय-वस्तु नहीं जानते। हम भी उस रिपोर्ट की विषय-वस्तु नहीं जानते। आप उनसे कार्रवाई करने का आह्वान करते हुए अभ्यावेदन करें। यदि वे कार्रवाई नहीं करते हैं तो आप यहां आ सकते हैं।
वीरस्वामी फैसले पर सवाल
नेदुम्परा ने तब वीरस्वामी निर्णय पर सवाल उठाया जिसके आधार पर आंतरिक जांच की गई थी। उन्होंने कहा कि निर्णय पर फिर से विचार किया जाना चाहिए। इसपर जस्टिस ओक ने कहा कि आखिरकार आपकी मुख्य याचिका ये है कि संबंधित जज के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। कृपया परमादेश की रिट मांगते समय मूल नियम का पालन करें।
कोर्ट के कमेंट के बाद नेदुम्परा ने कहा कि जज के कार्यालय से नकदी की बरामदगी भारतीय न्याय संहिता (BNS) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक संज्ञेय अपराध है। इस कारण परमादेश के अलावा यह भी चाहते हैं कि पुलिस FIR दर्ज करे। हालांकि, खंडपीठ ने मामले पर आगे विचार नहीं किया।
दूसरी याचिका भी खारिज
याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय का दरवाजा तब खटखटाया था जब CJI ने भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को आंतरिक जांच रिपोर्ट भेजी थी। याचिकाकर्ताओं ने मामले की आपराधिक जांच आवश्यक बताई थी। आरोपों के संबंध में नेदुम्परा द्वारा दायर यह दूसरी रिट याचिका है। मार्च में उन्होंने तीन जजों के पैनल के आंतरिक जांच को चुनौती दी थी। उन्होंने कहा था कि आपराधिक जांच की जरूरत है। हालांकि, तब भी कोर्ट ने जांच के बीच याचिका को सुनने से इनकार कर दिया था।
वीरस्वामी बनाम भारत संघ
अभी की याचिका में तर्क दिया गया है कि के. वीरस्वामी बनाम भारत संघ मामले में दिए आदेश पर भी विचार करने की मांग की गई थी। कोर्ड ने वीरस्वामी मामले में फैसला दिया था कि किसी मौजूदा जज के खिलाफ FIR दर्ज करने से पहले CJI की पूर्व अनुमति की आवश्यक है। इसे ही अभी की याचिका में कानून के विपरीत बताते हुए पुनर्विचार करने की आवश्यकता बताई गई थी।
याचिका में कहा गया कि किसी जज पर महाभियोग लगाना पर्याप्त उपाय नहीं होता है। महाभियोग केवल यानी पद से हटाना केवल एक नागरिक परिणाम है। इसके बाद भी दंडात्मक कार्रवाई की आवश्यकता होती है। याचिका में कहा गया कि जब आरोपी एक जज होता है अपराध की गंभीरता कहीं अधिक होती है। इस कारण इस बात की जांच होनी चाहिए कि कथित रिश्वत किसने दी और किसे लाभ हुआ। किन-किन मामलों में न्याय से कथित रूप से समझौता किया गया।
क्या है जस्टिस यशवंत वर्मा केस?
14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास के स्टोररूम में आग लग गई थी। आग बुझाने के दौरान बड़ी मात्रा में नकदी मिलने की बात सामने आई थी। 21 मार्च को मुख्य न्यायाधीश ने दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट के बाद मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। इसके बाद 24 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट ने जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिया और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने की सिफारिश कर दी। जस्टिस वर्मा ने अपने खिलाफ साजिश का दावा करते हुए आरोपों से इनकार किया।